Friday, April 19, 2024
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पत्रकारों के फोन टैप करने का मामला सुर्खियों में

भारत के दो केंद्रीय मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, विपक्ष के तीन नेताओं और एक न्यायाधीश सहित बड़ी संख्या में कारोबारियों, सरकारी अफसरों, वैज्ञानिकों, एक्टिविस्ट समेत करीब 300 लोगों की जासूसी की गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन सभी पर फोन के जरिए निगरानी रखी जा रही थी।

इस बात का खुलासा मीडिया संस्थानों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ने किया है। संगठन का मानना है कि केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचे जाने वाले इजराइल के जासूसी सॉफ्टवेयर ‘पेगासस’ का इस्तेमाल किया गया था।

क्या है पेगासस
पेगासस सॉफ्टवेयर को जासूसी के क्षेत्र में अचूक माना जाता है। तकनीक जानकारों का दावा है कि इससे व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे एप भी सुरक्षित नहीं। क्योंकि यह फोन में मौजूद एंड टू एंड एंक्रिप्टेड चैट को भी पढ़ सकता है। पेगासस एक स्पाइवेयर (जासूसी साफ्टवेयर) है, जिसे इसराइली साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ग्रुप टेक्नॉलॉजीज़ ने बनाया है। इसका दूसरा नाम क्यू-सुईट भी है। इससे उन फोन और डिवाइस को भी हैक किया जा सकता है जिसे लेकर कंपनियां हैकप्रूफ होने का दावा करती हैं। माना जाता है कि अमेजन के सीईओ जेफ बेजोस का व्हाट्सएप भी इसी सॉफ्टवेयर से हैक हुआ था। -पेगासस संबंधित फोन पर आने-जाने वाले हर कॉल का ब्योरा जुटाने में सक्षम है। यह फोन में मौजूद मीडिया फाइल और दस्तावेजों के अलावा उस पर आने-जाने वाले एसएमएस, ईमेल और सोशल मीडिया मैसेज की भी जानकारी दे सकता है।

हालांकि सरकार ने अपने स्तर पर खास लोगों की निगरानी संबंधी आरोपों को खारिज किया है। सरकार ने कहा, ‘इसका कोई ठोस आधार नहीं है या इससे जुड़ी कोई सच्चाई नहीं है।’

सरकार ने मीडिया रिपोर्ट्स को खारिज करते हुए कहा, ‘भारत एक मजबूत लोकतंत्र है और वह अपने सभी नागरिकों के निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।’ साथ ही सरकार ने ‘जांचकर्ता, अभियोजक और जूरी की भूमिका’ निभाने के प्रयास संबंधी मीडिया रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

इस रिपोर्ट को भारत के न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ के साथ-साथ ‘वॉशिंगटन पोस्ट’, ‘द गार्जियन’ और ‘ले मोंडे’ सहित 16 अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों ने पेरिस के मीडिया गैर-लाभकारी संगठन फॉरबिडन स्टोरीज और राइट्स ग्रुप एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा की गई एक जांच के लिए मीडिया पार्टनर के रूप में प्रकाशित किया है। यह जांच दुनिया भर से 50,000 से अधिक फोन नंबरों की लीक हुई सूची पर आधारित है और माना जा रहा है कि इजरायली निगरानी कंपनी एनएसओ ग्रुप के ‘पेगासस’ सॉफ्टवेयर के जरिए ही इनकी हैकिंग की गई है।

‘द वायर’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मीडिया जांच परियोजना के हिस्से के रूप में किए गए फोरेंसिक परीक्षणों में 37 फोन को ‘पेगासस’ सॉफ्टवेयर द्वारा निशाना बनाए जाने के स्पष्ट संकेत मिले हैं, जिनमें से 10 भारतीय हैं।

‘वॉशिंगटन पोस्ट’ और ‘द गार्जियन’ के अनुसार 3 प्रमुख विपक्षी नेताओं, 2 मंत्रियों और एक जज की भी जासूसी की पुष्ट हो चुकी है, हालांकि इनके नाम नहीं बताए हैं।

पेगासस स्पायवेयर एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम है, जिसके जरिए किसी के फोन को हैक करके, उसके कैमरा, माइक, कंटेंट समेत सभी तरह की जानकारी हासिल की जा सकती है। इस सॉफ्टवेयर से फोन पर की गई बातचीत का ब्यौरा भी जाना जा सकता है।

पेगासस बनाने वाली कंपनी NSO ग्रुप का कहना है कि वह किसी निजी कंपनी को यह सॉफ्टवेयर नहीं बेचती है, बल्कि इसे केवल सरकारों को ही सप्लाई किया जाता है। ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार ने ही भारतीय पत्रकारों की जासूसी कराई?

रिपोर्ट पब्लिश होने के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने इस पर जवाब दिया कि उसकी ओर से देश में किसी का भी फोन गैरकानूनी रूप से हैक नहीं किया है। IT मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि भारत द्वारा वॉट्सऐप पर पेगासस के उपयोग के संबंध में इस प्रकार के दावे अतीत में भी किए गए थे और उन रिपोर्ट का भी कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और भारतीय उच्च न्यायालय में वॉट्सऐप सहित सभी पक्षों ने इससे इनकार किया था।

सरकार ने कहा कि एक स्थापित प्रक्रिया है जिसके जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर इलेक्ट्रॉनिक संवाद को केंद्र या राज्यों की एजेंसियों द्वारा कानूनी रूप से हासिल किया जाता है और यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी कंप्यूटर संसाधन से सूचना को हासिल करना, उसकी निगरानी करना तय कानूनी प्रक्रिया के तहत हो।

‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार, लीक आंकडों में बड़े मीडिया संगठनों ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘इंडिया टुडे’, ‘नेटवर्क 18’, ‘द हिन्दू’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनेक जाने माने पत्रकार के नंबर शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से 2019 के बीच एक भारतीय एजेंसी ने 40 से ज्यादा भारतीय पत्रकारों की निगरानी की थी।

जांच एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज को प्राप्त लगभग 50 हजार नामों और नंबरों पर आधारित है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इनमें से 67 फोन की फॉरेन्सिक जांच की। इस दौरान 23 फोन हैक मिले, जबकि 14 अन्य में सेंधमारी की कोशिश की पुष्टि हुई। ‘द वायर’ ने खुलासा किया कि भारत में भी दस फोन की फॉरेन्सिक जांच करवाई गई। ये सभी या तो हैक हुए थे, या फिर इनकी हैकिंग का प्रयास किया गया था।

-इजरायली कंपनी एनएसओ ने जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज का डाटा गुमराह करता है। यह डाटा उन नंबरों का नहीं हो सकता है, जिनकी सरकारों ने निगरानी की है। इसके अलावा एनएसओ अपने ग्राहकों की खुफिया निगरानी गतिविधियों से वाकिफ नहीं है।

रिपोर्ट में किन पत्रकारों के नाम सामने आए…

रोहिणी सिंह- पत्रकार, द वायर
स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी
सुशांत सिंह, इंडियन एक्सप्रेस में डिप्टी एडिटर
एसएनएम अब्दी, आउटलुक के पूर्व पत्रकार
परंजॉय गुहा ठाकुरता, ईपीडब्ल्यू के पूर्व संपादक
एमके वेणु, द वायर के संस्थापक
सिद्धार्थ वरदराजन, द वायर के संस्थापक
एक भारतीय अखबार के वरिष्ठ संपादक
झारखंड के रामगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह
सिद्धांत सिब्बल, वियॉन के विदेश मंत्रालय के पत्रकार
संतोष भारतीय, वरिष्ठ पत्रकार, पूर्व सांसद
इफ्तिखार गिलानी, पूर्व डीएनए रिपोर्टर
मनोरंजना गुप्ता, फ्रंटियर टीवी की प्रधान संपादक
संजय श्याम, बिहार के पत्रकार
जसपाल सिंह हेरन, दैनिक रोज़ाना पहरेदार के प्रधान संपादक
सैयद अब्दुल रहमान गिलानी, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर
संदीप उन्नीथन, इंडिया टुडे
विजेता सिंह, द हिन्दू की गृहमंत्रालय से जुड़ी पत्रकार
मनोज गुप्ता, टीवी 18 के इंवेस्टिगेटिव एडिटर
हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के चार वर्तमान और एक पूर्व कर्मचारी ( कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता, संपादकीय पेज के संपादक और पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी)
हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के अखबार मिंट के एक रिपोर्टर
सुरक्षा मामलों पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्टर सैकत दत्ता
स्मिता शर्मा, टीवी 18 की पूर्व एंकर और द ट्रिब्यून की डिप्लोमैटिक रिपोर्टर

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