Thursday, March 28, 2024
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आखिर कौन हैं ये ओवैसी भाई, और क्या है इनका अतीत

आखिर कौन हैं ये ओवैसी भाई और क्या है इनकी पार्टी एमआईएम (एमआईएम) का इतिहास !!!

ये दास्तान उस दौर की है जब देश को आजाद होने में 20 साल बाकी थे। दक्षिण भारत की रियासत हैदराबाद पर निजाम उस्मान अली खान की हुकूमत थी। उस वक्त नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने 1927 में मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन (MIM) नाम के संगठन की नींव रखी थी। इस संगठन के संस्थापक सदस्यों में हैदराबाद के राजनेता सैयद कासिम रिजवी भी शामिल थे जो रजाकार नाम के हथियारबंद हिंसक संगठन के सरगना भी थे।

एमआईएम को खड़ा करने में इन रजाकारों की अहम भूमिका थी। रजाकार और एमआईएम ये दोनों ही संगठन हैदराबाद के देशद्रोही और गद्दार निजाम के कट्टर समर्थक थे। यही वजह है कि जब 1947 में देश आजाद हुआ तो हैदराबाद रियासत के भारत में विलय का कासिम रिजवी और उसके पैरामिल्ट्री संगठन यानी रजाकारों ने जमकर विरोध भी किया था। ये लोग हैदराबाद को पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे क्योंकि काफिर हिन्दुओं द्वारा शासित मुल्क में रहना इन्हें कतई मंजूर नहीं था। कौन थे इस पार्टी को खड़ा करने वाले रजाकार..?

रजाकार हथियार लेकर गलियों में झुण्ड के झुण्ड बनाकर जिहादी नारे लगते हुए गश्त करते थे। उनका मकसद केवल एक ही था। हिन्दू प्रजा पर दहशत के रूप में टूट पड़ना। इन रजाकारों का नेतृत्व MIM का कासिम रिज़वी ही करता था।

इन रजाकारों ने अनेक हिन्दुओं को बड़ी निर्दयता से हत्या की थी। हज़ारों अबलाओं का बलात्कार किया था, हजारों हिन्दू बच्चों को पकड़ कर सुन्नत कर दिया था । यहाँ तक की इन लोगों ने जनसँख्या का संतुलन बिगाड़ने के लिए बाहर से लाकर मुसलमानों को बसाया था। आर्यसमाज के हैदराबाद के प्रसिद्द नेता भाई श्यामलाल वकील की रजाकारों ने अमानवीय अत्याचार कर जहर द्वारा हत्या कर दी।
31 मार्च 1948 को MIM के कासिम रिजवी ने रियासत के मुसलमानों को एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार लेकर भारत पर चढ़ाई करने को कहा। उसने यह भी दावा किया कि जल्दी ही दिल्ली के लाल किले पर निजाम का आसिफ-जाही झण्डा फहरायेगा।

इधर निजाम ने कानून बना दिया था कि भारत का रुपया रियासत में नहीं चलेगा। यही नहीं, उसने पाकिस्तान को बीस करोड़ रुपये की मदद भी दे दी और कराची में रियासत का एक जन सम्पर्क अधिकारी बिना भारत सरकार की अनुमति के नियुक्त कर दिया। निज़ाम के राज्य में 95 प्रतिशत सरकारी नौकरियों पर मुसलमानों का कब्ज़ा था और केवल 5 प्रतिशत छोटी नौकरियों पर हिन्दुओं को अनुमति थी। निज़ाम के राज्य में हिन्दुओं को हर प्रकार से मुस्लमान बनाने के लिए प्रेरित किया जाता था।

29 नवंबर 1947 को इसी देश के गद्दार निजाम से नेहरू ने एक समझौता किया था कि हैदराबाद की स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी। नोट – यहाँ आप देख सकते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देशद्रोहियों से भी समझौता कर लेते थे। नेहरू के इन व्यर्थ समझौतों और हैदराबाद में देशद्रोही गतिविधियों से तंग आकर 10 सिंतबर 1948 को सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को एक खत लिखा जिसमें उन्होने हैदराबाद को हिंदुस्तान में शामिल होने का आखिरी मौका दिया था। लेकिन हैदराबाद के निजाम ने सरदार पटेल की अपील ठुकरा दी और तब के एमआईएम अध्यक्ष कासिम रिजवी ने खुलेआम भारत सरकार को धमकी दी कि यदि सेना ने हमला किया तो उन्हें रियासत में रह रहे 6 करोड़ हिन्दुओं की हड्डियाँ ही मिलेंगी।

निजाम ने तो एक कदम आगे बढ़कर पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अली जिन्ना से सैनिक सहायता की माँग की। इस पर जिन्ना ने जवाब दिया “हिन्दुस्तान में रह रहे एक छोटे अभिजात्य वर्ग के लिए मैं पाकिस्तान को खतरे में नहीं डाल सकता।” आखिर सरदार पटेल क्रुद्ध हो उठे और भारतीय सेना ने 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत पर आपरेशन पोलो के नाम से हमला कर दिया तब नेहरू देश में नहीं थे।

सेना ने केवल 4 दिनों की लड़ाई में 2,00,000 बहादुर जेहादियों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा और 1373 जेहादियों को 72 हूरों के पास भेज दिया। इससे MIM और उसके रजाकारों की कमर ही टूट गई। आखिरकार निजाम को झुकना पड़ा और निजाम अपने प्यारे मुल्क पाकिस्तान भाग गया। और अपने पीछे छोड़ गया हजारों पाकिस्तान-प्रेमी मुसलमानों को। तब सरदार पटेल ने इस एमआईएम को देशद्रोही संगठन मानकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया था।

एमआईएम शुरुआत में एक कट्टर धार्मिक संगठन था लेकिन 1957 में इस पार्टी ने एक नयी चाल चली और अपने नाम में ऑल इंडिया जोड़ दिया। मुस्लिम तुष्टिकरण के दीवाने नेहरू को अच्छा मौका मिला और इस पार्टी से भारत सरकार ने प्रतिबंध हटा लिए। हैदराबाद के खिलाफ भारतीय सेना की कार्यवाही में उस समय एमआईएम पार्टी के अध्यक्ष रहे मौलाना कासिम रिजवी को गिरफ्तार कर लिया गया था। कुछ समय बाद रिहा होने पर वे भी अपने प्यारे मुल्क पाकिस्तान जाकर बस गए और जाते-जाते पार्टी की कमान उस समय के प्रसिद्ध वकील और आज के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वाहेद ओवैसी को देकर चले गए।

बस तभी से ओवैसी परिवार के हाथों में इस पार्टी की सत्ता कायम है। मौलाना अब्दुल वाहेद ओवैसी को नफरत फैलाने के लिए 11 महीने तक जेल में रखा गया था। अब्दुल वाहेद को 14 मार्च 1958 को अरेस्ट किया गया था। वाहेद पर हैदराबाद पुलिस ने सांप्रदायिक सद्भावना को भंग करने, मजहबी नफरत फैलाने, स्टेट और देश के खिलाफ मुसलमानों को भड़काने के आरोप तय किए थे। वाहेद ने 1957 में लगातार 5, 12, 23 और 24 अक्टूबर को नफरत फैलाने वाला भाषण दिया था। इसके बाद 9 जनवरी 1958 को भी वाहेद ने नफरत का जहर उगला था।

वाहेद ओवैसी के बाद सलाहुद्दीन ओवैसी इसके अध्यक्ष बने। और पार्टी ने अपनी पहली चुनावी जीत 1960 में दर्ज की जब सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए और फिर दो वर्ष बाद विधान सभा के सदस्य बने तब से एमआईएम की ताकत लगातार बढती गई। बढ़ती हुई लोकप्रियता के साथ साथ सलाहुद्दीन ओवैसी “सलार-ए-मिल्लत” (मुसलमानों के नेता) के नाम से मशहूर हो गये। वर्ष 1984 में वो पहली बार हैदराबाद से लोक सभा के लिए चुने गए साथ ही विधान सभा में भी उस के सदस्यों की संख्या बढती गई।

आज सलाहुद्दीन ओवैसी के पुत्र असदुद्दीन ओवैसी इस पार्टी के अध्यक्ष हैं और नफरत की सियासत को सम्भाल रहे हैं। वे अपने पिता के बाद, हैदराबाद से सांसद भी हैं। 1984 से ही हैदराबाद की लोकसभा सीट पर इस परिवार का कब्जा है। गत पांच दशकों में एमआईएम और उसे चलाने वाले ओवैसी परिवार की ताकत इतनी बढ़ी है कि हैदराबाद पर पूरी तरह उन्हीं का नियंत्रण है।
हैदराबाद ओल्ड सिटी इन लोगों का गढ़ है जहाँ 40 फीसदी मुसलमान रहते हैं और इस पार्टी का पुरजोर समर्थन करते हैं। राजनैतिक शक्ति के साथ साथ ओवैसी परिवार के साधन और संपत्ति में भी ज़बरदस्त वृद्धि हुई है जिसमें एक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, कई दूसरे कालेज और दो अस्पताल भी शामिल हैं।

2009 के चुनाव में एमआईएम ने विधान सभा की सात सीटें जीतीं जो की उसे अपने इतिहास में मिलने वाली सब से ज्यादा सीटें थीं। कांग्रेस के साथ उसकी लगभग 12 वर्षों से चली आ रही दोस्ती में उस समय अचानक दरार पड़ गई जब चारमीनार के निकट एक काफी पुराने भाग्यलक्ष्मी मंदिर के जीर्णोद्धार के विषय ने एक विस्फोटक मोड़ ले लिया। तब कांग्रेस को अपनी हिन्दू विरोधी नीति की पोल खुलने का डर सताने लगा था। जबकि एमआईएम किसी भी हाल में वहाँ काफिरों का पूजास्थल बनने नहीं देना चाहती थी।

ओवैसी भाईयों के लगभग हर भाषण में सम्प्रदायिक तनाव भड़काने वाली बातें मौजूद होती हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने धमकी दी कि अगर मुसलमानों के साथ मोदी सरकार की विरोधी नीति और संघ परिवार का ‘घर वापसी’ कार्यक्रम जारी रहा तो देश को एक और विभाजन के लिए तैयार रहना चाहिए। मोदी में दम है तो हैदराबाद आ के दिखाए।

एक ओर जहाँ बड़े भाई सांसद असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों को अत्यंत पीड़ित बताकर उसकी आड़ में लगातार साम्प्रदायिक भावना को भड़काने वाले बयान देते रहे हैं वहीं उनके छोटे भाई विधायक अकबरूद्दीन ओवैसी तो “बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभानअल्लाह” वाली कहावत को चरितार्थ करते दिखाई देते हैं।

अकबरुद्दीन ओवैसी ने 24 दिसम्बर 2012 को आदिलाबाद के निर्मल टाउन में एक जलसे में टीवी कैमरों और मीडिया की मौजूदगी में कहा कि हम मुसलमान सिर्फ 25 करोड़ हैं। 15 मिनट के अपनी पुलिस हटा ले तो हम बता देंगे कि कौन ज्यादा ताकतवर है, हम 100 करोड़ हिन्दुओं का हिन्दोस्तान या हम 25 करोड़ मुसलमान।

जब ओवैसी ने यह कहा तो वहां मौजूद करीब बीस से पच्चीस हजार की संख्या में उपस्थित मुसलमानों ने जमकर ‘नारा-ए-तदबीर, अल्ला हो अकबर’ के नारे लगाये और ओवैसी का समर्थन किया।

ओवैसी ने भगवान श्रीराम की माता कौशल्या पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए कहा कि “आखिर राम की मां न जाने कहां कहां गई और राम किधर पैदा हुआ।” ओवैसी ने कहा- मैनें हाथ में माइक की जगह कुछ और पकड़ा तो पुरे हिन्दुस्तान में ऐसा खूनखराबा करूँगा जो पिछले हजार सालों में भी नहीं हुआ होगा । अगर सउदी अरब वापस गए तो खाली हाथ नहीं जाएँगे !!

अकबरूद्दीन को हैदराबाद ओल्ट सिटी का बाहुबली माना जाता है। वह पहली बार तब सुर्खियों में आया था जब उसने प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन को जान से मारने की बात कही थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ऐसी नीच बातें करने वाले दोनों भाई पढ़े-लिखे हैं। अकबरूद्दीन ओवैसी ने तो बकायदा लंदन से बैरिस्टरी की पढ़ाई की है।

ओवैसी भाई वैसे तो हैदराबाद के पॉश बंजारा हिल्स इलाके में रहते हैं लेकिन उनकी राजनीति की जड़ें ओल्ड सिटी में हैं जहां की 40 फीसदी आबादी मुसलमानों की है जो केवल मजहब के नाम पर एकजुट होकर इनका पुरजोर समर्थन करते हैं। वक्फ बोर्ड और मुस्लिम शिक्षा संस्थानों में इन दोनों की मजबूत पकड़ है। देश के बँटवारे के वक़्त तक एमआईएम अलग मुस्लिम राज्य के लिए मुस्लिम लीग के साथ रहा था। वही मुस्लिम लीग जिसने मजहब के नाम पर दस लाख भारतीयों की लाशों पर देश के दो टुकड़े किये।

साभार- http://fbkidunia.blogspot.in/ से 

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