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ओ आई सी , ओवैसी समेत सभी नाज़ुक लोगों को मज़बूत बनाना बहुत ज़रुरी !
जाने क्यों मुझे लगता है कि भारत में नाज़ुक इस्लाम को ताक़तवर इस्लाम बनाने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी भाजपा की सरकार बननी ही चाहिए। ताकि योगी जैसा कोई मुख्य मंत्री ओवैसी को आज़म ख़ान बना सके। रही बात ओ आई सी और क़तर जैसे देशों के लिए तो हमारे पास है
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अफ़सोस कि यह लोग नरेंद्र मोदी की कूटनीति को अभी तक नहीं समझ पाए
कुछ सेक्यूलर चैंपियंस इस बात पर भी हर्षित दिख रहे हैं कि कहीं तो मोदी सरकार डरी और घुटने टेक गई। कुछ लोग यह भी ख़बर बांट कर हर्षित हैं कि कतर में उप राष्ट्रपति का डिनर कैंसिल हो गया है। तो कुछ हर्ष जता रहे हैं कि बेचारे उप राष्ट्रपति को भूखे सोना पड़ेगा।
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जो सावरकर पर सवाल उठाते हैं उन्होंने कभी सावरकर का का लिखा पढ़ा भी है ?
सपा में अपनी एक उपेक्षा से आप इतने आहत रहते हैं। और सावरकर दो-दो बार काला पानी का आजीवन कारावास पा कर विचलित न होते , ऐसा कैसे सोच लेते हैं। फिर यह माफ़ीनामा भी गांधी की सलाह पर दिया था , सावरकर ने।
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प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए
अरे कथा-लखनऊ , कथा-गोरखपुर की याद है आप मित्रों को ? बड़े ताव में आ कर कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर के नए संपादकों का ऐलान किया था जितेंद्र पात्रो ने एक लाइव कार्यक्रम में।
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ज्ञान बाबू जैसे लोग बड़े शहरों में होते ही नहीं !
फ़रवरी , 1985 में दिल्ली से लखनऊ , स्वतंत्र भारत आया। पहली फ़रवरी को आया था। स्वतंत्र भारत आना किसी को नहीं मालूम था। पत्नी को भी नहीं। किसी को बताया ही नहीं था। पर जब दिन ग्यारह बजे 20 ,
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चमचम की चकमक चाशनी में भीगी मिठास सा एहसास
आज की ही तरह पत्रकारिता में तब के दिनों भी दलालों की फ़ौज तो नहीं पर हर शहर में दलालों की एक छोटी सी टुकड़ी तो होती ही थी। पर दलाल पत्रकारों की यह टुकड़ी ज्ञान बाबू से सायास दूरी बना कर रहती थी। ज्ञान बाबू को यह लोग फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे।
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कथा-गोरखपुर का गोरखधंधा
तो जिस गोरखपुर में प्रेमचंद पढ़े , नौकरी किए और गांधी का भाषण सुन कर सरकारी नौकरी छोड़ कर स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदे , कहानी की शुरुआत गोरखपुर में प्रेमचंद से ही मान लिया। ईदगाह , पंच परमेश्वर , रंगभूमि जैसी कई कालजयी रचनाएं प्रेमचंद ने गोरखपुर में ही लिखीं।
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सावरकर को कभी ऐसे भी जानिए न !
सपा में अपनी एक उपेक्षा से आप इतने आहत रहते हैं। और सावरकर दो-दो बार काला पानी का आजीवन कारावास पा कर विचलित न होते , ऐसा कैसे सोच लेते हैं। फिर यह माफ़ीनामा भी गांधी की सलाह पर दिया था , सावरकर ने।
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‘सभ्य समाज’ ने गौवंश को अवारा मान लिया ताकि कसाई का कारोबार चलता रहे
गरमी की छुट्टियों में जब गांव जाता तो हमारे बाबा एक भैंस अकसर मुझे चराने के लिए दे देते। वह जब भैंसों में मिल जाती तो मैं पहचान नहीं पाता। कि कौन सी भैंस मेरी है। पर शाम को जब सभी भैंस घर वापस आतीं तो वह अपने आप घर आ जाती।
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500 रुपये की रिश्वत नहीं देना कैफी आज़मी को बहुत भारी पड़ा
कैफ़ी और शबाना बहुत कहते रहे लेकिन अहमद हसन जो हर किसी का काम कर ख़ुद को उपकृत समझते थे , इस मामले में हाथ खड़े कर बैठे। हाथ जोड़ कर मना करते रहे।