Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeपत्रिकाकला-संस्कृतिनाशिक,महाराष्ट्र में होगा तीन दिवसीय ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य कुम्भ’ ...

नाशिक,महाराष्ट्र में होगा तीन दिवसीय ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य कुम्भ’ 21,22,23 फ़रवरी को


मुंबई।
संविधान विरोधी कानून और सरकार का विरोध करने के साथ साथ संविधान विरोधी मानसिकता को बदलना अनिवार्य है! जब विकारी सत्ता पर आसीन हों तब संविधान का संरक्षण हर भारतवासी का कर्तव्य है. आज विकारी देश की सत्ता पर बैठ सरेआम गोडसे का समर्थन करते हैं.युवाओं को ‘गोली मारो,सालों को’ के ज़हर से भरते हैं और महात्मा गांधी की पुण्यतिथि तिथि पर गोडसे की संतान अहिंसक प्रतिरोध करते देशवासियों पर पुलिस के संरक्षण में गोली चलाता है,पुलिस हाथ बांधे अपने विकारी आकाओं की चापलूसी में सरेआम निर्ल्लज हो लोकतंत्र पर कालिख पोत रही है. लोकतंत्र तानाशाहों की गिरफ़्त में है ऐसे समय में भेड़ बने समाज को नागरिक के रूप में जाग्रत कर प्रतिरोध के लिए तैयार करना कला की अनिवार्यता है. क्योंकि ‘कला मनुष्य को मनुष्य बनाती है. इसी कलात्मक और राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वहन करते हुए ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत के अभ्यासक और शुभचिंतक ‘संविधान संरक्षण,इंसानियत और न्याय’ चेतना का अलख जगाने के लिए 21,22,23 फ़रवरी को नाशिक,महाराष्ट्र में तीन दिवसीय ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य कुम्भ’ का आयोजन कर रहे हैं!

तीन दिवसीय ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य कुम्भ’ में रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज लिखित-दिग्दर्शित तीन नाटक ‘गर्भ,राजगति और न्याय के भंवर में भंवरी’ परशुराम नाट्य मंदिर नाशिक में प्रस्तुत होंगे

1. नाटक गर्भ

जब विश्व की मानवता भूमंडलीकरण की गिरफ्त में दम तोड़ रही हो, मुनाफ़ाखोरी के ‘खरीदने और बेचने’ के दौर में मनुष्य सिर्फ़ ‘वस्तु’ बनकर रह गया हो,एकाधिकारवाद का वर्चस्व विविधता को खत्म कर रहा हो. बाज़ारवाद मनुष्य को वस्तु मानकर, उसे मानव अधिकारों से बेदखल कर एक झुण्ड एक रूप में स्थापित कर, सत्ताधीशों का जयकारा लगाने के लिए समाज को भेड़ों की भीड़ में बदल रहा हो, तब वस्तु बने समाज को इंसान बनाना अनिवार्य है. इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है नाटक गर्भ!

नाटक गर्भ, ‘अपनी कलात्मक उर्जा से इंसानियत को गढ़ता है नाटक ‘गर्भ’. नाटक “गर्भ” मनुष्य के मनुष्य बने रहने का संघर्ष है.नाटक मानवता को बचाये रखने के लिए मनुष्य द्वारा अपने आसपास बनाये (नस्लवाद,धर्म,जाति,राष्ट्रवाद के) गर्भ को तोड़ता है. नाटक समस्याओं से ग्रसित मनुष्य और विश्व को इंसानियत के लिए, इंसान बनने के लिए उत्प्रेरित करता है ..क्योकि खूबसूरत है ज़िन्दगी !

2. नाटक राजगति

नाटक राजगति ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को धोता है और देशवासियों को राजनीति में विवेक सम्मत सहभगिता के लिए प्रेरित करता है! नाटक राजगति भारत और विश्व की अलग अलग राजनैतिक विचारधाराओं के अंतर्विरोधों को विश्लेषित कर मानव कल्याण के लिए उनके समन्वय की अनिवार्यता को रेखांकित करता है. नाटक भूमंडलीकरण के विनाश और विकास के पाखंड पर प्रहार करता है. कैसे भूमंडलीकरण ने मनुष्य को खरीदने और बेचने की वस्तु में बदलकर विश्व की लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं को पूंजीवाद की कठपुतली बना, विकारी लोगों को सत्ता में बैठा दिया है. यह विकारी लोग पूरी पृथ्वी और मनुष्यता को लील रहे हैं.

नाटक राजगति केवल सत्ता परिवर्तन के लिए होने वाले आंदोलनों की निरर्थकता को उजागर करता है. हाल ही में भारत में हुए एक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से सत्ता तो बदल गई. पर महाभ्रष्ट और विकारी उस पर विराजमान हो गए जो अर्थव्यवस्था के साथ साथ लोकतान्त्रिक संस्थाओं का ध्वंस कर संविधान के अवसान में दिन रात लगे हुए हैं.

नाटक राजगति जनता को अपनी राजनैतिक मुक्ति के लिए चार सूत्र देता है सत्ता,व्यवस्था,राजनैतिक चरित्र और राजनीति. सत्ता में हमेशा कालिख रहेगी चाहे वो किसी की भी हो और कोई भी हो, व्यवस्था अपनी जड़ता से किसी भी परिवर्तन को प्रभावहीन बना देती है, राजनैतिक चरित्र गढ़े बिना पूरी राजनैतिक प्रक्रिया पाखंड का शिकार होती है. इसलिए सत्ता,व्यवस्था,राजनैतिक चरित्र और राजनीति के चारों आयामों को एक साथ समझना अनिवार्य है. नाटक राजगति ‘राजनीति’ को पवित्र नीति मानता है. जनता से राजनीति में विवेकपूर्ण सहभागिता की अपील करता है. राजनीति सत्ता,व्यवस्था और राजनैतिक चरित्र की गंदगी को साफ़ करने की नीति है.

हर भारतवासी में राजनीति की पवित्र मशाल को जलाकर स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को गुलामी से मुक्त कराया. पर चंद सत्ता लोलुपों,सत्ता के दलालों ने ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को सुनियोजित षड्यंत्र से 132 करोड़ देशवासियों के माथे पर चिपका दिया है. जिसकी वजह से जनता राजनैतिक प्रक्रिया में सहभागी नहीं होती. कोई सहभागी हो रहा है तो सिर्फ़ सत्ता लोलुप जो धनपशुओं के बल पर वोट खरीद कर हर चुनाव में लोकतंत्र को कलंकित करता है.

एक ऐसे विध्वंसक काल में जब विकारी सत्ताधीश जनता को उसी के मल,मवाद,विकार और पाखंड में धंसा कर, राष्ट्रवाद के नाम पर वोट लेकर, समाज को उन्मादी भीड़ बना, जनता को कूट रहा हो, तब नाटक राजगति देशवासियों को देश का मालिक होने का अहसास दिला संविधान सम्मत,विविधता के विधाता भारत के निर्माण की पैरवी करता है. राजगति नाटक ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को धोता है और देशवासियों को राजनीति में विवेक सम्मत सहभगिता के लिए प्रेरित करता है .

3. नाटक ‘न्याय के भंवर में भंवरी’

पितृसत्तात्मक, सामन्ती, धर्मवादी, शोषणकारी और मर्दवादी बुनियाद पर टिके भारतीय समाज को समता, समानता, शोषणमुक्त, न्याय और शांतिप्रिय समाज बनाना काल की पुकार है. इसी पुकार को अर्थ देता है नाटक ‘न्याय के भंवर में भंवरी’ !

नाटक ‘न्याय के भंवर में भंवरी’ आधी आबादी की अपने हक की हुंकार है. अपने ऊपर होने वाले अन्याय के खिलाफ़ यलगार है. ‘न्याय के भंवर में भंवरी’ भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक, सामंतवादी, और धर्मवादी शोषण की बुनियाद पर प्रहार है. समता, समानता, शोषणमुक्त, न्याय और शांतिप्रिय समाज के निर्माण की पुकार है नाटक ‘न्याय के भंवर में भंवरी’!

 

लेखन-निर्देशन : रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज

कलाकार:अश्विनी नांदेडकर, बबली रावत ,योगिनी चौक, सायली पावसकर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के ,स्वाती वाघ, प्रियंका कांबळे,सुरेखा, बेटसी अँड्र्यूस आणि सचिन गाडेकर.

प्रकाश संयोजन : संकेत आवले

थिएटर ऑफ़ रेलेवंस की पार्श्वभूमि:
27 वर्ष पहले यानी 1992 में भूमंडलीकरण का अजगर प्राकृतिक संसाधनों को लीलने के लिए अपना फन विश्व में फैला चुका था. पूंजीवादियों ने दुनिया को ‘खरीदने और बेचने’ तक सीमित कर दिया. तर्क के किले ढह चुके थे और आस्था के मन्दिरों का निर्माण करने के लिए आन्दोलन शुरू हो चुके थे. भारत में भी आस्था परवान चढ़ी थी और राम मन्दिर निर्माण के बहाने विकारी लोग सत्ता पर कब्ज़ा जमाने का मार्ग प्रशस्त कर चुके थे. जिसका पहला निशाना था भारत के ‘सर्वधर्म समभाव’ के बुनियादी सिद्धांत पर. 6 दिसम्बर,1992 ‘सर्वधर्म समभाव’ वाले भारत के लिए काला दिवस है. भीषण साम्प्रदायिक दंगों ने भारत को फूंक दिया था जिसमें धर्मनिरपेक्षता खाक हो गई थी और धर्मान्धता ने अपने पैर पसार लिए थे. ऐसे समय में इंसानियत की पुकार बना ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत.

जब भूमंडलीकरण सारे सिद्धांतों को नष्ट कर रहा हो ऐसे समय में एक नाट्य सिद्धांत का सूत्रपात कर उसको क्रियान्वित करने की चुनौती किसी हिमालय से कम नहीं थी. पर जिस सिद्धांत की बुनियाद ‘दर्शक’ हो उसका जीवित होना लाजमी है. भूमंडलीकरण का अर्थ है एकाधिकारवाद,वर्चस्वाद,विविधता का खात्मा. किसी भी विरोध को शत्रु मानना. सवाल पूछने वाले को राष्टद्रोही करार देना. मनुष्य को वस्तु मानना और उसे मानव अधिकारों से बेदखल कर एक झुण्ड एक रूप में स्थापित करना जिसका नाम है मार्केट जो सत्ताधीशों के लिए भेड़ों की भीड़ होती है जयकारा लगाने के लिए.

भूमंडलीकरण ने पूरे विश्व के जनकल्याण,मानव अधिकार,न्याय और संवैधानिक सम्प्रभुता के सारे संस्थानों को ध्वस्त कर दिया है. सरकारों को मुनाफ़े की दलाली करने का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा है. मीडिया को सिर्फ़ सरकार के जनसम्पर्क विभाग की ज़िम्मेदारी दी. उसका काम सरकार से सवाल पूछना नहीं सरकार का जयकारा लगाना है. ऐसे समय में जनता की आवाज़ का मंच बना ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’!

विगत 27 वर्षों से सतत सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान के बिना अपनी प्रासंगिकता और अपने मूल्य के बल पर यह रंग विचार देश विदेश में अपना दमख़म दिखा रहा है, और देखने वालों को अपने होने का औचित्य बतला रहा है. सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’ सहभागिता पर खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” रंग आन्दोलन मुंबई से लेकर मणिपुर तक.

“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर रंग चेतना का उदय करके उसे ‘जन’ से जोड़ा है। अपनी नाट्य कार्यशालाओं में सहभागियों को मंच,नाटक और जीवन का संबंध,नाट्य लेखन,अभिनय, निर्देशन,समीक्षा,नेपथ्य,रंगशिल्प,रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों पर प्रशिक्षित किया है और कलात्मक क्षमता को दैवीय वरदान से हटाकर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तरफ मोड़ा है। पिछले 27 सालों में 16 हजार से ज्यादा रंगकर्मियों ने 1000 कार्यशालाओं में हिस्सा लिया है । जहाँ पूंजीवादी कलाकार कभी भी अपनी कलात्मक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं उठाते, इसलिए वे ‘कला’ कला के लिए के चक्रव्यहू में फंसे हुए हैं और भोगवादी कला की चक्की में पिस कर ख़त्म हो जा रहे हैं, वहीं थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ने ‘कला’ कला के लिए वाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ा,हजारों रंग संकल्पनाओं को रोपा और अभिव्यक्त किया है । अब तक 28 नाटकों का 16,000 से ज्यादा बार मंचन किया है.

भूमंडलीकरण पूंजीवादी सत्ता का ‘विचार’ को कुंद, खंडित और मिटाने का षड्यंत्र है. तकनीक के रथ पर सवार होकर विज्ञान की मूल संकल्पनाओं के विनाश की साज़िश है. मानव विकास के लिए पृथ्वी और पर्यावरण का विनाश, प्रगतिशीलता को केवल सुविधा और भोग में बदलने का खेल है. फासीवादी ताकतों का बोलबाला है भूमंडलीकरण ! लोकतंत्र, लोकतंत्रीकरण की वैधानिक परम्पराओं का मज़ाक है “भूमंडलीकरण”! ऐसे भयावह दौर में इंसान बने रहना एक चुनौती है… इस चुनौती के सामने खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन.

विगत 27 वर्षों से साम्प्रदायिकता पर ‘दूर से किसी ने आवाज़ दी’,बाल मजदूरी पर ‘मेरा बचपन’,घरेलु हिंसा पर ‘द्वंद्व’, अपने अस्तित्व को खोजती हुई आधी आबादी की आवाज़ ‘मैं औरत हूँ’ ,‘लिंग चयन’ के विषय पर ‘लाडली’ ,जैविक और भौगोलिक विविधता पर “बी-७” ,मानवता और प्रकृति के नैसर्गिक संसाधनो के निजीकरण के खिलाफ “ड्राप बाय ड्राप :वाटर”,मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने के लिए “गर्भ” ,किसानो की आत्महत्या और खेती के विनाश पर ‘किसानो का संघर्ष’ , कलाकारों को कठपुतली बनाने वाले इस आर्थिक तंत्र से कलाकारों की मुक्ति के लिए “अनहद नाद-अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स” , शोषण और दमनकारी पितृसत्ता के खिलाफ़ न्याय, समता और समानता की हुंकार “न्याय के भंवर में भंवरी” , समाज में राजनैतिक चेतना जगाने के लिए ‘राजगति’ नाटक के माध्यम से फासीवादी ताकतों से जूझ रहा है!

भूमंडलीकरण और फासीवादी ताकतें ‘स्वराज और समता’ के विचार को ध्वस्त कर समाज में विकार पैदा करती हैं जिससे पूरा समाज ‘आत्महीनता’ से ग्रसित होकर हिंसा से लैस हो जाता है. और आज तो विकारवादी पूरे बहुमत से सता पर काबिज़ है. हिंसा मानवता को नष्ट करती है और मनुष्य में ‘इंसानियत’ का भाव जगाती है कला. कला जो मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराए…कला जो मनुष्य को इंसान बनाए!

पूरे विश्व में मनहूसियत छाई है. भूमंडलीकरण की अफ़ीम ने तर्क को खत्म कर मनुष्य को आस्था की गोद में लिटा दिया है. निर्मम और निर्लज्ज पूंजी की सत्ता मानवता को रौंद रही है. विकास पृथ्वी को लील रहा है. विज्ञान तकनीक के बाज़ार में किसी जिस्मफरोश की तरह बिक रही है. भारत में इसके नमूने चरम पर हैं और समझ के बाहर हैं.चमकी बुखार से बच्चों की मौत की सुनामी और चंद्रयान की उड़ान. दस लाख का सूट और वस्त्रहीन समाज. लोकतंत्र की सुन्दरता को बदसूरत करते भीड़तन्त्र और धनतंत्र. न्याय के लिए दर दर भटकता हाशिए का मनुष्य और अपने वजूद के लिए लड़ता सुप्रीमकोर्ट. संविधान की रोटी खाने के लिए नियुक्त नौकरशाह आज अपने कर्मों से राजनेताओं की लात खाने को अभिशप्त. चौथी आर्थिक महासत्ता और बेरोजगारों की भीड़. जब जब मानव का तन्त्र असफ़ल होता है तब तब अंधविश्वास आस्था का चोला ओढ़कर विकराल हो समाज को ढक लेता है. लम्पट भेड़ों के दम पर सत्ताधीश बनते हैं और मीडिया पीआरओ. समाज एक ‘फ्रोजन स्टेट’ में चला जाता है. जिसे तोड़ने के लिए मनुष्य को अपने विकार से मुक्ति के लिए ‘विचार और विवेक’ को जगाना पड़ता है. विचार का पेटंट रखने वाले वामपंथी जड़ता और प्रतिबद्धता के फर्क को नहीं समझ पा रहे. आलोचना के नाम पर बिदक जाते है गांधी के विवेक की राजनैतिक विरासत मिटटी में मिली हुई है. ऐसे में समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए कलाकारों को विवेक की मिटटी में विचार का पौधा लगाना होगा. समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ अपनी कलात्मकता से विवेक की मिटटी में विचार का पौधा लगाने के लिए प्रतिबद्ध है!

……

 

 

 

 

 

मंजुल भारद्वाज :
“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार “थिएटर आफ रेलेवेंस” के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।

एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1500 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल भारद्वाज मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।

संपर्क
Tushar Mhaske
+91 9029333147
BLOG
Facebook
Google +


Manjul Bhardwaj
Founder – The Experimental Theatre Foundation www.etfindia.org
www.mbtor.blogspot.com
Initiator & practitioner of the philosophy ” Theatre of Relevance” since 12
August, 1992.

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार