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हिन्दी और उसकी बोलियों के गहरे और मधुर संबंध को तोड़ने की नापाक कोशिशें।
इन लोगों को समझना चाहिए कि भाषा एक विशाल समुदाय की जातीय अस्मिता का प्रतीक होती है और उसका प्रयोग उन छोटे-छोटे समुदायों के परस्पर संपर्क
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पं. दीन दयाल उपाध्याय का भाषा चिंतन
इस प्रकार उपाध्याय जी के भाषा संबंधी विचार गंभीर, सुलझे हुए और विद्वतापूर्ण हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने इस विषय पर गहन चिंतन कर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
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न्यायपालिका और हिन्दी: अवरोध और चुनौतियाँ
भारत की अधिकतर संख्या अपना भाषा-व्यवहार अपनी भाषा में करती है। फिर भी न्यायालयों की भाषा अंग्रेज़ी बनी हुई है। न्याय-व्यवस्था में पारदर्शिता की आवश्यकता रहती है।
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अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी : रूस के संदर्भ में
इसके बाद प्रो.खोखलोवा ने अपने व्याख्यान में बताया कि पंद्रहवीं शताब्दी में रूस में भारतीय भाषाओं के प्रति रुचि झलकने लगी थी,
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और कितने होनहार बलि चढ़ेंगे अंग्रेजी की खूनी वेदी पर
मध्यम-आय वर्ग और निम्न-आय वर्ग के प्रतिभाशाली बच्चों को विवश हो कर अंग्रेज़ी में शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है जबकि अपनी भाषा में हर
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केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक में क्या हुआ
केन्द्रीय हिन्दी समिति की 31वीं बैठक 6-09-2018 को माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अध्यक्षता में उन्हीं के निवास पर संपन्न हुई।
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हिन्दी को अब राष्ट्रभाषा होना ही है
राष्ट्रभाषा को समझने से पहले राष्ट्र, देश और जाति शब्दों को समझना असमीचीन न होगा। वस्तुत: ‘राष्ट्र’ को अंग्रेज़ी शब्द ‘नेशन’(Nation) का हिन्दी पर्याय माना जाता है, किंतु इन दोनों शब्दों में कुछ अंतर है। अंग्रेज़ी में ‘नेशन‘ शब्द से अभिप्राय किसी विशेष भूमि-खंड में रहने वाले निवासियों से है जबकि ‘राष्ट्र’ शब्द विशेष भूमि-खंड, […]
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अखबारों की भ्रष्ट भाषा
सुविख्यात वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने अखबारों में भ्रष्ट भाषा का जो मुद्दा उठाया है वह प्रासंगिक और सटीक है। इसमें दो राय नहीं कि पिछले कई सालों से हिन्दी की अखबारों में भ्रष्ट भाषा का प्रयोग हो रहा है। कई बार हिन्दी की व्याकरणिक संरचना गलत होती है और अब तो उसमें अंग्रेज़ी शब्दों की भरमार होती है। ऐसा लगता नहीं कि वह हिन्दी है, बल्कि हिंगलिश होती है। वास्तव में हर तबके के लोग अखबार पढ़ते हैं। सामान्य पढ़े-लिखे या अशिक्षित मजदूर, किसान, दुकानदार, ड्राइवर आदि से ले कर पढे-लिखे और उच्च-शिक्षित वर्ग सभी इसे पढ़ते और सुनते हैं। इसलिए अखबारों की भाषा के पाठकों की बौद्धिक क्षमता के अनुकूल होने की अपेक्षा रहती है। यह अगर सरल, सर्वग्राह्य, सर्वजन सुलभ एवं सुबोध, प्रयोगधर्मी और लचीली होती है तो वह एक विशिष्ट रूप लेती है। इसमें प्रचलित शब्दों का विकास स्वयं होता है अथवा ये शब्द इस प्रकार प्रयुक्त होते हैं जो जन-सामान्य की समझ में आ जाते हैं।
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भारत-भाषा प्रहरी
किसी भाषा के विकास और उसके प्रसार के लिए उसके भाषावैज्ञानिक पक्ष पर कार्य किए जाने की आवश्यकता होती है ।
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हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं की बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने में कोई औचित्य नहीं है ।
संविधान की आठवीं अनुसूची में मैथिली, डोगरी आदि बोलियों को शामिल कर जो भूल या गलती हुई है उससे अन्य बोलियों के बोलने वालों के लिए रास्ता खुल गया है।