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शालिग्राम शिला नहीं मानों रामजी स्वयं लोगों के बीच आ गए
रात्रि विलंब से लौटा एक रात्रि भोज से जिसमें फ़िल्म उद्योग से जुड़े कुछ मित्र थे। कुछ महानुभाव चंडीगढ़ से आये थे ये जानने के लिये कि ‘बालिवुड’ की समस्यायें क्या हैं और उनके क्या समाधान हैं जो हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी को सुझाये जा सकें। ऐसी पार्टियों में कुछ होता नहीं है वैसे। सब […]
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एक संघ कार्यकर्ता की पीड़ाः भाजपा और संघ नेतृत्व अपने कार्यकर्ताओं के साथ दृढ़तापूर्वक खड़ा क्यों नहीं होता?
ये १९६० के दशक की बात है। मैं एक बाल स्वयंसेवक था। संभवत: मेरे जन्म के कुछ महीनों बाद ही मुझे कोई संघ स्थान पर ले गया होगा। पिता जिला संघचालक थे। बलिया में जब सरस्वती शिशु मंदिर प्रारंभ हुआ तो मैं उसका पहला विद्यार्थी बना। उसके पहले मैं माँटेसरी स्कूल में पढ़ता था।