Friday, April 19, 2024
spot_img
Homeसोशल मीडिया सेमैं मुसलमान तो बन जाऊँ, मगर मेरी ढाई शंका है!

मैं मुसलमान तो बन जाऊँ, मगर मेरी ढाई शंका है!

शंका दो हो या तीन हो सकती है, किन्तु ढाई शंका कैसे?

वाक्या जनवरी 2016 विश्व पुस्तक मेले का था|

देश, विदेश से आये पुस्तक प्रेमी धार्मिक, सामाजिक, स्वास्थ और साहित्य आदि पर लिखी पुस्तकें खरीद रहे थे|

किन्तु इन सब के बीच, पुस्तकों की आड़ में कुछ सम्प्रदाय धर्मांतरण का कुचक्र भी रच रहे थे|

एक इस्लामिक स्टाल पर कुछेक लोगों की भीड़ देखकर में भी पहुँच गया|

पता चला कुरान ए शरीफ की प्रति लोगों को फ्री बांटी जा रही है|

एकाएक एक सज्जन अपनी धर्मपत्नी जी के साथ स्टाल में पधारे।

उन्होंने मुस्लिम विद्वान् के सामने अपना प्रश्न रखा कि में अपनी धर्मपत्नी के साथ इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ।

लेकिन, इस्लाम स्वीकार करने से पहले मेरी ढाई शंका है।

यदि आप उनका निवारण कर पाए तो ही में इस्लाम स्वीकार कर सकता हूँ!

मुस्लिम विद्वान् ने कहा बताईए।

सज्जन- मेरी पहली शंका है कि सभी इस्लामिक बिरादरी के मुल्कों में जहाँ मुस्लिमों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है मसलन मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक है उनमें एक भी देश में समाजवाद नहीं है, लोकतंत्र नहीं है, वहां अन्य धर्मो में आस्था रखने वाले लोग सुरक्षित नहीं है, जिस देश में मुस्लिम बहुसंख्यक होते हैं कट्टर इस्लामिक शासन कि मांग होने लगती है मतलब उदारवाद नहीं रहता, लोकतंत्र नही रहता, लोगों से उनकी अभिवयक्ति की स्वतंत्रता छीन सी ली जाती है आप इसका कारण स्पष्ट करें, ऐसा क्यों?

मुस्लिम विद्वान के चेहरे पर एक शंका ने हजारों शंकाए खड़ी कर दी| फिर भी उसने अपनी शंकाओं को छिपाते हुए कहा, दूसरी शंका प्रकट करें|

सज्जन – मेरी दूसरी शंका है, पुरे विश्व में यदि वैश्विक आतंक पर नजर डाले तो इस्लामिक आतंक की भागीदारी 95 फीसदी के लगभग है| अधिकतर मारने वाले आतंकी मुस्लिम ही क्यों होते है?

अब ऐसे में यदि मैंने इस्लाम स्वीकार किया तो आप मुझे कौनसा मुसलमान बनओंगे?

हर रोज जो या तो कभी मस्जिद के धमाके में मर जाता, तो कभी जरा सी चुक होने पर पर इस्लामिक कानून के तहत दंड भोगने वाला या फिर वो मुसलमान जो हर रोज बम धमाकेकर मानवता की हत्या कर देता है, इस्लाम के नाम पर मासूमों का खून बहाने वाला या सीरिया की तरह औरतो को अगुवा कर बाजार में बेचने वाला, मतलब में मरने वाला मुसलमान बनूंगा या मारने वाला?

यह सुनकर दूसरी शंका ने मानों उन विद्वान पर हजारों मन बोझ डाल दिया हो|

दबी सी आवाज़ में उसने कहा बाकि बची आधी शंका बोलो?

आर्य सज्जन ने मंद सी मुस्कान के साथ कहा वो आधी शंका मेरी धर्मपत्नी जी की है|

इनकी शंका आधी इसलिए है कि इस्लाम नारी समाज को पूर्ण दर्जा नहीं देता हमेशा उसे पुरुष की तुलना में आधी ही समझता है तो इसकी शंका को भी आधा ही आँका जाये!

मुस्लिम विद्वान ने कुछ लज्जित से स्वर में कहा जी मोहतरमा फरमाइए!

सज्जन की धर्मपत्नी जी ने बड़े सहज भाव से कहा ये इस्लाम कबूल कर ले मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं किन्तु मेरी इनके साथ शादी हुए करीब 35 वर्ष हो गये यदि कल इस्लामिक रवायतो, उसुलो के अनुसार किसी बात पर इन्हें गुस्सा आ गया और मुझे तलाक, तलाक, तलाक कह दिया तो बताइए में इस अवस्था में कहाँ जाउंगी?

यदि तलाक भी ना दिया और कल इन्हें कोई पसंद आ गयी और ये उससे निकाह करके घर ले आये तो बताइए उस अवस्था में, मैं मेरे का बच्चों का मेरे गृहस्थ जीवन क्या होगा?

तो ये मेरी आधी शंका है| इस प्रश्न के वार से मुस्लिम विद्वान को निरुत्तर कर दिया।

उसने इन जबाबों से बचने के लिए कहा आप अपना परिचय दे सकते है| सज्जन ने कहा मेरी शंका ही मेरा परिचय है यदि आपके पास इन प्रश्नों का उत्तर होगा हमारी ढाई शंका का निवारण आपके पास होगा तो आप मुझे बताना|

सज्जन तो वहां से चले गये मौलाना साहब सर पकड़कर बैठे रहे |

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार