Thursday, March 28, 2024
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अन्धकार के नाश का कारण प्रकाश

वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है | जो ज्ञान वेद में दिया है , उसे आम व्यवहार का ज्ञान कहा जा सकता है | यह बात तो साधारण सा व्यक्ति भी जनता है कि जहां प्रकाश प्रवेश करेगा, वहां से अन्धकार भाग खड़ा होगा | प्रकाश के सामने अन्धकार रह ही नहीं सकता | वेद ने ही इस तथ्य का ज्ञान कराया है | सामवेद का प्रथम मन्त्र ही इस बात की और संकेत कर रहा है |

यथा :-
अग्न आयाहि वीतये गृणानो हव्यदातये ,
नि होता सत्सि बर्हिषि || सामवेद १ ||

भावार्थ
मन्त्र इस भाव को प्रकट करता है कि जिस प्रकार अन्धकार का नाश प्रकाश आने मात्र से हो जाता है , उस प्रकार ही अनन्य भक्ति से आराधित प्रभु जीव की वासनाओं का विनाश करते हैं | ज्यों ही मानव के हृदय में प्रभु के गुणों का प्रकाश होता है , त्यों ही उसके अनदर का सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा से प्रेरित करते हुये उनके कर्म रुपि बन्धनों को काट देते हैं | जो हृदय वासना से शून्य हो जाता है , उस में ही उस महोपदेशक प्रभु की प्ररेणा सुनाई देती है | आओ मन्त्र के इस भाव के आलोक में हम मन्त्र की विषद् व्याख्या का अवलोकन करें |

व्यख्यान
१ . अग्नि देव हमें आगे ले जाइये
हे सब को आगे ले जाने वाले अग्नि देव ( अग्नि ) ! अथवा अपने भक्तों को मुक्ति तक ले जाने वाले प्रभो ! आप को ही वेद ने अग्नि नाम से स्वीकार किया है | बार बार वेद में इस नाम से आपको पुकारा है | यह नाम ही वेद में अधिकांश बार आपके लिये आया है | इस नाम से हमें हमारे जीवन के लक्ष्य का भी संकेत मिलता है | संकेत यह है कि हे प्रभु ! आप ने हमें मोक्ष तक ले जाना है | हमने इस लक्ष्य को पाने के लिए सदा आपकी शान्तिमयी गोद को पाने का यत्न करना है ,जिसके लिए आप की भक्ति हम निरन्तर करने का प्रयास करते हैं | आप ही की कृपा से ही हम इस लक्ष्य को पा सकते हैं | इसलिए हे प्रभु ! आप आइये ( आयाहि ) और हमारे हृदय के अन्दर जो अन्धकार भरा है , उसका नाश कर दीजिये ( वितये )| जहां प्रभु के आशिर्वाद रुपि ज्ञान का प्रकाश होता है वहां अन्धकार कहां ? , कयोंकि प्रभु के ज्ञान रुपि प्रकाश की ज्योति मात्र से ही सब प्रकार के काम भस्म हो जाते हैं |

२ . प्रभु हमें कल्याण के मार्ग का उपदेश देवें ( गृणान: ) |
इस भावार्थ से यह तथ्य सामने आता है कि परमपिता परमात्मा के अनन्य भक्त अर्थात् प्रभु का वह भक्त जो निओरन्तर प्रभु भक्ति में ही रहता है , प्रभु भक्ति के कारण उसमें वासनाओं के लिए स्थान ही नहीं रहता | इस कारण यदि उसके अन्दर कुछ सीमा तक वासनाएं हों तो प्रभु उनका नाश कर देते हैं और वह भक्त सफेद कपडे की भाँति बिलकुल साफ़ हो जाता है | अत: प्रभु ! भक्तों को कर्म क्षेत्र के इन बन्धनों से मुक्त करने के लिए आप आइये | पर्भु का अह्वान केवल प्रभु के भक्त ही सुन सकते हैं | जो प्रभु भक्त नहीं, वह प्रभु के आह्वान को क्यों सुनेंगे | हव्य शब्द के अनुसार केवल वह जीव ही हव्य की श्रेणी में आते हैं, जो प्रभु में पूर्ण श्रद्धा रखते हुये प्रभु की कृपा के पात्र बनते हैं |

३ . महान् उपदेशक
हमारा प्रभु हमारे लिए महान् उपदेशक है ( होता ) | अत: हे महान् उपदेशक प्रभो ! आप केवल और केवल उस हृदय में ही निवास करते हो ( निसत्सि ) , जिसमें से वासनाओं का पूर्ण रुप से विनाश हो गया हो तथा अन्धकार दूर हो गया हो ( बर्हिषि ) | जिसने उस सर्वव्यापक प्रभु का दर्शन करना हो , पहले उसे अपने हृदय को पवित्र करना होगा क्योंकि उस प्रभु के दर्शन पवित्र हृदय से ही सम्भव हैं | प्रभु ! आप के साक्षात्कार से ,आपके सम्पर्क मात्र में आने से हम शक्ति सम्पन्न बन जाते है | प्रभु | मैं भी इस मन्त्र के ऋषि भारद्वाज के अनुरुप अपने में शक्ति भरने वाला बन सकूं |

इस प्रकार इस मन्त्र में तीन बातों पर विशेष रुप से बल दिया गया है :
१ . अग्नि देव हमें आगे ले जाइये ( अग्नि ) |
२ . प्रभु हमें कल्याण के मार्ग का उपदेश देवें ( गृणान: ) |
३ . महान् उपदेशक
वह परमपिता परमात्मा अग्नि स्वरुप है | जिस प्रकार अग्नि में डाला गया प्रत्येक पदार्थ सुक्ष्म हो कर आकाश की और आगे बढ जाता है , उस प्रकार ही प्रभु हमें हमारे जीवन के लक्ष्य अर्थात् मुक्ति तक ले जाने वाला है |
परमपिता हमें सदा कल्याण के मार्ग का उपदेश करते हैं और हमारे कल्याण के लिए ही सदा तत्पर रहते हैं |
हमारे वह पिता उपदेशकों के भी उपदेशक होने के कारण एक महान् उपदेशक है | हम उसके उपदेश के अनुसार चलेंगे तो निशचय ही हमारा कल्याण सम्भव है |
ये तीन बातें ही प्रत्येक मानव के जीवन का सार हैं | इन पर चलने वाले को सदा विजय ही मिलती है मोक्ष के अधिकारी होते हैं |

डा. अशोक आर्य
पाकेट १ / ६१ प्रथम तल रामप्रस्थ ग्रीन सेक्टर ७
वैशाली २०१०१२ गाजियाबाद उ. प्र. भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६
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