Thursday, April 25, 2024
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फिल्मी परदे से मन की आँखों में उतरी एक फिल्म

इस फिल्म को देखना एक अद्भुत, यादगार और प्रेरक अनुभव था, परदे पर फिल्म चल रही थी और जिन दर्शकों के लिए फिल्म का प्रदर्शन किया गया था, वे अपनी आँखों से फिल्म नहीं देख सकते थे, लेकिन फिल्म का एक-एक दृश्य परदे से उनकी मन की आँखों तक पहुँच रहा था। फिल्म थी आसम मौसम और आँखों की रोशनी से वंचित दर्शकों के लिए इसके विशेष प्रदर्शन का इंतजाम फिल्म के निर्देशक योगेश भारद्वाज और इसके हीरो राहुल शर्मा ने किया था। किसी जोरदार दृश्य पर दर्शकों की तालियाँ और आम दर्शकों की तरह बीच बीच में आ रही प्रतिक्रयाएँ इस प्रयोग की सफलता का प्रमाण थी।

फिल्म के एक एक दृश्य को इसके निर्देशक श्री योगेश भारद्वाज और डॉ. नेहा गोयल लाईव कमेंट्री के जरिए दर्शकों तक पहुँचा रहे थे। नैत्रहीन दर्शकों के लिए इस फिल्म को लाईव कमेंट्री के साथ देखना अपने आप में एक रोमांचक अनुभव था। श्री भारद्वाज अपनी सधी हुई कमेंट्री से फिल्म के एक एक दृश्य को इन दर्शकों की मन की आँखों में उतार रहे थे। फिल्म के प्रदर्शन में मौजूद पत्रकारों के लिए भी ये एक अलग अनुभव था। इस विशेष प्रदर्शन का सारा इंतजाम निधि गोयल ने किया था।

37ea177a-9da3-4075-b8a4-d8e4b24f5738फिल्म खत्म होने के बाद नैत्रहीन दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ भी लाजवाब थी। एक दर्शक का कहना था कि फिल्म में जब हँसी का दृश्य आए तो हम हँसे कैसे, क्योंकि कमेंट्री करने वाला अगर कहे भी कि इस दृश्य में हँसना है तो बात गले नहीं उतरेगी, क्या कमेंट्री में ऐसा कोई प्रयोग हो सकता है कि हँसी का दृश्य आने पर हम अपने आप हँसने को मजबूर हो जाएँ। एक महिला दर्शक की प्रतिक्रिया ने तो सभी दर्शकों को ठहाका लगाने पर मजबूर कर दिया। उसका कहना था कि फिल्म की हीरोईन ने कब कैसे कपड़े पहने थे और वो कैसी लग रही थी, अगर ये बात भी कमेंट्री में होती तो हमें फिल्म देखने में और भी मजा आता।

इस भावुक कर देने वाले प्रयोग में ये बात तो साफ हो गई कि एक आम आँख वाले दर्शक के लिए फिल्म देखना एक सहज मनोरंजन हो सकता है लेकिन मन की आँखों से फिल्म के एक एक दृश्य को अपनी कल्पना में उतारना और उसके आनंद को अनुभव करना एक अलग अनुभव होता है। श्री योगेश भारद्वाज और श्री राहुल शर्मा ने इस अभिनव प्रयोग की शुरुआत कर प्रशंसनीय पहल की है। बॉलीवुड में करोड़ों की फिल्में बनाने वाले निर्माता-निर्देशकों को चाहिए कि वे अपनी फिल्मों के दर्शक वर्ग में नैत्रहीन दर्शकों के लिए भी ऐसा कुछ करें कि वे भी एक आम दर्शक की तरह फिल्म का आऩंद ले सकें।

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