Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeसोशल मीडिया सेआरक्षण: एक बोध कथा

आरक्षण: एक बोध कथा

रात के समय एक आदमी को उसके घर वाले अस्पताल ले के आये, उसके पैर की हड्डी में फ्रैक्चर था! मरीज का फ्रैक्चर गंभीर नहीं था तो कुछ दिनों बाद उसे छुट्टी दे दी गयी पर घर पर ही रहने की सलाह दी गयी चूंकि वो बिना सहारे के चल नहीं पा रहा था तो डॉक्टरों ने इस समस्या के हल के रूप में उसे सरकारी अस्पताल से मुफ़्त में मिलने वाली बैसाखी देते वक़्त बोला … कि ये सरकार की तरफ से 5_हफ्ते के लिये है इसलिए इसकी संख्या और सीमा निर्धारित है, जब आप खुद से चलने में समर्थ हो जाओ तो इस बैसाखी को लौटा देना ताकि ये भविष्य में आने वाले आप जैसे लोगों के भी काम आ सके!

फिर वो लिखी हुई दवाएं लेने सरकारी दवाखाने पंहुचा तो वो भी लाइन में लग गया , लाइन में लगे बाकि लोगों ने जब उसके पैर में प्लास्टर बंधा और बैसाखी के सहारे खड़े देखा तो मानवता के चलते उसे आगे जाने दिया और उसे दवा जल्दी ही मिल गयी।

अब उसे स्टेशन जाना था तो ऑटो पकड़ने पंहुचा,ऑटो रुकी तो ऑटो वाले ने भी उसकी लाचारी को देखते हुए उसके सामान को उठा कर रख दिया और उसको भी चढ़ने में मदद की और स्टेशन तक छोड़ा!… ट्रेन पकड़ने पंहुचा तो ट्रेन में बहुत भीड़ थी, बैठने की जगह न होने से खड़ा रहना पड़ा फिर लोगों ने देखा कि बेचारा बैसाखी के सहारे एक आदमी खड़ा है तो एक आदमी ने उठ कर उसे अपनी सीट दे दी और वो घर आराम से पहुच गया! कुछ दिनों में उसकी मेडिकल लीव भी ख़त्म हो चुकी थी तो ऑफिस जाना था, सुबह तैयार हो कर बाहर निकला और बस का वेट करने लगा… पड़ोसी ने देखा कि बेचारा बैसाखी के सहारे चल रहा है तो उसे ऑफिस तक अपने स्कूटर पर छोड़ आए!.

 इतने दिन बाद ऑफिस पंहुचा था तो काम बहुत था लेकिन ऑफिस कलीग्स ने भी उसके लाचारी पर सहानभूति दिखाई और उसके ज्यादातर काम उन्होंने करके उसका हाथ बटाया मतलब ऑफिस में भी आराम रहा!… घर लौटा तो साथ वाले ने घर तक छोड़ दिया!… दिन बड़ा आराम से बीता था उसका, इसलिए उसके दिमाग में अब कुछ-कुछ चल रहा था!… वह सोचने लगा….अगर मैं *ठीक न होने का* नाटक करूं तो ऐसे ही सब लोगों की सहानभूति मिलती रहेगी… या फिर कभी ये बैसाखी ही न छोड़ूं तो? … तो सारे काम आसानी से होते रहेंगे और फिर ये बैसाखी अपने बच्चे को दे दूं तो वो भी मेरी तरह फायदा उठा पायेंगे!.

और फिर उसने अस्पताल में वो बैसाखी कभी वापस नहीं की। फिर ऐसे ही कई अन्य मरीज़ों ने भी किया और कुछ दिनों में ही सरकारी बैसाखियां जो लोगो के मदद के लिए थी ख़त्म हो गयी और हर बैसाखी कुछ चंद लोगों की व्यक्तिगत बपौती बन चुकी थी जिसे वो अपने बच्चों को थमाने का प्लान बना चुके थे!…जबकि दूसरे बहुत सारे मरीज़ बैसाखियों के आस में बैठे हुए हैं!!… आज बरसों बरस बाद भी इस वाकये का दूर तक आर*क्षण से कोई संबंध नहीं है़ बस इसका संबंध उन नए अपहिजो से है़ जो उन बैसाखियों की आस लगा के बैठे हैं! मोदी जी ने ews आरक्षण ला दिया। अब आरक्षण कोई भी खत्म नही कर सकता है। कोई भी पार्टी नेता इसमें हाथ डालकर खुद को नही जलाएगा। यह सच्चाई है। मुझे तो लगता है जैसा माहौल है आने वाला समय में इसका दायरा और बढ़ सकता है आज के दौर में यह सबसे सस्ता राजनीतिक हथियार है।

साभार – गोपाल पंडित (@panditjii99 के ट्वीटर पेज से 

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार