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व्यंग्य
 

  • मूर्खता बड़ी कि होशियारीः एक संक्षिप्त शोध प्रबंध

    मूर्खता बड़ी कि होशियारीः एक संक्षिप्त शोध प्रबंध

    मूर्खता बहुत चिंतन नहीं माँगती। थोड़ा-सा कर लो, यही बहुत है। न भी करो तो चलता है। तो फिर मैं क्यों कर रहा हूँ? यों ही मूर्खतावश तो करने नहीं बैठ गया? नहीं साहब। हमसे बाकायदा कहा गया है कि करके दीजिए। इसीलिए कर रहे हैं। संपादक ने तो यहाँ तक कहा कि यह काम आपसे बेहतर कोई नहीं कर सकता और मूर्खता की बात चलते ही सबसे पहले आपका ही खयाल आया था।

  • डाककर्मी के पुत्र मुंशी प्रेमचंद ने लिखी साहित्य की नई इबारत – कृष्ण कुमार यादव

    हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके मुंशी प्रेमचंद के पिता अजायब राय श्रीवास्तव डाकमुंशी के रूप में कार्य करते थे। ऐसे में प्रेमचंद का डाक-परिवार से अटूट सम्बन्ध था।  पोस्टमास्टर जनरल कार्यालय में प्रेमचंद की जयंती पर आयोजित एक समारोह में उक्त उद्गार  राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र के […]

  • आजादी के बाद इस देश में सिर्फक्रिकेट का ‘ विकास’ हुआ है …!!

     नो डाउट अबाउट दिस … की तर्ज पर दावे के साथ कह सकता हूं कि अपना देश विडंबनाओं से घिरा है। हम भारतवंशी एक ओर तो विकास – विकास का राग अलाप कर राजनेता से लेकर अफसरशाही तक की नींद हराम करते हैं लेकिन जब सचमुच किसी क्षेत्र का विकास होने लगता है तो इसमें […]

  • व्यापक… व्यापमं….!!

     व्यापमं….। पहली बार जब यह शब्द सुना तो न मुझे इसका मतलब समझ में  आया और न मैने इसकी कोई  जरूरत ही समझी। लेकिन मुझे यह अंदाजा बखूबी लग गया कि इसका ताल्लुक जरूर किसी व्यापक दायरे वाली चीज से होगा। मौत पर मौतें होती रही, लेकिन तब भी मैं उदासीन बना रहा। क्योंकि एक […]

  • एक कुत्ते की डायरी

    शुनिचैव श्‍वापाके च पंडित: समदर्शिन:। (गीता) मेरा नाम 'टाइगर' है, गो शक्‍ल-सूरत और रंग-रूप में मेरा किसी भी शेर या 'सिंह' से कोई साम्‍य नहीं। मैं दानवीर लाला अमुक-अमुक का प्रिय सेवक हूँ; यद्यपि वे मुझे प्रेम से कभी-कभी थपथपाते हुए अपना मित्र और प्रियतम भी कह देते हैं। वैसे मैं किस लायक हूँ? मतलब […]

  • ‘सेवा ‘ में करियर…!!

    साइकिल – घड़ी और रेडियो। यदि एेसी चीजें सात फेरे लेने जा रहे दुल्हे की खिदमत में पेश की जाती थी, तो आप सोच सकते हैं कि वह जमाना कितना वैकवर्ड रहा होगा। तब की पीढ़ी के लिए करियर का मतलब साइकिल के पीछे लगे उस सहायक उपकरण  से था, जिस पर बैठा कर वह […]

  • बुढ़ौती में तीरथ

    कहते हैं कि अंग्रेजों ने जब रेलवे लाइनें बिछा कर उस पर ट्रेनें चलाई तो देश के लोग उसमें चढ़ने से यह सोच कर डरते थे कि मशीनी चीज का क्या भरोसा, कुछ दूर चले और  भहरा कर गिर पड़े। मेरे गांव में एेसे कई बुजुर्ग थे जिनके बारे में कहा जाता था कि उन्होंने […]

  • ​मौत पर भारी मैच …!!​

    क्रिकेट का एक मैच यानी हजारों सहूलियत का कैच। बाजार के लिए यह खेल बिल्कुल गाय की तरह है। जो हमेशा देती ही देती है। नाम – दाम और पैसा बस इसी खेल में है। दूसरे खेलों के महारथी जीवन – भर सुख – सुविधाओं का रोना रोते हैं, जबकि यही सुख – सुविधाएं  मानो […]

  • कुछ ऐसी रेलगाड़ियाँ भी चलेगी सेलीब्रिटीज़ के नाम पर!

     देश के रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु द्वारा ब्रांड्स के नाम पर ट्रेन दौड़ाने की घोषणा के साथ सेलिब्रिटीज के नाम ट्रेनों का सोसल मीडिया पर ट्रेंड चल गया है। मोदी एक्सप्रेस : सुरेश प्रभु ने रेल बजट में एक मोदी एक्सप्रेस नाम की ट्रेन चलाने की घोषणा की है। ट्रेन चलेगी नहीं, सिर्फ तेज […]

  • समस्याएं कांग्रेस हो गई और कांग्रेस समस्या हो गई!

    कांग्रेस का राज 30 साल पहले कैसा था और आज कैसा है इसका अंदाज़ा आपको देश के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार स्व. शरद जोशी के इस व्यंग्य लेख से हो जाएगा-ये लेख स्व. जोशी ने 36 साल पहले वर्ष 1977 में लिखा था। कांग्रेस को राज करते करते तीस साल बीत गए । कुछ कहते हैं, तीन […]

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