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परसाई के बहाने
हिंदी साहित्य के मशहूर व्यंग्यकार और लेखक हरिशंकर परसाई से आज कौन परिचित नहीं है और जो परिचित नहीं है उन्हें परिचित होने की जरूरत है. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के जमानी गाँव में 22 अगस्त 1924 में पैदा हुए परसाई ने लोगों के दिलों पर जो अपनी अमिट छाप छोड़ी है.
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बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापारी
एक जमाना था जब गाँधी जी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और भारत की जनता गाँधी जी साथ खड़ी थी. भारत के कुछ लोगों को अपनी इस बहिष्कार की गलती का अहसास हुआ कि पूरी दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है और भारत तकनीकी तौर पर पिछड़ गया है .
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देशभक्ति की ओवर डोज
नए भारत में देशभक्ति के मायने औए पैमाने बदल गये हैं. इसीलिए भारतीय संस्कृति की महान परम्परा का जितना प्रचार प्रसार भारत में किया जाता है शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो यह सब करता हो.
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बोलो अच्छे दिन आ गये
देश के उन लोगों को शर्म आनी चाहिए जो सरकार की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि अच्छे दिन नहीं आये हैं. उनकी समझ को दाद तो देनी पड़ेगी मेमोरी जो शोर्ट है. इन लोगों का क्या लोंग मेमोरी तो रखते नहीं.
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हरेक बात पर कहते हो घर छोड़ो
घर के मुखिया ने कहा यह वक्त छोटी-छोटी बातों को दिमाग से सोचने का नहीं है. यह वक्त दिल से सोचने का समय है, क्योंकि छोटी-छोटी बातें ही आगे चलकर बड़ी हो जाती हैं.
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शिकार करने का जन्मसिद्ध अधिकार
एक बार जंगल राज्य में राजा का चुनाव होना था. अजी चुनाव क्या... बस खाना-पूर्ति तो करनी थी ताकि जंगल लोकतंत्र का भी ख्याल रखा जा सके.
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कल्लू मामा जिंदाबाद
सोशल मीडिया पर एक चरित्र “कल्लू मामा” रोज आता है बिंदास किसी की परवाह किये बिना लिखता है तब मैंने इस कल्लू मामा को समझने की कोशिश की ....हालाँकि मैंने आज तक इनको न देखा है न सुना बस फेसबुक पर ही पढ़ा है.....तब मैंने व्यंग्यकार सुभास चंदर का व्यंग्य संग्रह ‘कल्लू मामा जिंदाबाद’ पढ़ने का मन बनाया.
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पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं
पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं गिरा जो इतनी आफत कर रखी है. रोज ही तो दुर्घटनाएं होती हैं. अब सबका रोना रोने लगे तो हो गया देश का विकास.
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पुरुषवादी मानसिकता
पिछले दिनों महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शनि मंदिर में प्रवेश को लेकर आन्दोलनकारियों और मंदिर समिति की तमाम कार्यवाहियाँ हमारे सामने आ चुकी हैं.