Tuesday, April 23, 2024
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अदालतों से अंग्रेजी को भगाओ

कानून और न्याय की संसदीय कमेटी ने बड़ी हिम्मत का काम किया है। उसने अपनी रपट में सरकार से अनुरोध किया है कि वह सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को शुरु करवाए। उसने यह भी कहा है कि इसके लिए उसे सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति या सहमति की जरुरत नहीं है, क्योंकि संविधान की धारा 348 में साफ-साफ लिखा है कि यदि संसद चाहे तो उसे भारतीय भाषाओं को अदालतों में चलाने का पूरा अधिकार है। लेकिन हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल ही इस तरह की मांग को खारिज करते हुए कहा था कि इस तरह की मांग करना न्याय-प्रक्रिया का दुरुपयोग करना है।

इसके पहले विधि आयोग ने अपनी रपट में कहा था कि हमारी अदालतों में सिर्फ अंग्रेजी को ही बनाए रखना जरुरी है, क्योंकि सारे कानून अंग्रेजी में हैं और जजों का तबादला कई प्रांतों में होता रहता है। वे आखिर कितनी भाषाएं सीखेंगे?

विधि आयोग और सर्वोच्च न्यायालय के ये तर्क उनकी भाषाई गुलामी के प्रमाण हैं। यदि सभी प्रांतीय भाषाओं में फैसले देने में कठिनाई है तो वकीलों को कम से कम उन भाषाओं में बहस करने की इजाजत क्यों नहीं दी जा सकती? सर्वोच्च न्यायालय में भी सारी बहस हिंदी में क्यों नहीं हो सकती? अगले पांच साल के लिए केंद्र और प्रांतों में ज्यादातर अदालती काम-काज सिर्फ हिंदी में क्यों नहीं शुरु किया जाता? धीरे-धीरे वह सभी भाषाओं में शुरु हो जाएगा।

विभिन्न भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ाया इसीलिए जाता है कि अंग्रेजी बनी रहे, लदी रहे। किस महाशक्ति और संपन्न राष्ट्र में अदालतें विदेशी भाषा में काम करती हैं? सिर्फ भारत-जैसे पूर्व-गुलाम देशों में करती हैं। विदेशी भाषा में कानून बनाना और न्याय देना शुद्ध मजाक है। जादू टोना है। आम आदमी को ठगना है। यह भी सिद्ध करना है कि हमारे वकील और जज आलसी हैं या मंद बुद्धि हैं। यदि सरकार में थोड़ा भी साहस हो तो वह सारे कानून हिंदी में बनाना शुरु कर दे और सर्वोच्च न्यायालय को संसद आदेश दे दे कि वह हिंदी को प्रोत्साहित करे।

पांच साल बाद अदालतों से अंग्रेजी को प्रतिबंधित कर दिया जाए। समस्त सरकारी और अदालती काम-काज को अंग्रेजी से हिंदी में करने और अन्य भाषाओं में करने के लिए एक विशाल अनुवाद मंत्रालय की स्थापना की जाए लेकिन यह क्रांतिकारी काम करेगा कौन? क्या हमारे नेताओं में इतनी बुद्धि है? उनमें न बुद्धि है और न ही साहस! यह काम तो तभी होगा, जब जनता जबर्दस्त आंदोलन खड़ा करेगी और इस मुद्दे पर सरकारों को गिराने पर कमर कस लेगी।

साभार- http://www.nayaindia.com/ से

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