Thursday, April 25, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेअनजान और पिछड़े गाँव के होनहार छात्रों ने शहरों के सुविदासंपन्नों से...

अनजान और पिछड़े गाँव के होनहार छात्रों ने शहरों के सुविदासंपन्नों से बाजी मारी

इंदौर। बरसी, रेहटगांव जैसे छोटे-छोटे गांवों को शायद गूगल पर ढूंढना भी मुश्किल होगा, लेकिन इन्हीं छोटे गांवों के स्टूडेंट्स ने ऐसा कमाल किया, जो शायद मेट्रो सिटी के स्टूडेंट्स के लिए करना भी नामुमकिन था। नागदा, खरगोन, आलीराजपुर, हरदा के आसपास के छोटे गांवों के किसान परिवार के स्टूडेंट्स ने अपनी मेहनत के दम नया मुकाम हासिल किया है।

देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के एमसीए कोर्स में प्रवेश के लिए हुई परीक्षा में 1 से लेकर 42वीं रैंक पर प्रदेश के ही स्टूडेंट्स ने नाम दर्ज कराया है। खास बात यह कि इन सभी स्टूडेंट्स ने तैयारी इंदौर में रहकर की है। इस यूनिवर्सिटी में एमसीए की केवल 54 सीट होती है, जिनमें से 42 पर प्रदेश के स्टूडेंट्स ने दावेदारी की है।

न मार्गदर्शन न फीस देने की गुजाइंश

जितेंद्र मिश्रा एकेडमी के डायरेक्टर जितेंद्र मिश्रा ने बताया कि छोटे गांवों में स्कूल में पढ़ाई करना भी स्टूडेंट्स के लिए मुश्किल है। ऐसे स्थिति में भी मेहनत के दम पर टॉपर्स ने अपनी सफलता की कहानी लिखी है। जेएनयू में इस बार टॉप रैंक हासिल करने वाले बलवंत सिंह की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी कि वे 10 से 12वीं तक की पढ़ाई तक भी कर सके। इसके बाद भी उन्होंने किसी तरह ग्रेजुएशन करके जेएनयू की एमसीए एग्जाम में अपने गांव का नाम रोशन किया। उन्होंने पुणे से लेकर आंधप्रदेश और जेएनयू जैसे टॉप कॉलेजों की एग्जाम में टॉप रैंक हासिल की।

पूरे क्षेत्र का नाम करना है रोशन

चंद्रिका चौरड़िया रैंक-2

पिता – विजय चौरड़िया (ज्वेलरी बिजनेस)

माता – किरण चौरड़िया

चंद्रिका चौरड़िया कहती हैं मैं मंदसौर जिले के एक छोटे से गांव भानपुरा से हूं। हमारे गांव में पढ़ाई के ज्यादा साधन नहीं हैं, इसके बावजूद मेरे पिता विजय चौरड़िया ने हम चारों बहनों को खूब पढ़ाया है। मैंने सोचा नहीं था कि मेरी रैंक इतनी अच्छी होगी। इस एग्जाम के लिए मैं सुबह 7 से लेकर रात 8 बजे तक लगातार पढ़ाई करती ताकि खुद को साबित कर पाऊं और मैंने यह कर दिखाया। मैं एनआईटी से एमसीए करने के बाद गूगल, माइक्रोसॉफ्ट या एप्पल जैसी बड़ी कंपनी में काम करना चाहती हूं, ताकि सभी को यह बता सकूं कि लड़कियां सिर्फ अपने घर-परिवार का नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र का नाम रौशन कर सकती है।

——–

हर मोर्चे जीत सकती हैं लड़कियां

निकिता गुर्जर रैंक-3

पिता – बलीराम गुर्जर (कृषक)

मम्मी – दुर्गा गुर्जर

खरगोन जिले के राईडिडटूरा गांव की निकिता गुर्जर कहती हैं एमसीए करने के मेरे फैसले का परिवार में सभी ने विरोध किया था। कहा था कि लड़कियों के लिए यह फील्ड अच्छी नहीं है, पर मेरे पिता बालीराम गुर्जर ने मेरा साथ दिया। छोटे से गांव से निकलकर इंदौर में तैयारी करना और यह रैंक हासिल करना सपना सच हो जाने की तरह है। इसे हासिल करने के लिए मैंने दिन-रात एक किए हैं। टाइम मैनेजमेंट के साथ ही माइंड मैनेजमेंट की प्रैक्टिस भी की, ताकि एग्जाम के दौरान तेजी से डिसीजन लिए जा सकें। मॉक टेस्ट और प्रैक्टिस से बहुत फायदा मिला। आगे मैं एनआईटी से एमसीए करने के बाद किसी बड़ी एमएनसी में काम करना चाहती हूं, ताकि साबित करके दिखा पाऊं कि लड़कियां हर मोर्चे पर सफलता के झंडे गाड़ सकती है।

———–

डिप्रेशन से निकल कर हासिल की सफलता

निकेश बिसेन 4 रैंक

पिता- एसएल बिसेन (एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर)

मम्मी- ललिता बिसेन (टीचर)

बालाघाट के निकेश बिसेन पहले दो साल जेईई की तैयारी के लिए ड्रॉप ले चुके थे। वह क्लियर नहीं हुई तो घर से प्रेशर बढ़ने लगा। निकेश कहते हैं एमसीए की पूरी तैयारी के दौरान मैं ना तो अपने घर गया हूं न किसी से वहां ठीक से बात की। बस मन में ठान लिया था कि सिलेक्ट होने के बाद ही घर लौटूंगा और मैंने यह कर दिखाया। मेरी स्टडी स्ट्रेटजी थी कि हर टॉपिक के कॉन्सेप्ट क्लियर होंगे तो हर चीज क्लियर होगी। टाइम मैनेजमेंट के लिए मैंने खूब मॉक टेस्ट सॉल्व किए। मेरी एनआईटी में भी ऑल इंडिया पांचवी रैंक बनी है जिसके जरिए मैं तमिलनाडु में एडमिशन ले चुका हूं। मेरी रूचि ग्राफिक डिजाइनिंग में है। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं ग्राफिक या गेम डिजाइनिंग फील्ड में एंटरप्रेन्योर बनाना चाहता हूं।

———–

लोन लेकर की पढ़ाई

मृगेंद्र कुमार रैंक-5

पिता- रामजीवन गौड़ (किसान)

माता- रूक्मणी गौड़

हरदा के छोटे से रेहटगांव के मृगेंद्र कुमार कहते हैं परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण पढ़ाई करना मुश्किल होता है। 12वीं के बाद करियर के बारे में सोचना भी मेरे लिए मुनासिब नहीं था क्योंकि पिता किसान हैं। उनके लिए पढ़ाई का खर्चा देना आसान नहीं था। ग्रेजुएशन के लिए मैंने एजुकेशन लोन लिया। इसके बाद सबसे बड़ा सपना था कि एमसीए के टॉप कॉलेज में एडमिशन लूं। बिग पैकेज मिलने के साथ ही घर और परिवार की हालत को बेहतर कर सकूं। आज एनआईटी और जेएनयू जैसी एग्जाम में टॉप रैंक हासिल करने के बाद अब यह सपना हकीकत में तब्दील होगा।

साभार-: http://naidunia.jagran.com/ से 

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार