Saturday, April 20, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोनरेन्द्र मोदी को नरेन्द्र मोदी बनाने वाले स्व. लक्ष्मण माधवराव इनामदार

नरेन्द्र मोदी को नरेन्द्र मोदी बनाने वाले स्व. लक्ष्मण माधवराव इनामदार

यह संयोग की बात है कि आज जिस विचारधारा को समस्त भारत ने मुख्यधारा बनाना पसंद किया है, उसके दो प्रमुख प्रवर्तकों की यह जन्मसदी वर्ष है। यह अंत्योदय के प्रवर्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में सहकारिता की नींव को बुंलद करने वाले मनीषी लक्ष्मण माधवराव इनामदार के जन्म का सौवां वर्ष है। लक्ष्मण माधवराव इनामदार का जन्म 21 सितंबर,1917 को महाराष्ट्र के सतारा जिला में खटाव गांव में हुआ। खटाव पुणे से 130 किलोमीटर दक्षिण है। भारतीय पंचाग के अनुसार इनकी जन्म की तिथि को ऋषिपंचमी थी। अपने ऋषि तत्व को वह आजीवन परिमार्जित करते रहे। यह इनके चरित्र से सदैव मेल खाता रहा।

वकालत की पढ़ाई करने की वजह से इनको वकील साहब के नाम से संबोधित किया जाता रहा। यह स्वंय संघ के कार्य से राष्ट्र को संस्कारित करने में ताउम्र लगे रहे। । आड़े वक्त पर इन्होने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के हक में अदालत में डटकर दलील देने का काम किया। संघ अबाध गति से राष्ट्र निर्माण का काम करता रहे इसमें लक्ष्मणराव इनामदार का योगदान विस्मरणीय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुरुआती जीवन में ही संघ से स्वंयसेवी लक्ष्मणराव जी के प्रभाव में आ गए। उनके जीवनशैली को नजदीक से देखा। व्यायाम से दिनचर्या आरंभ करना, ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलना। उनको याद रखना और अनुशासित रहकर अथक मेहनत करना इनामदार जी के जीवन का मूलमंत्र हुआ करता था। जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभवत खुद के जीवन में भी उतार लिया है।

वकील साहब के परिवारिक नाम के खटावकर से इनामदार बन जाने का इतिहास है। मराठबाड़ा में छत्रपति शिवाजी के अनुरुप “स्वराज” की सेवा करने वाले व्यक्ति एवं परिवार को इनाम मिलने की परंपरा थी। राष्ट्रसेवा में समर्पित व्यक्ति को कुछ गांव या जमीन इनाम में दिया जाता था। वकील साहब के एक पूर्वज श्री कृष्णराव खटावकर ने “स्वराज” की सेवा की थी। संभाजी की सरकार ने इनको खिताब के साथ कुछ जमीन इनाम में दी। यहीं से जातिनाम खटावकर की जगह इनामदार लिखा जाने लगा। लिहाजा इनामदार पद एक प्रतिष्ठा एवं सम्मान का विषय माना जाता था।

इनामदार जी में परिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से सहकारिता के समझ की नींव पड़ी। जिसमें साथ मिलकर रहने, चलने और जीने की बात प्रमुख है। सहकारिता में सबको साथ लेकर चलने का बीज तत्व है। सहकारी उद्यमिता में कोई एक मालिक नहीं होता। बल्कि सबको साथ लेकर किए गए उद्यम से मिले लाभ में सबकी बराबर की हिस्सेदारी होती है। वकील साहब के पिता माधवराव इनामदार का पैतृक परिवार बहुत बड़ा था। छह बहनें थी। उनमें से चार बहनें ब्याह के बाद असमायिक विधवा होकर मायके लौट आईए। उनके साथ आए बाल बच्चों की जिम्मेदारी मामा माधवराव के सिर पर ही थी। पिता माधवराव कैनाल इंस्पेक्टर थे। आम नौकरीहारा की तरह ही उनकी आय सीमित थी। फिर भी समभाव से सबका परवरिश करते थे।

लक्ष्मणराव की सात साल की उम्र में स्कूल में दाखिला लिया। सन 1923 में इनके पिता की बदली किर्लोस्करबाडी के पास दुधोंडी गांव में थी। वही इनका स्कूल में दाखिला करा दिया गया। दो साल शिक्षा कर वे अपने दादाजी के पास खटाव वापस आ गए। उनके बड़े भाई रामभाऊ पहले से वहीं रहते थे। फिर वकील साहब की चौथी कक्षा तक की शिक्षा खटाव में ही हुई। परंतु आगे की शिक्षा का प्रश्न आकर खडा हुआ।

लिहाजा पिताजी ने बच्चों की शिक्षा के लिए सतारा में एक मकान किराए पर ले लिया था। सन 1929 में सतारा के न्यू इंग्लिश स्कूल में दाखिल हुए। उनके बडे भाई रामभाऊ एक वर्ष पूर्व ही सतारा आ गए थे। वकील साहब के छोटे भाई किशनराव इनामदार ने हालात की तस्वीर उकेरते हुए लिखा है, चार बहनों का विधवा हो जाना परिवार के लिए बड़ा संताप था। इसतरह के माहौल ने हम सभी में साथ पलने, साथ चलने और साथ-साथ बढने के संस्कार को मजबूत किया। संभव है कि वकील साहब में अद्भूत सांगठनिक बल और सहकारिता की ताकत में विश्वास परिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से ही मिली।

सदियों की गुलामी से जीर्ण हुए भारत के उत्थान में संगठनिक साधकों के योगदान की विशाल परंपरा है। इस परंपरा में लक्ष्मण माधवराव इनामदार एक धवल नाम है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में सहकार की भावना जगाने में इनामदार की भूमिका महत्वपूर्ण है। वकालत की पढ़ाई कर चुके इनामदार को ताउम्र वकील साहब के संबोधन से बुलाया जाता रहा। जिन्होंने इमरजेंसी के दिनों में भूमिगत रहकर लोकतंत्र स्थापना के लिए अभूतपूर्व काम किया।

इनामदार उन शख्सियतों में शामिल हैं जिन्होने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को सहकार का मंत्र दिया था। अस्सी के दशक में जब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने सहकारी आंदोलन में शामिल होने के लिए “सहकार भारती” नामक प्रकल्प की शुरुआत की तो लक्ष्मणराव इनामदार उसके पहले महासचिव बनाए गए। कर्मठ व्यक्तित्व के धनी इनामदारजी के व्यक्तित्व से प्रभावित विचारधारा पर चलकर अब न्यू इंडिया के निर्माण का संकल्प लिया जा रहा है।

स्कूली पढ़ाई के दौरान ही लक्ष्मणराव इनामदार राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में आए। हेडगेवार से दीक्षा लेकर संघ कार्य में जीवन को समर्पित कर दिया। उन्होंने वकालत की पढ़ाई की थी। इसलिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कार्यकर्ताओं में वकील साहब के संबोधन से जाने जाते थे।

आपातकाल के बाद 1979 में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को सहकारिता में सक्रिय करने के लिए स्थापित सहकार भारती की आज देश के 400 जिलों और 725 ताल्लुकाओं में मजबूत इकाईयां है। सहकारी आंदोलन से जुड़े तमाम हस्तियों ने महसूस किया कि आने वाले दिनों में सहकार भारती जल्द ही खुद को अग्रणी सहकारी संस्था के तौर पर परिवर्तित कर लेगी। वकील साहब के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अगले दस साल में सहकार भारती को सहकारिता क्षेत्र की अव्वल संस्था बना लेने की कार्ययोजना की रुपरेखा तय की गई। वकील साहब के सहकारिता क्षेत्र में बेमिसाल योगदान को देखते हुए भारत सरकार के कृषि विभाग ने लक्ष्मणराव इनामदार के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की है। देश के कृषि सहकारिता क्षेत्र में अग्रणी काम करने वाले शख्स को यह पुरस्कार हर साल दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर स्व. लक्ष्मणराव इनामदार के कृतत्व का गहरा छाप है। 21 सितंबर को वकील साहब की जन्म सदी है। इस अवसर पर विज्ञान भवन में लक्ष्मणराव इनामदार जन्म शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन है। समारोह में इस मनीषी के व्यक्तित्व पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद प्रकाश डालने वाले हैं।

लक्ष्मण राव इनामदार राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में पूर्णत दीक्षित होने से पहले सामाजिक जीवन में सक्रिय हो चुके थे। व्यायाम के बेहद शौकीन थे। व्यायाम करने वालों की मित्र मंडल बना ली थी। मंडल क नाम मेडल और कीर्ति जमा करना जीवन के आरंभिक उद्देश्यों में शामिल हो गया। इस अनुभव को बाद में संघ के कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने परवान चढाने का काम किया। मंडल के माध्यम से कबड्डी औऱ खो-खो जैसे खेल कराते। अनेक बार संघनायक के रुप में उन्होंने खेलकूद प्रतियोगिताओं में कई इनाम जीतकर इनामदार जातिनाम को चरितार्थ करने का काम किया।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पुराने कार्यकर्ता गोपालभाई गुजर आरंभिक दिनों में सतारा में वकील साहब के साथ रहे थे। उन्होंने लक्ष्मण राव के सानिध्य के बारे में लिखा है- हम अहले सुबह अजिंक्य तारा पर्वत दौडने जाते। वहां तरह तरह के व्यायाम करते। शारीरिक सौष्ठव हासिल करने का लक्ष्य होता। ताकि किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए शरीर को तैयार रहे। खुली हवा में मैदान में भांति भांति के खेल हुआ करते। जिससे आपस में संगठन की भावना दृढ होती। व्यायाम और भागम दौड़ी वाले खेलों से थकने के बाद मंडल में हम साथी विदेशी शासन के अत्याचार पर चर्चा करते। उसे जिसतरह से बताया जाता था उससे खून खौलना स्वभाविक था। आजादी का परवाना बनने की इच्छा बलवती होती जा रही थी। कुछ करने का इरादा पक्का होता गया।

उन दिनों सोलापुर में मार्शल ल़ॉ लगाया गया, जिसमें मलाया शेट्टी के साथ तीन लोगों को फांसी दे दी गई। यह सब वकील साहब के बालपन से युवा होने के दौर में घट रहा था। उससे अनिभिज्ञ रहना वकील साहब और उनकी मंडली के लिए संभव नहीं था। समाजिकता और उग्र होती संवेदनशीलता जोर पकड रही थी। इसे देख सुनकर वह अक्सर अधीर हो उठते। मंडल के साथियों से कहते स्वतंत्रता संग्राम में हमें आहुति के लिए तैयार रहना चाहिए। चर्चाएं तो बहुत होती थी। पर दिशाएं नहीं सूझ रही थी।

लक्ष्मणराव चिकित्सक प्रवृति के थे। सोच समझकर ही आखिरी फैसला लिया करते। बिना तथ्यों की परख के अवधारणा बना लेना उनके स्वभाव में नहीं था। उनके विलंबित फैसले का रोचक प्रसं है। जिस राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के लिए उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया। उसमें आने की सहमति बनाने में उन्होंने समय मांग ली ती। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के विस्तार के क्रम में इसके संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार स्वंय सतारा पहुंचे थे। उनसे वकील साहब का साक्षात्कार दिलचस्प है। विदर्भ और पुणे आदि इलाकों में संघ की शाखाएं भली प्रकार से काम करने लगी तो डॉक्टर साहब सन् 1935 में पश्चिम महाराष्ट्र के दौरे पर थे। सतारा के सुप्रसिद्ध वकील दादा साहब करंदीकर के घर उनका प्रवास था।

उस रात डॉक्टर साहब ने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के ध्येय पर लंबा आख्यान दिया। सहभागी वकील साहब पूरी तन्मयता से बातों को सुनते रहे। उसके बाद वकील साहब के समक्ष संघ के स्वंयसेवक बनने की शपथ लेने का प्रस्ताव आया। उन्होंने प्रथमदृष्टया इंकार कर दिया। विनम्र भाव से फैसले के लिए समय की मोहलत मांग ली। डॉक्टर साहब भौंचक नहीं थे। उन्होंने वकील साहब के सोच समझकर फैसला लेने की इस प्रवृति की सराहना की। शीध्र स्वीकृति नहीं देने का वकील साहब के स्वभाव का हिस्सा था।

वकील साहब के साथी गोपालदास गुर्जर लिखते हैं कि मार्च 1935 की उस रात वकील साहब ने डॉक्टर साहब के व्यक्तव्य पर खूब विचार किया। और फिर दूसरे दिन डॉ साहब के पास जाकर शपथ का समय तय करने का आग्रह किया। सतारा के भव्य शपथग्रहण समारोह में वकील साहब साथियों के साथ स्वंयसेवक बने।

वकील साहब के संपर्क की कहानी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेतुबंध के नाम से 2000 में पुस्तक लिखी है। प्रधानमंत्री को जब कभी मौका लगा है वह बताने से नहीं चूके हैं कि वकील साहब की दीनचर्या और व्यक्तित्व उनको सदा प्रभावित करता रहा है। ऐसे दिग्दर्शक की प्रेरक पाठशाला से निकले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चरित्र का दृढ दिखना असहज नहीं है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में व्यक्तित्व निर्माण की कार्यपद्धित उपदेशात्मक नहीं बल्कि आचरण शैली की है। संस्कार निर्मित गुण के विकास का उपक्रम व्याख्यान, प्रवचन या उपदेश द्वारा नहीं अपितु जिन गुणों का सर्जन करना है उनका प्रत्यक्ष उदाहरण के प्रदर्शन से किया जाता है। वकील साहब ताउम्र इसका प्रदर्शन कर दिखाते रहे ।अविचलित कर्मयोग में विश्वास करने वाले वकील साहब संघ के इस संकल्प को शब्दश अपनाने में कभी गुरेज नहीं रखते थे।

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