Thursday, April 25, 2024
spot_img
Homeअध्यात्म गंगामानव-प्रकृति की आत्मीय घनिष्ठता का महापर्व है ओडिशा की अक्षयतृतीया

मानव-प्रकृति की आत्मीय घनिष्ठता का महापर्व है ओडिशा की अक्षयतृतीया

यह सच है कि मानव-प्रकृति की आत्मीय घनिष्ठता का महापर्व है ओडिशा में प्रतिवर्ष मनाया जानेवाला महापर्व अक्षयतृतीया।यह भगवान जगन्नाथ के प्रति ओडिया लोक आस्था-विश्वास का महापर्व है। पुरी धाम में सबकुछ जगन्नाथ जी को महा रुप में निवेदित होता है। जैसेःमहाप्रसाद,महादान और महादीप आदि। अक्षयतृतीया यहां पर एक महापर्व।यहां की अक्षयतृतीया मनाने की परम्परा जगन्नाथ जी को केन्द्र में रखकर ही अनादि काल से(वैशाख शुक्ल तृतीया) से आरंभ हुई है।

ओडिशा की आध्यात्मिक नगरी पुरी में प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा तथा जगन्नाथ जी के प्रथमसेवक कहे जानेवाले गजपति के राजमहल(श्रीनाहर) के सामने बडदाण्ड पर।रथों के निर्माण में कम से कम 42 दिन का समय अवश्य लगता है। अक्षय तृतीया के दिन से ही जगन्नाथ भगवान की विजय प्रतिमा श्री मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा पुरी के चंदन तालाब में आरंभ होती है। कृषिप्रधान प्रदेश ओडिशा के किसान अक्षय तृतीया के दिन से ही अपने-अपने खेतों में जुताई-बोआई का पवित्र कार्य आरंभ करते हैं जिसका शुभारंभ ओडिशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक स्वयं करते हैं।सच कहा जाय तो ओडिशा के घर-घर में अक्षय तृतीया का पारिवारिक,सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,आध्यात्मिक तथा लौकिक महत्त्व देखने को मिलता है।

अक्षय तृतीया के दिन से ही ओडिशा में मौसम में बदलाव(वर्षा का आगमन) आरंभ होता है। अक्षय तृतीया ओडिशा में मानव-प्रकृति के अटूट संबंधों को बताती है।अक्षय तृतीया से ही ओडिशा मे नये पारिवारिक तथा सामाजिक रिश्तों(उपनयन संस्कार और शादी-विवाह आदि) का श्रीगणेश होता है। नवनिर्मित गृहों में प्रवेश की पावन तिथि भी ओडिशा में अक्षय तृतीया ही होती है। वैसे तो अक्षयतृतीया को युगादि तृतीया भी कहते हैं। इसे भगवान परशुराम जयंती के रुप में भी मनाया जाता है।

अक्षय तृतीया से ही त्रैतायुग तथा सत्युग का आरंभ हुआ था। अक्षय तृतीया से ही भगवान बदरीनाथजी का कपाट उनके दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनाई थी। अक्षय तृतीया के दिन ओडिशा में महोदधिस्नानकर अक्षयतृतीया व्रतपालनकर दान-पुण्य का विशेष महत्त्व है। अक्षयतृतीया-पवित्र स्नान तथा पूजन आदि का पुरी में विशेष महत्त्व है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री जगन्नाथ कथा श्रवण एवं दान-पुण्य का अति विशिष्ट महत्त्व माना जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ को चने की दाल का भोग निवेदित किया जाता है। ओडिशा में अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति हेतु अक्षय तृतीया के दिन फल, फूल आदि का दान प्रत्येक सनातनी खुले दिल से करते हैं।कहते हैं कि अक्षयतृतीया के दिन जो भक्त भगवान विष्णु की पूजा करता है,वह अपने पूरे कुल का उद्धारकर बैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है। जो भक्त दूध-दही,शक्कर,घी और शुद्ध मधु आदि से पंचामृत से श्रीहरि की पूजा करता है, उन्हें पंचामृत से पवित्र स्नान कराता है,वह अपने सम्पूर्ण कुल का उद्धार करके विष्णु लोक को प्राप्त करता है।

जो भक्त अक्षयतृतीया के दिन सायंकाल श्रीहरि को शर्बत निवेदित करता है वह अपने पुराने पापों से शीघ्र मुक्त हो जाता है।उस दिन जो भक्त कुछ पुण्य करता है वह अक्षय फल देनेवाला होता है।पुरी में अक्षयतृतीया के दिन से ही भगवान जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है जो श्रीमंदिर के समस्त रीति-नीति के तहत वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होता है। रथ-निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा है। इस कार्य को वंशानुगत क्रम से सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं। यह कार्य पूर्णतः शास्त्रसम्मत विधि से संपन्न होता है। रथनिर्माण विशेषज्ञों का यह मानना है कि तीनों रथ, बलभद्रजी का रथ तालध्वज रथ,सुभद्राजी का रथ देवदलन रथ तथा भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष रथ का निर्माण पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से होता है।

रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण सहयोग करते हैं। प्रतिवर्ष वसंतपंचमी के दिन से रथनिर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य आरंभ होता है।अक्षयतृतीया के दिन ही पुरी के चंदन तालाब में श्री जगन्नाथ जी की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदन यात्रा भी आरंभ होती है जो पूरे 21 दिनों तक चलती है। श्रीमंदिर की समस्त रीति-नीति के तहत जातभोग संपन्न होने के उपरांत अपराह्न बेला में भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन, रामकृष्ण, बलराम,पंच पाण्डव, लोकनाथ, मार्कण्डेय, नीलकण्ठ, कपालमोचन, जम्बेश्वर लक्ष्मी, सरस्वती आदि को अलौकिक शोभायात्रा के मध्य पुरी नगर परिक्रमा कराकर चंदन तालाब लाया जाता है।जलप्रिय जगत के नाथ के लिए चंदनयात्रा का अलौकिक महत्त्व पुरी में प्रतिवर्ष अक्षयतृतीया से देखने को मिलता है।सबसे अच्छा यह देखकर लगता है कि ओडिशा के गाव-गांव में प्रत्येक शहर में अक्षयतृतीया का पालन होता है। नये रथों का निर्माण होता है। चंदनयात्रा अनुष्ठित होती है।इससे यह पता चलता है कि ओडिया लोक आस्था-विश्वास का महापर्व है यहां पर प्रतिवर्ष मनाई जानेवाली अक्षयतृतीया जो अपने आपमें मानव-प्रकृति की आत्मीय घनिष्ठता का महापर्व है।

(लेखक राष्ट्रपति से सम्मानित हैं व ओड़िशा की कला, संस्कृति, अध्यात्मिक व धार्मिक गतिविधियों पर नियमित लेखन करते हैं)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार