Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेइसलिए सुधीर चौधरी ने अंग्रेजी छोड़कर हिन्दी पत्रकारिता को अपनाया

इसलिए सुधीर चौधरी ने अंग्रेजी छोड़कर हिन्दी पत्रकारिता को अपनाया

‘मैंने पत्रकारिता ही नहीं बल्कि अपनी पूरी पढ़ाई अंग्रेजी भाषा में की मगर काम मैं हिंदी में कर रहा हूं, क्योंकि काम की जो सहजता अपनी मातृभाषा में होती है वह किसी और भाषा में नहीं।’ यह कहना है ‘जी न्यूज’ के एडिटर सुधीर चौधरी का।

भाषाई पत्रकारिता की चुनौतियों के कारणों पर अपनी राय रखते हुए सुधीर चौधरी ने ये बात नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही। यह कार्यक्रम माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने भारतीय भाषा मंच के साथ मिलकर आयोजित किया। वे मुख्य अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में शामिल थे।

अपने संबोधन में सुधीर चौधरी ने कहा कि मैंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत अंग्रेजी चैनल से की और एक-दो सालों तक मैंने अंग्रेजी भाषा में ही काम किया, लेकिन उस दौरान जो भाषा अंदर से निकलती थी वो सहज नहीं होती थी, क्योंकि हमारी मातृभाषा हिंदी में थी, इसलिए हमारी सोच भी हिंदी में थी, इसकी वजह हमारे माता-पिता हैं, दोनों ही शिक्षत रहे हैं और उन्होंने ही मुझे हिंदी पढ़ाई है। मेरे घर में आज भी हिंदी ही बोली जाती है। उन्होंने कहा कि मैंने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में काम करके देखा, लेकिन जो सहजता अपनी मातृभाषा में होती है वह किसी और भाषा में हो ही नहीं सकती।

उन्होंने आगे कहा कि अकसर हिंदी के सेमिनारों ये कह देना फैशन बन गया है कि मेरी हिंदी थोड़ी कमजोर है इसलिए मैं बीच-बीच में अंग्रेजी में बात करुंगा, इसलिए इसका बुरा मत मानिएगा। हालांकि इसका कोई बुरा भी नहीं मानता, लेकिन अंग्रेजी के सेमिनारों में अगर आप ऐसा हिंदी भाषा के लिए कह देंगे तो वहां बैठे लोग आपको हीनभावना से देखेंगे और आपको अधिक पढ़ा लिखा नहीं मानेंगे। वैसे ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बन गई है कि हिंदी गरीबों की भाषा रह गई है और अंग्रेजी अमीरों की भाषा बन गई है।

उन्होंने कहा कि एक सबसे बड़ी समस्या ये भी खड़ी हो गई है कि हिंदी में तथाकथित ठेकेदार तो बहुत है मगर उसका अनुसरण करने वाले बहुत ही कम, जबकि अंग्रेजी में अनुसरण करने वालों की संख्या ज्यादा है, लेकिन उनके ठेकेदारों न के बराबर। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के पावर लैग्वेंजेज सर्वे का हवाला देते हुए उन्होंने हिंदी के भविष्य को उज्ज्वल बताया। उनके अनुसार, एक सर्वे के मुताबिक वर्ष 2050 तक हिंदी विश्व में 10 बड़ी भाषाओं में से एक होगी।

उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में 500 नए शब्द शामिल किए गए, इसमें से 240 शब्द भारतीय भाषाओं से शामिल हुए, यह हिंदी के बढ़ते प्रभाव का परिचायक है।

अपने शो ‘डीएनए’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा शो है तो हिंदी में, लेकिन उसका नाम अंग्रेजी में है- ‘डेली न्यूज एनालेसिस’। लेकिन फिर भी किसी ने आज तक मुझसे ये सवाल नहीं किया कि आपके इस शो का नाम अंग्रेजी में क्यों है? लोग मिलते हैं और यही कहते हैं कि मैं आपका ‘डीएनए’ शो देखता हूं। दरअसल ‘डीएनए’ ऐसा शब्द है जो आजकल आम भाषा में प्रयोग किया जाता है। मैं हिंदी का पंडित नहीं हूं और अपने इस शो में बहुत ही सरल हिंदी का प्रयोग करता हूं और यह भी कोशिश रहती है कि यदि अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा के दर्शक भी गलती से अगर यह शो को देख लें तो उन्हें भी कोई तकलीफ नहीं होने चाहिए। उसे ये नहीं लगना चाहिए कि वे भाषा के हिसाब से बहुत ही अनफ्रैंडली चैनल देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे लगता कि ऐसी ही हिंदी का प्रयोग होना चाहिए।

उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की एक कहावत का जिक्र करते हुए कहा कि जिस देश को अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व नही है वह देश कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। सुधीर चौधरी ने कहा कि ये बात मुझे अपने देश पर बिलकुल सही लगती है, क्योंकि हमारी भाषा तो बहुत अच्छी है, लेकिन हमें इस पर गर्व नहीं है। हम अकसर इम्पोर्ट की हुई चीजों पर गर्व करते हैं। जिस दिन यह धारणा बदल गई तो हमारा देश बहुत ही आगे बढ़ जाएगा।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में हिंदी के ब्रैंड एम्बेस्डर कमी है और जो हैं भी उनका कोई अनुसरण नहीं करता। चौधरी ने बताया कि ब्रैंड एम्बेस्डर ऐसा होना चाहिए, जिसके फॉलोअर्स अधिक हों। उन्होंने पीएम मोदी को इसका बेहतरीन उदाहरण बताया।

उन्होंने कहा अक्सर जब भी मैं अंग्रेजी के सेमिनारों में जाता हूं तो पहले दो मिनट तक अंग्रेजी में ही बात करता हूं ताकि सबको समझ आ जाए कि मैं अंग्रेजी बोल सकता हूं, लेकिन उसके बाद मैं हिंदी में बोलना शुरू कर देता हूं और यही मेरा स्वभाव है। उन्होंने बताया कि देश में 99 फीसदी से भी ज्यादा लोगों को हिंदी समझ में आती है, लेकिन वे बताते नहीं है। इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि हमें ऐसे सेमिनारों के मंच पर जाकर सेंध लगानी होगी, जहां अंग्रेजी भाषा का कंट्रोल हो। वहां पर अगर आप हिंदी के ब्रैंड एम्बेस्डर बनकर जाएंगे तो वहां मौजूद लोगों को अच्छा भी लगेगा और आपको लोग फॉलो भी करेंगे, ये मेरा अनुभव है।

साभार-http://samachar4media.com/ से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार