आप यहाँ है :

स्वामी श्रद्धानन्द जी की पुस्तक “हिन्दू संगठन” में दिए गए सुझाव

[भूमिका : स्वामी श्रद्धानन्द जी की एक प्रसिद्ध पुस्तक है – “हिन्दू संगठन – क्यों और कैसे ?” 76 पृष्ठ की यह हिन्दी पुस्तक मैंने दो बार ध्यान से पढ़ी। यह पुस्तक 1924 ई. में (अपने बलिदान से लगभग दो वर्ष पूर्व) लिखी गई थी, जिसके अनेक संस्करण प्रकाशित हुए। पुस्तक पठनीय है, जिसमें हिन्दुओं की तत्कालीन निराशाजनक स्थिति का चित्रण कर उन्हें कैसे सशक्त किए जाएं यह बताया गया है। यहां नीचे इस पुस्तक का अन्तिम अंश प्रस्तुत किया गया है, जिसमें श्रद्धानन्द जी ने हिन्दू संगठन के लिए कुछ ऐसे सुझाव दिए हैं जो विशुद्ध आर्यसमाजी या वैदिक दृष्टिकोण से कुछ अटपटे भी प्रतीत हो सकते हैं। यहां हिन्दू राष्ट्र मन्दिर स्थापित करने की, भगवद्गीता आदि की (गायत्री मन्त्र का उल्लेख तो है, परन्तु वेदों का उल्लेख नहीं है), कथाएं करने की एवं भारतमाता के नक्शे को नमस्कार करने की बात कही गई है। लगता है कि श्रद्धानन्द जी के इन प्रस्तावों का भी क्रियान्वयन नहीं हुआ और आज पर्यन्त हिन्दू एकता असिद्ध ही बनी हुई है। ]

“इस कारण मेरा सर्वप्रथम सुझाव यह है कि प्रत्येक नगर और शहर में एक हिन्दू राष्ट्र मन्दिर की स्थापना अवश्य की जानी चाहिये, जिसमें एक साथ 25 हजार व्यक्ति एक साथ समा सकें और उन स्थानों पर प्रतिदिन भगवद्गीता, उपनिषद्, रामायण और महाभारत की कथा होनी चाहिये। इन राष्ट्र – मन्दिरों का प्रबन्ध स्थानीय सभा के हाथ में रहना चाहिये और वह इन स्थानों के अन्दर अखाड़े, कुश्ती, गतका आदि खेलों का भी प्रबन्ध करे, जब कि हिन्दुओं के विभिन्न साम्प्रदायिक मन्दिरों में उनके इष्ट देवताओं की पूजा होगी, इन हिन्दू मन्दिरों में तीन मातृशक्तियों की पूजा का प्रबन्ध होना चाहिये और वे हैं – (i) गोमाता, (ii) सरस्वती माता और (iii) भूमिमाता।

वहाँ कुछ जीवित गौएँ रखी जानी चाहियें, जो कि हमारी समृद्धि की द्योतक हैं, उस मन्दिर के प्रमुख द्वार पर गायत्री मन्त्र लिखा जाना चाहिये, जो कि प्रत्येक हिन्दू को उसके कर्त्तव्य का स्मरण करायेगा तथा अज्ञान को दूर करने का सन्देश देगा और उस मन्दिर के बहुत ही प्रमुख स्थान पर भारतमाता का एक सजीव नक्शा बनाना चाहिये, इस नक्शे में उसकी विशेषताओं को विभिन्न रंगों द्वारा प्रदर्शित किया जाये और प्रत्येक भारतीय बच्चा प्रतिदिन मातृभूमि के सम्मुख खड़ा होकर उसे नमस्कार करे और इस प्रतिज्ञा को दोहराये कि वह अपनी मातृभूमि को उसी प्राचीन गौरव के स्थान पर पहुँचाने के लिए प्राणों तक की बाजी लगा देगा, जिस स्थान से उसका पतन हुआ था।

मैंने स्नेह और नम्रतापूर्वक जो दिशा बताई है, यदि उसका श्रद्धा और विश्वास के साथ अनुगमन किया जाये, तो मैं समझता हूँ कि सभी सुधार धीमे-धीमे हो जायेंगे और मानव समाज के उद्धार के लिए एक बार फिर प्राचीन आर्यों की सन्तान सामने आकर खड़ी हो जायेगी। शमित्योम्!!!”

[स्रोत : हिन्दू संगठन, पृ. 76, चतुर्थ संस्करण जनवरी 2019, आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट दिल्ली- प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]

image_pdfimage_print


सम्बंधित लेख
 

Get in Touch

Back to Top