Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeजियो तो ऐसे जियोखबर लिखने की कितनी अकल होती है पत्रकारों में!

खबर लिखने की कितनी अकल होती है पत्रकारों में!

बचपन में सड़क के किनारे फुटपाथ पर मजमा लगाने वालों को देखने में बहुत मजा आता था। उनके करतबों से कहीं ज्यादा कौतुहल उनकी बातचीत के तरीके में होता था। वे मुहावरेदार बेतुकी बातें सुनाते थे। जैसे कि एक बार एक मदारी टाइप आदमी ताकत की दवा बेच रहा था। सर्दी की सुबह थी। उसने मेहनत करके भीड़ इकट्ठा की। बादाम और दूसरे मेवों से तैयार वह अपनी कथित दवा जो कि हलवे जैसी दिख रही थी भीड़ को चटाई। उसे लग रहा था कि कोई न कोई तो उसे जरुरी खरीदेगा पर वहां सभी मुफ्तखोर थे। जब किसी ने दवा नहीं खरीदी तो उसका नाराज होना स्वाभाविक था। इतने में एक आदमी वहां भीड़ देखकर रुक गया। उसने अंदर झांका। मजमे वाले से दवा चखने के लिए मांगी। उसने घूरते हुए उसकी हथेली पर थोड़ा सा वह रख दिया।
 
उस आदमी ने उसे खाया और फिर कुछ देर तक स्वाद के जरिए उसका अनुमान लगाने की कोशिश करने के बाद उससे पूछा, ‘भैया क्या यह च्यवनप्राश है?’ यह सुनते ही मजमे वाला जो कि एक अफगानी था, बौखला गया। उसने उसे मजमे के केंद्र में बुलाया और उसकी हथेली पर वहां रखी एक हथोड़ी देने के बाद बोला ‘देखों अंधे के हाथ में दे दो हथोड़ा, तो वो बोलता पकौड़ा।’ भीड़ हा, हा करके हंसने लगी और मजमे वाले का गुबार निकल गया।
 
अभी जब चंद दिन पहले एक बड़े अंग्रेजी दैनिक में छपी एक धमाकेदार खबर और बाद में उसे लेकर छपी सफाई को पढ़ा तो यह घटना याद आ गई। खबर में खुलासा किया गया था कि पिछले साल दिल्ली के लोकनायक अस्पताल में अपनी किडनी का आपरेशन करवाने वाले एक मरीज को जब लगातार दर्द बना रहने लगा तो वह डाक्टरों के पास गया। उन्होंने उसका एक्स-रे किया तो पता चला कि उसके पेट में 8 इंच लंबी तार जैसी कोई चीज़ है। डाक्टरों ने उसे 28 अप्रैल को आपरेशन की तारीख दे दी। डाक्टरों की इस लापरवाही की खबर को एक्स-रे समेत छाप दिया। पढ़कर लगा कि राजधानी के प्रतिष्ठित सरकारी अस्पतालों के डाक्टर भी कितने लापरवाह हैं पर दो दिन बाद ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की तरफ से जारी वह खंडन पढ़ने को मिल गया कि, जिसे रिपोर्टर ने तार समझ लिया था वह वास्तव में कैथेडर था जो कि किडनी के आपरेशन के बाद पेशाब की थैली खुली रखने के लिए रोगी के पेट में डाला जाता है। वह कोई भूल से रह गई चीज़ नहीं थी।
 
यह पढ़कर लगा कि अक्सर हम लोग कितनी अक्षम्य गलतियां कर देते हैं। मुझसे भी ऐसी ही गलती हुई थी जबकि मैंने सरोदवादक अमजद अली से उनकी प्रेस कान्फ्रेंस में दो पैग लगाने के बाद यह पूछ लिया था कि आप यह सितार कब से बजा रहे हैं? ऐसा ही एक बार तब हुआ जब कि एक नामी-गिरामी विदेशी अखबार के ब्यूरो चीफ मुझसे अनुरोध करने लगे कि मैं मिजो नेशनल फ्रंट के प्रमुख लालडेंगा के साक्षात्कार के दौरान उन्हें साथ ले जाऊं। तब वे एक बड़े प्रकाशन समूह के डेस्क पर थे। मुझसे काफी जूनियर थे। उन दिनों लालडेंगा ने लंबे अरसे तक सशस्त्र संघर्ष करने के बाद केंद्र सरकार से समझौता वार्ता करने के लिए हथियार डाल दिए थे व महादेव रोड पर उन्हें ठहराया गया था।
 
पहले मैंने लालडेंगा का लंबा चौड़ा साक्षात्कार किया। उनसे उनके विद्रोहियों, हथियारों आदि के बारे में पूछा। इस बीच चाय आ गई और हम लोग अनौपचारिक बातचीत करने लगे। मैंने उसे इशारा किया कि तुम भी कुछ पूछ लो। उसने उनसे पूछा ‘डू यू हैव नेवी आलसो?’ (क्या आपकी नौसना भी है)। इस पर लालडेंगा ठहाका मार कर हंसने लगा। उसने कहा कि ‘डू हेव नेवी, वी विल हैव टू डिग ए बिग पांड इन मिजोरम (नौसेना के लिए हमें मिजोरम में बहुत बड़ा तालाब खोदना पड़ेगा)। उसे मिजोरम की भौगोलिक स्थिति तक का ज्ञान नहीं था हालांकि उनका दावा था कि वे पत्रकारिता में आने के पहले जेएनयू में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे थे।
 
ऐसे ही एक बार किसी संवाददाता ने श्रीनगर में टैंक आने की खबर दे दी थी। उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि हालात इतने ज्यादा खराब हो चुके हैं कि कभी भी देश के इस सीमावर्ती इलाके में पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ सकता है। बाद में पता चला कि वे टैंक नहीं बल्कि बख्तरबंद गाड़ियां थीं जो कि प्रदर्शनकारियों के पथराव से बचाव करने के लिए लाई गई थी। बाद में रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने मजाक में कहा कि भाई कम से कम यह तो देख लेते कि उनमें हाथी की तरह सूंड (नली) थी या नहीं! टैंक की सबसे बड़ी पहचान यही होती है कि उसमें एक बड़ी नली भी होती है। इसीलिए रक्षा मंत्रालय संवाददाताओं को वार युद्ध की रिपोर्टिंग करने के लिए विशेष कोर्स करवाता है। कई बार इस भ्रम के कारण कुछ लोगों को फायदा भी हो जाता है। काफी पहले जब पंजाब में जगदेव सिंह तलवंडी नामक चर्चित अकाली नेता हुआ करते थे तो दिल्ली की अकाली राजनीति में बलविंदर सिंह तलवंडी नामक लंबे चौड़े छुटभैया नेता थे। वे अपनी दाढ़ी खोलकर रखते थे।  उन्होंने रिवाल्वर का लाइसेंस ले रखा था। कमर में रिवाल्वर लगाने के बाद अपना कुरता इस तरह से पहनते थे कि वह दिखाई देती रहे। उन दिनों पंजाब समस्या चरम सीमा पर थी। वे वीपी सिंह के शासनकाल में उनके व रामविलास पासवान के बेहद करीब हो गए। इतना करीब की पासवान ने उन्हें रेलवे की तमाम समितियों में डाल दिया व जनसभाओं में उन्हें साथ ले जाने लगे।
 
वीपी सिंह उन पर इतना मोहित हो गए कि प्रधानमंत्री बनने के बाद तिलकनगर की गलियों में स्थित ‘तलवंडी साहब’ के घर पर आयोजित गुरु ग्रंथ साहब के पाठ में हिस्सा लेने पहुंच गए। यह पाठ उनके कूलर बनाने के कारखाने में रखा गया था। प्रधानमंत्री के आने के बाद उनके हौसले इतने बढ़ गए कि पहले बिजली के मीटर में गड़बड़ी करते थे पर जिस दिन प्रधानमंत्री उनके घर आए, उन्होंने उनसे सीधे तार जुड़े होने का प्रदर्शन करते हुए कटिया डालकर बिजली के खंबे से सीधे अपनी फैक्टरी के तार जोड़ लिए।
 
(साभार: नया इंडिया)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार