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इस परिवार के लिए फरिश्ता बन गई डीसीपी असलम खान

नई दिल्ली । भारत-पाक बॉर्डर पर बसे एक गांव से आखिर दिल्ली पुलिस की डीसीपी असलम खान का क्या रिश्ता है जो वह हर महीने सैलरी का एक हिस्सा उस गांव के एक परिवार को भेजती हैं। वह हर रोज वॉट्सऐप ग्रुप पर गांव से खबर लेती हैं। हर तीसरे दिन फोन कर हाल जानती हैं। इस आईपीएस अफसर और बॉर्डर के उस गांव के इर्द-गिर्द घूमती कहानी को जानेंगे तो भावुक हो उठेंगे। इंसानी रिश्तों को जोड़ने वाली दोनों कहानियां बहुत खास हैं।

परिवार की फरिश्ता बनीं
इस किस्से की शुरुआत होती है एक हत्या से। इसी साल 9 जनवरी की रात जहांगीरपुरी में ट्रक ड्राइवर सरदार मान सिंह (42) को लूट के लिए बदमाशों ने बीच सड़क पर मार डाला। ट्रक को चंडीगढ़ से लेकर आए मान सिंह जहांगीरपुरी में रास्ता भटक गए थे। तकरीबन रात 2 बजे रास्ता पूछने के लिए वह ट्रक से उतरे। तभी बाइक सवार बदमाशों ने उन्हें लूट लिया और विरोध करने पर चाकू मार दिया। आधी रात को खून से लथपथ सड़क पर तड़पते मान सिंह ने दम तोड़ दिया। बेसहारा हो चुके मान सिंह के परिवार का डीसीपी असलम खान सहारा बनीं। तब से वह परिवार के बच्चों के लिए मां, पिता, दीदी, भाई जैसे रोल निभा रही हैं। मगर आज तक उन्होंने परिवार को रूबरू देखा नहीं है।

नियंत्रण रेखा में फंसी खेती
मान सिंह जम्मू-कश्मीर के आरएसपुरा सेक्टर में सुचेतगढ़ इंटरनैशनल बॉर्डर पर बसे फ्लोरा गांव के रहने वाले थे। उनके बाद परिवार में 2 बेटियां बलजीत कौर (18), जसमीत कौर (14), बेटा असमीत सिंह (9) और पत्नी दर्शन कौर (40) रह गए। उनकी बेटी बलजीत का कहना है कि करीब 150 घरों वाला फ्लोरा गांव बॉर्डर से 2 किलोमीटर दूर है। पाकिस्तान का सियालकोट शहर इस गांव से सिर्फ 11 किलोमीटर दूर है। दो वक्त की रोटी के नाम पर 2 कैनल खेती है। वह दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा में फंसी है। तनाव के बीच पाकिस्तान की ओर से आए दिन मोर्टारों से मानसिंह का कच्चा घर पहले ही छलनी पड़ा था। हत्या से परिवार पर आफत आ गई।

परिवार पर मुसीबत आई तो डीसीपी असलम खान फरिश्ता बन गईं। बलजीत फिलहाल गांव से दूर बने स्कूल में 12वीं क्लास में पढ़ रही हैं। छोटी बहन जसमीत क्लास 9 और असमीत तीसरी क्लास में हैं। बड़ी बेटी बलजीत फोन पर बात करते हुए फफक पड़ती हैं। वह बताती हैं कि किस तरह पिता के न रहने से उनकी जिंदगी बदल गई। पापा को गए हुए 5 महीने हो चुके थे। 13 फरवरी को चाचा के बेटे की शादी थी। 9 जनवरी को शाम 7 बजे पापा से पांच मिनट के लिए आखिरी बार बात हुई थी। बलजीत के पापा ने उन्हें बताया था, कल तक घर पहुंच जाऊंगा। वह बोलीं, ‘उन्होंने 5 महीने में करीब 80 हजार रुपये जमा किए थे। एक उम्मीद जगी थी मकान को पक्का करा देंगे। अगली सुबह हम सब खुश थे कि पापा आ रहे हैं। उसी दिन शाम को पता चला कि पापा का दिल्ली में मर्डर हो गया है।’

सदमे में दादी की मौत
बलजीत ने बताया कि पापा की हत्या के बारे में दादी को नहीं बताया गया था। 13 फरवरी को जब चाचा के लड़के की शादी में भी पापा नहीं दिखे तो दादी के सवाल बढ़ गए। जब उन्हें पता चला तो उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। अगले ही महीने दादी भी नहीं रहीं। अब पढ़ाई, स्कूल की फीस, तमाम चीजें हमारे सामने सवाल बनकर खड़े थे। हम रोटी के लिए भी मोहताज थे। एक दिन दिल्ली से फोन आया। बलजीत ने बताया कि डीसीपी मैम को पता चला था कि हमारे पास कुछ नहीं है। मैम ने सबसे बात की। उन्होंने कहा कि मैं हर महीने पैसे अकाउंट में डालूंगी। सरकार से भी मदद दिलाने की कोशिश करूंगी। यह सुनकर हम सब रो पड़े थे। हमने उन्हें मना भी किया, लेकिन वह नहीं मानीं। उनकी मदद से ही पढ़ाई और गुजारा चल रहा है।

हमारे लिए फरिश्ता
बलजीत बताती हैं कि हमें नहीं मालूम कि मैम के साथ हमारा क्या रिश्ता है। मगर वह हमारे लिए फरिश्ता हैं। हमने एक दूसरे को नहीं देखा है। हम रोज चैट करते हैं। दूसरे-तीसरे दिन खुद ही फोन करके हम सब से बात करती हैं। खासकर मेरी पढ़ाई के बारे में पूछती हैं। मेरे छोटे भाई का जम्मू के अच्छे स्कूल में ऐडमिशन के लिए बोल रही थीं। बलजीत बताती हैं कि मैंने पापा को खोया है। मेरी तमन्ना है कि मैं पुलिस अफसर बनूं। मन लगाकर पढ़ाई कर रही हूं। असलम मैम भी कहती हैं कि दिल्ली पुलिस में आना है तो अच्छे से पढ़ाई करो। मैं भी दिल्ली पुलिस जॉइन करूंगी।

साभार- https://navbharattimes.indiatimes.com/ से

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