आज का मेरा प्रश्न थोड़ा अटपटा लग सकता है लेकिन प्रश्न यह है कि इस देश के शिक्षक हड़ताल पर कब जाएंगें? कब वो इस बात की समीक्षा करेंगें कि यह शिक्षा व्यवस्था सड़ गल चुकी है और जब तक नई उर्जावान शिक्षा व्यवस्था सामने नहीं आ जाती वो अध्यापन कार्य में नहीं जाएंगे ? क्या देश में हो रहा शिक्षा का व्यापारीकरण उन्हें नहीं दिख रहा ? या जिस योग्यता के छात्र हम स्नातक या समकक्ष स्तर पर तैयार कर रहे हैं, उनकी योग्यता को देखकर ये शिक्षक संतुष्ट हैं ? *क्या शिक्षा का निजीकरण इसलिए किया गया था कि यह एक बडे़ और बेरहम व्यापार के रूप में सामने आए ? जहां निजी विश्वविद्यालय फर्जी डिग्रीयां जारी करें और प्रतियोगी परिक्षाओं के मायाजाल में उलझकर कितने ही बच्चे अपनी जिंदगी को समाप्त कर लें ?*
दरअसल, *जब बच्चों के भविष्य का सवाल हो, तो यह सवाल फिर सिर्फ छात्रों का ही नहीं रह जाता, इससे देश का भविष्य भी प्रभावित होता है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए मोदी सरकार को युद्ध स्तर पर काम करने की आवश्यकता है।* जिस तरह विदेश नीति के मामले में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने देशवासियों को गर्वित किया है, उसी प्रकार देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए भी मोदी सरकार से बड़ी पहल की उम्मीद है। 2020 में जरूर मोदी सरकार शिक्षा नीति लेकर आई थी, लेकिन यह नीति देश के युवाओं का भविष्य बनाने वाली शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार ला पाएगी इसके लिए कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी।
आज जब देश के 24 लाख बच्चे नीट परीक्षा का पेपर लीक हो जाने के बाद आंदोलनरत और निराश हैं, तो उसका सबसे बड़ा कारण शैक्षिक जगत में उभरते माफिया राज की उपस्थिति ही है, और केवल नीट परीक्षा ही क्यों देश में पिछले वर्षों में हर राज्य में पेपर लीक की घटनाएं हुई हैं, जिसने हजारों परिक्षार्थियों को निराश कर दिया है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी को यह समझना होगा कि *जिस तरह देश के लिए धारा 370 का हटना जरूरी था, अयोध्या में राम मंदिर का बनना जरूरी है, गरीबों को मुफ्त राशन और किसान सम्मान निधि जरूरी है, गरीबों को आवास व आयुष्मान भारत स्वास्थ्य कार्ड जरूरी है, उसी प्रकार देश की शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी, विवेकवान और उर्जायुक्त बनाने के लिए सुदृड़ शिक्षा व्यवस्था भी जरूरी है।*
बढ़ती बेरोजगारी को भाजपा विरोधी दलों ने लोकसभा चुनावों में अपना मुद्दा बनाया था, लेकिन कोई ये बताने के लिए सामने नहीं आया कि *स्तरहीन शिक्षा व्यवस्था, नकल माफिया और पेपर लीक जैसे बीमारी से ग्रस्त शिक्षण संस्थानों से गुणवत्तायुक्त स्नातकों के स्थान पर बड़ी संख्या में ऐसा युवा देश की मुख्यधारा में आ रहा है जो अपने आपको और अपने भविष्य को लेकर दिशाहीन है।* वो किसी भी प्रकार से सरकारी नौकरी या डाक्टर, इंजीनियर बनना चाहता है, जिससे उसको न्यूनतम आय का भरोसा हो सके। यह बात अलग है कि चिकित्सक और इंजीनियर की पढ़ाई करने के बाद भी युवाओं को अच्छा वेतन मिलने की बात तो दूर रोजगार भी नहीं मिल रहा है।
समस्या यह है कि देश भर में चल रहे लाखों विद्यालय, हजारों महाविद्यालय और सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में करोड़ों छात्रों से प्रतिदिन संवाद करते इन शिक्षकों को अपने छात्रों की यह दशा नहीं दिखती ! *जिस देश में चाणक्य नामक शिक्षक ने अपनी शिक्षा से देश का भवितव्य बदल दिया था, वहां का शिक्षक इतना लाचार हो चुका है कि वह पेपर लीक में अपराधी बनाया जा रहा है। अपनी कक्षा के बच्चों को निजी कोचिंग संस्थानों और विद्यालयों में भेजने का पाप करने में भागीदार बन रहा है और अपने स्थानांतरण को रोकने के लिए राजनेताओं के सामने नतमस्तक बनने के लिए बाध्य है।* तो जरूरत इस बात की है कि वे अपने छात्रों के लिए प्रतिकार करें, शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव के लिए छोटी सी शुरूआत तो करें।
इस बात को भी समझना और पूछना होगा कि *वामपंथी एंजेंडे पर चली कांग्रेस सरकारों द्वारा लादी गई इस शिक्षा पद्धति और नाकारा शिक्षा व्यवस्था के बोझ को ये देश क्यों भुगते ? यह कांग्रेस सरकारों द्वारा देश के युवाओं के साथ किया गया ऐसा पाप है, जिसके परिमार्जन का उपाय भी प्राथमिकता के आधार पर मोदी सरकार को तलाशना होगा।* देश को पढ़ाया गया निवीर्य और गलत इतिहास को हटाया जाना और भारत के मूल और आत्मिक शक्ति को परिभाषित करते हुए पाठ्यक्रम का निर्धारण होना प्राथमिकता है, लेकिन सबसे बड़ी प्राथमिकता सड़गल चुकी शिक्षा व्यवस्था को नई प्राणवायु से युक्त बनाना है, जिसकी बात हम पुरातन और सनातन भारत में सुनते कहते आए हैं।
*सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जयपुर*
*सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट*
*13 जुलाई 2024*