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चौपाल में स्वास्थ्य, संगीत और साहित्य की त्रिवेणी
मुंबई के रचनाधर्मियों की चौपाल हर बार की तरह अनूठी, मजेदार और विविध स्वाद वाली होती है। यहाँ मौजूद श्रोताओं को हर बार एक नया अनुभव मिलता है।
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गाय, गाँव और गांजे की खुशबू से महकी चौपाल
इस बार की चौपाल गाय, गाँव और गांजे पर थी। इस अटपटे विषय को जब श्री शेखर सेन प्रस्तुत कर रहे थे तो श्रोताओँ में भी हैरानी थी। चौपाल का विषय भी मजेदार था- आधुनिक सबकुछ सही नहीं, पुरातन सब ग़लत नहीं।
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चौपाल में बरसा संगीत और सुरों का जादू
शेखर दा ने कहा कि आज हम शास्त्रीय गीत और संगीत का जो शुध्दतम स्वरूप देख रहे हैं इसको जिंदा रखने में तवायफों का बहबुत बड़ा योगदान रहा है,
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महिला शक्ति की चौपाल ने जमाया रंग
ऐसे तो चौपाल हर बार मुंबई के अंधेरी स्थित भुवंस के एसपीजैन सभागृह में होती है मगर चौपाल के यजमान दिनेश जी और कविता को लगता है
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चौपाल में नवदुर्गा भक्ति की रसधारा ने सबको भिगोया
इस बार चौपाल नवदुर्गा पर थी और जाहिर है चौपाल में जब किसी विषय पर चर्चा होती है तो वो एक सार्थक, सकारात्मक और शोधपूर्ण ढंग से ही होती है।
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चौपाल में हुई अहसासों की बारिश
25 जून रविवार और वहग भी बारिश से तरबतर मुंबई, 20 साल की हो चुकी चौपाल 21वें साल में प्रवेश कर रही थी और बारिश के तेवर देखकर ऐसा लग रहा था कि इस बार चौपाली बारिश से हार जाएंगे, लेकिन ये चौपाल का ही जलवा है कि दस मिनट का रास्ता एक घंटे में तय करने का हौसला
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भारती जी ने कहा, ‘सुबह जब चिरैया बोलन लागी’ ऐसा लिखो, और ये नाटक अमर हो गया
मुंबई की भाग-दौड़ की ज़िंदगी में महीने का एक रविवार ऐसा भी होता है जब मुंबई में साहित्य, संस्कृति, संगीत, नाटक, कला और सृजनात्मकता कि तमाम विधाओं से जुड़े लोग एक साथ इकठ्ठे होकर दुनिया के तमाम विषयों पर बात करते हैं, लेकिन वाद-विवाद नहीं होता। चौपाल में हर बार एक नया विषय होता है और उस विषय पर उस क्षेत्र का विशेषज्ञ खुले मन से अपनी बात ऱखकर श्रोताओं को त-तृप्त कर देता है।