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द कन्वर्शनः लव जिहाद पर रोंगटे खड़े कर देने वाली फिल्म
ये फिल्म उन हिंदू लड़कियों की आँखें जरुर खोलेगी जो लव जिहाद में फँस जाती है और बाद में किसी सूटकेस में या किसी नदी, नाले या समुद्र में लाश बनकर अपने घर वालों के लिए एक नासूर बन जाती है।
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आरआरआर फिल्म आधी हकीकत, ज्यादा फसाना
फिल्म के आखिर में दिखाया गया है कि अभिनेता भगवान राम के रूप में नजर आने लगता है । सच ये है कि पूरी जिंदगी कोमाराम भीम भगवान राम जैसे वेष में ही रहे थे । लेकिन ये सच आखिर में हल्का सा दिखाया गया ताकी हिंदुओं की कृपा प्राप्त की जा सके ।
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द कश्मीर फाइल्स : आत्मा को अंदर तक हिला देने वाला अनुभव है
अब भी अगर आप सोचते हैं, कि आपको जो पता है, वो सच है, या आप जो जानते हैं, वो सच हैं, तो आप घोर मिथ्या जी रहे हैं मेरे दोस्त. यह फिल्म जरूर देखिये, परिवार, मोहल्ले, जिले और पूरे शहर के साथ देखिये, अधिकाधिक लोगों को
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द कश्मीर फाइल्स”, कश्मीरी हिंदुओं पर हुए भयावह अत्याचार पर बनी एक साहसी फिल्म है
मुझे एक्स्ट्रा कूल बनने का कोई कीड़ा नहीं कि फेमिनिस्ट भी बनूँ किंतु महिलाओं पर हुए अत्याचारों और बलात्कार पर सिर्फ इसलिए चुप रहूँ कि वो मेरे एजेंडा में फिट नहीं बैठता जैसे कि लड़की हूँ लड़ सकती हूँ कि रेंज सिर्फ यूपी तक है
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हिंदी फिल्म किसी से न कहना…. बहुत कुछ कहता है समाज से।
मुख्य पात्र उत्पल दत्त के अनुभवों में यह प्रदशित होता है कि अंग्रेजी भाषा ने हमें हमारी जड़ों से दूर कर दिया है। अग्रजों के साथ व्यवहार की शिक्षा निज भाषा से ही संभव है क्योंकि भाषा तय
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अक्षय कुमार की इस ‘लक्ष्मी’ को दर्शकों ने नकार दिया
फिल्मांकन के बारे मे बात करे तो एक फूहड़ कॉमेडी है जो हंसाने और डराने दोनो मे नाकाम फिल्म है, घर की सास बहुओं को आपस मे थप्पड़ लगाते बदतमीजी करते दिखाया गया है
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बदलते भारत की तस्वीर : चेंज चित्र
‘मंगलामुखी’ उत्तर प्रदेश के नेपाल से सटे पाडरोना क्षेत्र के काँची और गुड्डी दो ट्रान्सजेंडर की ज़िंदगी में झांकती है जो जीवन यापन के लिए घर घर बच्चों के जन्म आदि पर नाच गा कर पैसा कमाने के लिए मजबूर हैं ,
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सपनों में सपनों का जलता बूझता दीपक विच्छेदक
यह मूवी सपनों के सस्पेंस और थ्रिल पर आधारित है ।जो दर्शकों को देखने के लिए प्रेरित के साथ साथ रिझाएगी । और कुछ सबक भी सिखाएगी।
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फ़िल्म समीक्षा : सांड की आँख
अर्जुन के अचूक निशाने की प्रेरणा के साथ-साथ तापसी-भूमि की जुझारू जोड़ी, साहस और बुलंद इरादों की अहमियत की दास्तान लेकर जोशीले अंदाज़ में सामने आयी है।
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युद्ध कौशल से ज्यादा ओजस्वी संवादों का गोला बारूद है ‘केसरी’
फिल्म के संवाद कथानक को उभारते हैं - मेरे हिस्से का पानी है पियूं या फेंकूं तुझे क्या.. हमारे कन्धों पर ये किले खड़े हैं और वो हमे डरपोक बताते हैं.. चोट पड़ने पर ही पत्थर की मजबूती का पता चलता है.