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समाज भी कार्य और व्यवहार का मोल जानता है
राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा द्वारा राजस्थान दिवस पर आयोजित " हमारा रंग बिरंगा राजस्थान" ऑन लाइन राष्ट्रीय सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में संयोजक की सफल भूमिका के लिए 23 अप्रैल 2022 को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।
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ख्याली पुलाव नहीं, सपने हुए अपने ….
पुस्तक लेखन और प्रकाशन यात्रा की श्रृंखला में 2016 से 2022 के मध्य प्रकाशित हुई पुस्तक " ये है हमारी रंग बिरंगी बूंदी" का लोकार्पण लोक सभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी ने किया। "अतुल्य अजमेर : विश्व स्तरीय पहचान" ( सह लेखक श्रीमती शिखा अग्रवाल भीलवाड़ा),
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अच्छा लिखना है तो खूब पढ़ो ……..
सेवा निवृत्ति के बाद कुछ नए अखबारों हनुमानगढ़ से प्रकाशित दैनिक इबादत, दिल्ली से अमर उजाला, जयपुर से सत्ताजगत,लखनऊ से ज्ञान ज्योति, कोलकाता से स्वतंत्र भारत, देहरादून से कलम का दायित्व, रांची से प्रभा साक्षी दैनिक,पटना से प्रभात खबर,यूएसए से प्रकाशित एक मात्र 70 पेज का साप्ताहिक
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ज्यादा परेड मत कराओ……..
घर में मेरे परिजन एवं मेरा स्टाफ भी खुश और उत्साहित थे। जयपुर जा कर प्रातः की बेला में सचिव जी से उनके आवास पर भेंट की। उनका पहला प्रश्न था किसने कहा मुझसे मिलने के लिए ?
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लेखन से राष्ट्रपति भवन तक……
वह दिन भी आ गया जब संस्था के आंनद लक्ष्मण खांडेकर, महावीर चंद भंडारी, प्रसन्ना भंडारी और मै 17 अप्रैल की रात देहरादून एक्सप्रेस रेलगाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हुए। दिल्ली में हम भंडारी जी के एक परिचित के यहां जा कर ठहर गए।
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शाब्दिक बलात्कार
विद्वान कहते हैं कि चुप रहने पर अगर कोई आपको मूर्ख समझ भी लें तो भी ये उस क्षण से कहीं बेहतर है जब कि आपके मुखरित होने से आपकी मूर्खता पूर्णतः प्रदर्शित हो जाए. यानी चुप रहने में ही बुद्धीमत्ता है और मनुष्य को वाणी का प्रयोग बहुत सोच समझ और संभल कर करना चाहिए क्यूंकि यही उसके व्यक्तित्व को समाज में यथोचित सम्मान दिलाती है. अन्याय के खिलाफ मौन रखने के अलावा चुप रहना कभी गलत नहीं होता और इसीलिए दार्शनिक अरस्तु ने मौन को मनुष्य की अमूल्यवान शक्ती कहा है.
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आतंकवाद के लिए अमरीका भी कम गुनाहगार नहीं
अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए विनाशकारी हमले को आज सोलह साल का समय बीत गया है. इस घटना को मीडिया ने इतनी बार दिखाया है कि य़े वाक्या हमारे मानस पटल पर अंकित हो चुका है और हालांकि विश्व में कई आंतकवादी घटनाएं लगभग रोज़ घटित हो रहीं हैं
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निर्मम बैंक व्यवस्था
कंप्यूटर युग में, जब हर शाम भारतीय रिज़र्व बैंक को सम्पूर्ण बैंकिंग उद्योग के आंकड़े मिल जाते हैं, ऐसे में नोट्बंदी के छह महीने बाद सरकार की ये दलील कि पुराने नोट अभी भी गिने जा रहे हैं
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आम आदमी : व्यवस्था का मोहरा
हमारे देश में जिसे देखो आम आदमी की चिंता से ग्रसित है. नेता हो या अभिनेता, सरकारी अधिकारी हो या कर्मचारी, मिल मालिक हों या साहूकार, डाक्टर हो या कसाई, हर कोई आम आदमी के जीवन स्तर को सुधारने में प्रयासरत है.