किस शायर की शायरी पर फिदा होकर मासूम “शौकत” ने अपनी मंगनी तोड़ दी और शायर को अपना शौहर बना लिया?
मशहूर शायर और गीतकार कैफी आजमी ताउम्र अपनी रूमानियत के लिए मकबूल रहे। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह रही कि जो भी उनसे मिलता वे उसे अपना बना लेते। उनसे जुड़ा ऐसा ही एक फलसफा समकालीन शायर निदा फाजली ने साझा किया था। ….
निदा फ़ाजली ने कहा था- ये उन दिनों की बात है जब हम सभी जवान थे और अक्सर मुशायरों में जाया करते थे। हैदराबाद के ऐसे ही एक मुशायरे में कैफ़ी ने जैसे ही अपनी मशहूर नज़्म पढ़नी शुरू की तालियों के शोरगुल में उस लड़की ने पास बैठी अपनी सहेलियों से कहना शुरू किया, “कैसा बदतमीज शायर है, वह ‘उठ’ कह रहा है उठिए नहीं कहता और लगता है इसे तो अदब-आदाब की अलिफ-बे भी नहीं आती। फिर इसके साथ कौन उठकर जाने को तैयार होगा?” मुंह बनाते हुए उसने व्यंग्य से शायरी की पंक्ति दुहरा दी, ‘उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे..’ ।
मगर जब तक श्रोताओं की तालियों के शोर के साथ नज्म खत्म होती तब तक उस लड़की ने अपनी जिंदगी का सबसे अहम फैसला ले लिया था। मां-बाप के लाख समझाने पर भी नहीं मानी। सहेलियों ने इस रिश्ते की ऊंच-नीच के बारे में भी बताया की वह एक शायर है, शादी के लिए सिर्फ शायरी काफी नहीं होती। शायरी के अलावा घर की जरूरत होती है। वह खुद बेघर है, खाने-पीने और कपड़ों की भी जरूरत होती है। कम्युनिस्ट पार्टी उसे मात्र 40 रुपए महीना देती है। इससे कैसे गुजारा हो सकेगा। लेकिन वह लड़की अपने फैसले पर अटल रही।
और कुछ ही दिनों में अपने पिता को मजबूर करके बंबई ले आई जहां सज्जाद जहीर के घर में कहानीकार इस्मत चुगताई, फिल्म निर्देशक शाहिद लतीफ, शायर अली सरदार जाफरी, अंग्रेजी के लेखक मुल्कराज आनंद की मौजूदगी में वह रिश्ता जो हैदराबाद में मुशायरे में शुरू हुआ था, पति-पत्नी के रिश्ते में बदल गया। वो लड़की कोई और नहीं कैफ़ी की पत्नी शौकत खान थीं।
ये रही वो मशहूर नज़्म…जिसने शौकत खान को अपनी सगाई तोड़ने पर मजबूर किया….
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
कद्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं
तुझमें शोले भी हैं बस अश्क फिशानी ही नहीं
तू हकीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज जवानी ही नहीं
अपनी तारीख का उन्वान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान..मेरे साथ ही चलना है तुझे