Saturday, November 23, 2024
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Homeप्रेस विज्ञप्ति'तुलसी साहित्य में लोकमंगल दृष्टि' पर परिचर्चा का आयोजन

‘तुलसी साहित्य में लोकमंगल दृष्टि’ पर परिचर्चा का आयोजन

कोटा। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय, कोटा में ‘तुलसी साहित्य में लोकमंगल दृष्टि’ पर एक महत्वपूर्ण परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस आयोजन की शुरुआत माँ शारदे की प्रतिमा एवं गोस्वामी तुलसीदास के छाया चित्र पर माल्यार्पण से की गई। कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत गीत से हुई, जिसे डॉ. शशि जैन ने प्रस्तुत किया। मंच संचालन की जिम्मेदारी श्री के.बी. दीक्षित, वरिष्ठ उद्घोषक ने निभाई। इसके बाद आगंतुक अतिथियों का स्वागत सत्कार किया गया।

स्वागत उदबोधन डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव, संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष ने दिया, जिन्होंने उपस्थित सभी अतिथियों और दर्शकों का स्वागत किया। अपने उदबोधन मे डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि-“ तुलसीदास जी की रचनाएँ न केवल धार्मिक प्रवृत्तियों को स्पष्ट करती हैं बल्कि समाज के उत्थान और लोकमंगल के लिए भी प्रेरित करती हैं। उनकी काव्य-रचनाएँ विभिन्न जातियों और वर्गों के बीच धार्मिक एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती हैं।

बीज भाषण सत्येन्द्र वर्मा (उप प्राचार्य) ने प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने तुलसीदास के साहित्य में लोकमंगल की दृष्टि पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि – दोहावली और श्रीराम सौरभ तुलसीदास के संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली काव्य हैं, जो धार्मिक और नैतिक शिक्षा प्रदान करते हैं। इन रचनाओं में भक्ति की गहराई और जीवन के विविध पहलुओं पर उपदेश प्रस्तुत किए गए हैं।

मुख्य वक्ता श्रीमान खुशवंत मेहरा (प्राध्यापक, हिंदी) ने तुलसी साहित्य की गहराइयों पर प्रकाश डाला और उसकी लोकमंगल दृष्टि को समझाया। उन्होने इस अवसर पर कहा कि – तुलसी साहित्य, विशेष रूप से गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित काव्य और ग्रंथ, भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। तुलसीदास ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से भक्ति और धर्म की गहरी समझ प्रस्तुत की, विशेष रूप से रामचरितमानस के माध्यम से।

आचार्य बद्रीलाल गुप्ता (महाकवि) ने अध्यक्षता की और अपने विचार साझा किए।उन्होने इस अवसर पर कहा कि – तुलसी साहित्य भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ भक्ति, धर्म, और नैतिकता के संदेश को जनसाधारण तक पहुँचाने का माध्यम बनी हैं। उनकी काव्य-रचनाओं में निहित लोकमंगल दृष्टि और सामाजिक सन्देश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।

मुख्य अतिथि श्री रघुवर दयाल विजय (सेवानिवृत्त उप प्राचार्य) और विशिष्ट अतिथि श्रीमान राधेश्याम शर्मा (सेवानिवृत्त प्राचार्य) ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि – तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में आसान हिंदी भाषा का प्रयोग किया, जिससे यह आम जनता के लिए सुलभ हो गई। उनकी काव्य शैली और भावनात्मकता ने उनकी रचनाओं को व्यापक लोकप्रियता दिलाई।

राधेश्याम शर्मा ने कहा कि – काव्य और पद्य में धार्मिक और नैतिक शिक्षा देने वाली यह रचना तुलसीदास के काव्य कौशल का प्रमाण है। इसमें भक्ति, साधना, और भगवान के प्रति प्रेम को प्रकट करने वाली कविताएँ हैं।

यह परिचर्चा तुलसीदास के साहित्य और उसकी लोकमंगल दृष्टि को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुई, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से आए विशेषज्ञों ने अपने विचार प्रस्तुत किए और साहित्य की गहराइयों को उजागर किया।

कार्यक्रम का प्रबंधन अजय सक्सेना कनिष्ठ सहायक , रोहित नामा कनिष्ठ सहायक , रामविलास धाकड़ परामर्शदाता समेत यतिश सक्सेना , छीतर लाल , कन्हेया जी ने किया | कार्यक्रम का छायांकन मधुसूदन चोधरी ने किया | डॉ. शशि जैन ने आभार प्रदर्शन किया।

Dr. D. K. Shrivastava
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