पण्डित राम सुमिरन पाण्डेय ‘सुमन’ जी का जन्म अश्विन शुक्ल त्रयोदशी सम्बत 1983 विक्रमी को ग्राम गढ़ा तहसील हर्रैया जिला बस्ती में हुआ था। इनके पिता का नाम पण्डित काशी प्रसाद पाण्डेय और माता का नाम श्रीमती सीतापति देवी था। साहित्यरत्न की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे 1946 में जिला परिषद बस्ती के विभिन्न प्राथमिक स्कूलों मे सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत रहे हैं । ‘सुमन’ जी गीतकार और कवि के रूप में बस्ती के कवि मंडली में अपना उच्च स्थान रखते हैं। ये चतुर्थ चरण के विकस में नवोदित छन्दकार के रूप में अपना प्रयास कर रहे हैं। इनके अधिकांशत: छन्द अव्यवस्थित रूप से इनकी डायरियो में देखे गये। इनके छंदों में ब्रजभाषा और बड़ी बोली का मिश्रण अधिक पाया जा रहा है।अधिकांश छन्द केवल तुकबन्दी तक ही सीमित है। दो छन्द यहाँ प्रस्तुत हैं-
उक्त लीलार लाल उषा सी बनी ठनी सी,
मोहिनी यो सोहनी ललित लाल सारी है।
कांति के किरन को बिखेरती बिखेरती सी
चली ताप दाप लै तिमिर तपहारी है।।
कोक लोक शोक से विशोक ओक से भरे
ग्रीष्म दुपहरी त्रिषा मृगवारी है।
यौवन आगार भार बनी है उदार हार
सुमन सी चेतना विराट रूपधारी है।।
मनहरन के अतिरिक्त सुमन ली ने दर्जनो सवैया छन्द लिखे हैं किन्तु भावो की आकुलता होते हुए भी शिल्प की शिथिलता से ये छन्द अत्यन्त शिथिल हो गये हैं। एक छन्द और प्रस्तुत है
रुप अमन्द चसै मकरन्द
वे घूंघट के पट ओट लुकाई।
नैनन की अरुनी बरुनी
न झपै न कपै नवलेह ढीठाई।
चाह पराग विराग लिये
अनुराग़ के राग में राग़ बसाई।
नेह निराश कबहूं न करें
ललना पलना मधुमास जो छाई।।
सुमन जी आधुनिक चरण के बहु चर्चित छंदकार हैं। अपने छन्दों से काव्य सृजन में भी हुए ये बड़े उल्लासी व्यक्ति हैं। भविष्य में इनके छन्दो में अच्छा निखार आयेगा और ये सहृदय समाज द्वारा अपने कृतित्व के अनुसार बहु प्रशंसित होंगे।
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। (मोबाइल नंबर +91 8630778321;)
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