Monday, December 23, 2024
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प्रो. असीम रंजन पाढ़ी के अनूदित काव्य-संग्रह ‘पिता और पुत्रों की’ पर चर्चा

उत्कल विश्वाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग द्वारा ‘ट्रांसलेटिंग लिटरेचर ऑफ  ग्लोबल साउथ: चैलेंजेज, क्वेश्चंस एंड डिबेट”  विषय पर आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी में उत्कल विश्वाविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर असीम रंजन पाढ़ी  के अंग्रेजी काव्य-संग्रह “ऑफ फादर एंड संस”  के हिंदी साहित्यकार दिनेश कुमार माली द्वारा किए गए हिंदी अनुवाद “पिता और पुत्रों की” पर गहन विमर्श किया गया ।
 
 इस सत्र के अध्यक्ष स्वयं प्रोफेसर असीम रंजन पाढ़ी थे, जिन्होंने अपने काव्य में  महाभारत के  मिथकीय पात्रों से तत्कालीन शक्तिहीन असहाय और दुर्दशा भोग रहे पिताओं के वर्तमान रूप को गीति-काव्य  के रूप में परिचय दिया। प्रख्यात लेखक-अनुवादक दिनेश कुमार माली ने इस संग्रह की अंग्रेजी से हिंदी में अपनी अनुवाद प्रक्रिया के बारे में बताया और कविताओं के अंतर्वस्तुओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कवि प्रोफेसर पाढ़ी को धारा के विपरीत बहने वाला समाज सुधारक कवि बताया, जो आधुनिक युग की सबसे विकृत समस्या लैंगिक विभेद के खिलाफ  साहस  के साथ अपनी आवाज को काव्य-स्वर में बुलंद करते हैं। 
 
प्रोफेसर पाढ़ी के अनुसार उनकी कविताओं के हिंदी अनुवाद ने उनके कवि को पाठकों के हृदय और अधिक नजदीक लाया है, क्योंकि अंग्रेजी भाषा की तुलना में हमारे देश की भाषाओं में संवेदनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत सहज और प्रभावशाली होती है। रेवेंसा विश्वाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अंजुमन ‘आरा’ ने इस संग्रह की समीक्षा करते हुऎ कहा कि प्रोफेसर पाढ़ी  ने अपने व्यक्तिगत दुखों को मिथकीय पात्र ‘कर्ण’ और ‘दुर्योधन’ के माध्यम  से सर्वभौमिकता प्रदान की हैं। 
 
समीक्षक प्रोफेसर अंजुमन आरा  के अनुसार मिथकीय पात्रों को वर्तमान समय के अनुरुप नई सोच के साथ ढालना, प्रेम की विकलता-आकुलता और अंतरंग आत्मीयता कवि पाढ़ी की कविताओं के मुख्य स्वर है। रेवेंसा विश्वविद्यालय के दो शोधार्थियों ने इस काव्य-संग्रह की दो कविताओं का वाचन भी किया। उसके बाद सभागार में उपस्थित प्राचार्यों, शोधार्थियों, साहित्यकारों ने भी अनूदित पुस्तक पर खुले मन से अपने विचार रखें। जिससे एक पुरुष होने के नाते उनकी कविताओं में  ऊपरी धरातल पर पिताओं यानि पुरुषों के प्रति कवि की पक्षपाती नजर के आरोप के खंडन के साथ-साथ उन कविताओं में  छुपे मातृत्व प्रेम और नारियों के प्रति उनकी सहानुभूति, स्वानुभूति और मानवीय प्रेम की भावना भी ऊजगर होती है ।इस सत्र के माध्यम से न केवल संगोष्ठी की थीम और उद्देश्य सार्थक हुआ है, बल्कि नए पुरुष विमर्श को भी जन्म दिया है। अंत में, रेवेंसा विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अंजुमन आरा और  लेखक अनुवादक दिनेश कुमार माली को उनके सार्थक सराहनीय योगदान के लिए उत्कल विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।

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