Thursday, November 21, 2024
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मीठी मार कर आइना दिखाती फारूक आफरीदी की व्यंग्य रचनाएं

राजस्थान में जोधपुर मूल के फारूक आफरीदी एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने काव्य सृजन से साहित्य जगत में कदम रखा परंतु वयंग्य रचना लेखन से राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश भर में
साहित्य के राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाई। इनकी व्यंग्य रचनाओं ने इन्हें लोकप्रियता प्रदान की।
आप साहित्य के अध्येता होने के साथ – साथ सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। आप प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। पीएलएफ जैसे जन साहित्य उत्सवों के आयोजकों में से एक  रहे हैं। साथ ही आप एक लोकप्रिय जनसंपर्क कर्मी और पत्रकार भी हैं।
कहते हैं आजकल अपनी छवि को लेकर चिंता करने का वक्त जाता  रहा। खराब छवियों वाले लोग खूब फल फूल रहे है। लेकिन यह फैशन बन गया  है सामने वाले की छवि सही होनी चाहिए वह बेदाग होना चाहिए यही दोगलापन चल रहा है । इसी को दर्शाती इनकी एक व्यंग्य रचना ‘’अपनी छवि सुधारिये जनाब ’’ से इनकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत करते हैं…
 अपनी छवि सुधारिए :
 ‘’मेहता मखतूरमल मेरे  मोहल्ले  की शाला के मास्टर और मोतबिर आदमी हैं। बदले हुए युग में भी लोग उन्हें बड़ी इज्जत देते हैं वरना बेचारे मास्टरजी की तो मखौल ही उड़ाई जाती है आजकल। यही मास्टर जी आज सवेरे-सवेरे मेरी चौखट पर दस्तक देने आये।  मुझसे कहने लगे- भइया जी, आप राइटर लोग हो, सोसायटी की क्रीम हो और सारी ऊंच-नीच समझते हो। जरा यह तो बताओ कि मेरी छवि खराब है क्या? यह सुनकर हंसने को जी चाहता था । मैंने कहा – शक्ल सूरत से तो छवि अच्छी लगती है फिर किसने आपकी छवि पर ग्रहण लगा दिया?
वो आला अफसर आज शाला निरीक्षण पर आया था। मुझसे बोला – ‘मेहता, अपनी छवि सुधारो।’  मेहता को मैंने समझाया- मास्टर जी, यह तो इस सदी का मुहावरा है।  पहले मेरे दो प्रश्नों का उत्तर दो। ट्यूशन के क्या हाल हैं?
मास्टर जी बोले – सुसरे स्कूल में जितने छोकरे आते हैं उससे कहीं ज्यादा तो मेरे घर पढ़ने आते हैं। मैंने दूसरा प्रश्न किया – इतनी कमाई करते हो तो ऊपर वालों को खुश भी रखते हो कि नहीं? मेहता के मुख का जुगराफिया एकदम बिगड़ गया और बोला – नहीं, यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। मैंने भांप लिया कि मेहता की छवि यहीं से खराब हुई। तुरन्त समझाया – बंधु, समझदारी से काम लो। अपने अफसर की मुट्ठी गरम करो और देखो कि तुम्हारी छवि निखरती है कि नहीं। मास्टर हो तो दीन-दुनिया की खबर रखा करो भाई! मुट्ठी गरम करने के भी दो तरीके हैं – कैश और काइंड।
मैंने उदाहरणों का बस्ता खोला। देखो मेहता जी, पिछले बीस साल से साहित्य अकादमी वाले मुझसे कह रहे हैं कि लिक्खाड़   लठ मत मार बल्कि अपनी छवि सुधार। मैं अगर अपनी छवि सुधार लेता तो चार किताबें अब तक छप जाती, उन पर पुरस्कार मिल जाता और साहित्य शिरोमणि का सम्मान भी पाता। बस यह छवि ही नहीं सुधार पाया। अब दूसरा उदाहरण लें।
अपने मौनी बाबा ने पार्टी और खुद की छवि सुधारने का जोरदार अभियान चलाया था। एक झटके में दिग्गजों को उखाड़ कर दरिया में फेंक दिया। मौनी बाबा के ऐसे दुर्दिन आये कि खुद उनकी छवि बिगड़ गई और जिनकी बिगड़ी हुई थी, केसर-पिस्ते का दूध पीकर उन्होंने अपनी छवि सुधार ली। छवि सुधार तो ताकत की खीर है। भुजबल हो या मुट्ठी बल। दोनों हों तो सोने में सुहागा।
अपने विधायक भगदौड़ीलाल को ही देखो। उन्हें छवि सुधारने के लिए डांट पिलाई गई थी। भगदौड़ीलाल ने हाईकमान को एक पेटी पहुंचाई तो उनकी छवि सुधर गई। इधर उनकी छवि सुधरी और उधर काबीना मंत्री की कुर्सी मिली। पासा ऐसा पलटा कि उलटा हाईकमान मुख्यमंत्री को कह रहा है कि अपनी छवि सुधार लो वरना हमारे पास तुम्हारा रिप्लेसमेंट तैयार है। एक उदाहरण और लो। पिछले दिनों अफसर-ए-आला ने हमारे हैड साहब को बुलाकर फटकारा। उसका लब्बो-लुबाब भी यही था कि मिस्टर अपनी छवि सुधारो वरना ऐसी जगह पटक दिये जाओगे कि लोग कहेंगे इस सड़ान्ध से दूर रहो।
हमने कहा – मेहता जी सुनो, कल को तुम्हारा कहीं ट्रांसफर हो गया तो यार लोग यही कहेंगे न कि उसकी तो छवि ही खराब थी। बाद में पता चला कि उनकी छवि सुधर गई निरीक्षण प्रतिवेदन में अफसर ने लिखा –
 ” मिस्टर मेहता इज एन इंटेलिजेंट एण्ड ओनेस्ट टीचर ऑफ द सोसायटी। “
ऐसे बने व्यंग्यकार :
इन्होंने  70’ के दशक में व्यंग्य साहित्य लेखन शुरू किया तब व्यंग्य की दृष्टि से हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और रवीद्रनाथ त्यागी का दौर था। इन्हें पढ़ते-पढ़ते उनके भीतर  भी व्यंग्य आकार पाने लगा। शरद जोशी  से तो कई बार प्रत्यक्ष मिलना हुआ और उनकी रचनाओं को लेकर संवाद भी हुआ। अग्रज राजस्थानी भाषा के समर्थ कवि डॉ. तेजसिंह जोधा उन दिनों जोधपुर के दैनिक जलते दीप में एक साप्ताहिक कॉलम लिखते थे ‘मामूलीराम की डायरी।‘
 इस डायरी में वे आमजन के दर्द को व्यंग्यात्मक शैली में उकेरा करते थे। कुछ समय बाद उन्होंने जब अखबार छोड़ दिया तो समाचार संपादक के नाते यह कॉलम फारूक आफरीदी के जिम्मे आ गया। उस समय उनके  पास व्यंजना की वैसी भाषा नहीं थी जिसकी दरकार होती है,लेकिन अपने बुजुर्गों से ऐसी भाषा सुनी और कुछ समझी थी कि कैसे व्यंग्य किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार-व्यंग्यकार गोवर्धन हेड़ाऊ ‘मस्त गोड़वाड़ी की कलम से’ ललकार साप्ताहिक में कालम लिखते थे जो इनकी प्रेरणा का स्रोत बना।
विद्वान मित्रों ने सलाह दी कि कबीर को पढ़ो और यही किया और कबीर के मुरीद हो गए और आज भी हैं। मामूलीराम की डायरी को शनैः-शनैः पाठकों ने पसंद करना शुरू कर दिया। उसके फीडबैक ने भीतर ऊर्जा का संचार किया तो जिम्मेदारी और बढ़ गई । यह तो प्रारंभ में ही जान लिया था कि व्यंग्य लेखन कोई हंसी ठट्ठा नहीं है। यह एक जिम्मेदारी भरा लेखन है जिसमें विचार, करुणा और भाषा की विशिष्ट शैली जरूरी है। परसाई और शरद जोशी के व्यंग्य लेखन ने इस दृष्टि से राह दिखाई। किसी बड़े लेखक की शैली और उसके नक्शे कदम पर चलकर रचा गया सृजन किसी को आगे नहीं बढ़ा सकता। इसका हमेशा अहसास रहा।
पहला व्यंग्य संग्रह ‘मीनमेख’ 1995 में आया जिसका लोकार्पण कथा पुरोधा और संपादक कमलेश्वर ने किया और अपने समय के वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. यशवंत व्यास ने अध्यक्षता की। लंबे अंतराल के बाद दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘धन्य है आम आदमी‘ 2022 में आया जिसकी देश भर के 70 से अधिक प्रतिष्ठित व्यंग्यकारों ने समीक्षा की। देश-विदेश से प्रकाशित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के व्यंग्य विशेषांकों और विभिन्न व्यंग्य संकलनों में इनकी व्यंग्य रचनाएं निरंतर स्थान पाती रही हैं।
उपन्यासकार यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ ने पुस्तक की भूमिका में लिखा , ” फारूक आफरीदी उन व्यंग्यकारों में हैं जिन्होंने वर्तमान की समग्र स्थितियों चाहे वे सामाजिक हों या सांस्कृतिक, आर्थिक हों या सरकारी तंत्र की, व्यक्ति की हों या समष्टि की, अपने हिसाब से उकेरने की चेष्टा की है, जो  वैचारिक दृष्टि भी देती हैं। इनके व्यंग्यों में आज की व्यवस्था के प्रति भयंकर आक्रोश है और आक्रोश है उन खोखले व्यक्तियों के प्रति, जो मुखौटे लगाए हुए ‘महान’ बने फिरते हैं। अनेक स्थलों में उनका अनुभव प्रखर लगता है।‘’
परसाई परम्परा के व्यंग्यकार :
प्रतिष्ठित व्यंग्यकार और ‘’व्यंग्य यात्रा’’ के यशस्वी संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय कहते हैं,  ‘’ फ़ारूक आफ़रीदी वह दिन देखना चाहते हैं जब आम आदमी आत्मनिर्भर बन जाएगा, उस दिन कहेगा, ऐ नेता चल हट यहाँ से, अब तेरी ज़रूरत नहीं, हम ख़ुद तेरी जगह चुनाव लडेंगे। आज का आमजन जो सजग हुआ है उसमें फ़ारूक जैसे बुद्धिजीवियों की भूमिका अहम मानते हैं। चाहे आज बुद्धिजीवी भी अपने-अपने राम की तरह अपने अपने दलों की भाषा बोलते हुए कार्यकर्ता-सा धर्म निभा रहे हों पर वे बेहतर विकल्प को तर्को के साथ रख़ते हैं। आफ़रीदी परसाई परम्परा के व्यंग्यधर्मी हैं जो अपने समय की विसंगतियों को न केवल गिद्ध दृष्टि से पकड़ते हैं अपितु उन पर दिशायुक्त प्रखर प्रहार भी करते हैं। इस संकलन ने मेरे मन में उनके प्रति अनेक आशाएं जगाई हैं और मुझे विश्वास है कि वे हिन्दी व्यंग्य को समृद्ध करेंगे । “
 कवि रूप :
व्यंग्य रचनाकार के कवि कर्म पर चर्चा नहीं की जाए तो इनकी साहित्यिक यात्रा अधूरी रहेगी। ये एक संवेदनशील कवि हैं। उनकी कविताओं में जहां एक ओर प्रेम और सद्भाव मुखर है वहीं दूसरी ओर वे समाज के वंचित वर्ग के सशक्त पैरोकार के रूप में सामने आते हैं। व्यवस्था के विरोध में उनकी कविता बहुत कुछ कहती है । इनकी कविता का एक तेवर यह भी देखिए जब विश्व में प्रेम के  विभिन्न उपादान खंडित  होते जा रहे हैं। परिवार संस्था खतरे के निशान को पार कर चुकी है। रिश्तों की हत्या हो रही है। छिन्न-भिन्न होते रिश्तों के समय में ये कवि प्रेम को लेकर आश्वस्त है। इस कविता  में प्रेम का उदात्त रूप प्रतिबिम्बित होता दिखाई देता है और भरोसा दिलाता है कि इसका अस्तित्व सदा बना रहेगा।
” प्यार का कोई बाजार नहीं ” कविता की बानगी देखिए…………
 प्यार का कोई बाजार नहीं
यह अन्तःस्थल में अंकुरित होता है
इसके खेत कभी सूखते नहीं
ये हर अच्छे बुरे मौसम में
पल्लवित होता है
आँधियों से टकराना इसकी फितरत है
प्यार झंझावातों का ही तो दूसरा नाम है
दुःख की घड़ी में इसका मोल और बेशकीमती हो जाता है
ये सन्नाटों और
अकेलेपन का साथी है
दुनिया के किसी कारा में इसे कैद नहीं किया जा सकता।
प्यार को सत्य की भांति परेशान किया जा सकता है
हताशा के भंवर में डाला जा सकता है
लेकिन हर चक्रव्यूह को तोड़कर
उजाले को तलाश लेता है प्यार
जिद्दी होता है प्यार
शर्मीला हो सकता है लेकिन शर्मसार नहीं करता किसी को
अंधकार की सारी कोठरियों से
निकल आता है प्यार
इसे हताश और निराश करने की
कोशिशें की जाती रही हैं अकसर
हर अग्नि परीक्षा के लिए
तैयार रहता है प्यार
बल्कि अभिशप्त है इसके लिए यह
बहुत नसीब वाले ही
देख पाते हैं इसकी परिणति ।
 प्रकाशन :
इनकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  मीनमेख, बुद्धि का बफर स्टाक और धन्य है आम आदमी ( तीनों व्यंग्य संग्रह) हैं,  प्रोढ़ों के लिए ‘गाँधी जी और आधी दुनिया‘और ‘हम सब एक हैं‘ (कहानी),  ‘शब्द कभी बाँझ नहीं होते’ कविता संग्रह है। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के 5 काव्य संकलनों में कविताएं और 10 व्यंग्य संकलनों में व्यंग्य आलेख प्रकाशित हुए हैं। आपने पचास से अधिक पुस्तकों की भूमिकाएँ भी लिखी हैं।
संपादन – लेखन :
वर्ष 1968 में दलित समाज की मासिक से पत्रकारिता में प्रवेश किया। जोधपुर से कथा साहित्यिक पत्रिका ‘’शेष’’ का सम्पादन और ‘’आगूंच (राजस्थानी) का सह सम्पादन किया।
देश-प्रदेश और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य सहित विविध विषयों पर लगभग एक हजार आलेख प्रकाशित। प्रोढ़ों,नवसाक्षारों और बच्चों के लिए भी कहानियां और कविताओं का लेखन किया।  सूचना एवं जनसंपर्क  विभाग की पत्रिका ‘’राजस्थान सुजस’’ के संस्थापक संपादक रहे और आठ वर्षों तक दैनिक ‘’राष्ट्रदूत’’ में सम्पादकीय लेखन किया।
सम्मान :
समय – समय पर आपको विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्य सृजन और पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया गया। आपको प्राप्त सम्मानों में राष्ट्रभाषा परिषद, जोधपुर द्वारा ‘राजभाषा गौरव सम्मान’ , सबरंग संस्था, जयपुर द्वारा श्रीगोपाल पुरोहित साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान,शबनम साहित्य परिषद, सोजत सिटी द्वारा ‘राही साहित्य सम्मान’ , ‘ढूँढाड री ललकार‘ समाचार पत्र द्वारा ‘ढूँढाड गौरव सम्मान’ ,जयपुर पीस फाउन्डेशन, जयपुर द्वारा व्यंग्य के लिए ‘सारस्वत सम्मान’ ,‘काव्या’ फाउन्डेशन,  यूएसए/ नई दिल्ली द्वारा काव्या सम्मान, इन्द्रावती रणसिंह श्योराण फाउण्डेशन, भादरा द्वारा राष्ट्रीय साहित्य सम्मान ,साहित्य समर्था पत्रिका द्वारा शिक्षाविद् डॉ. पृथ्वीनाथ भान श्रेष्ठ कविता संग्रह सम्मान, सम्मान पीआरएसआई, जयपुर चैप्टर द्वारा ’जनसम्पर्क गौरव अलंकरण ,बैंक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, जयपुर द्वारा चन्द्रबरदाई भाषा सम्मान, राष्ट्रीय अणुव्रत लेखक सम्मान, साहित्यांचल रत्नाकर पांडे्य साहित्य सम्मान, बी.पी.अवस्थी साहित्य रत्न सम्मान, शिवप्यारी देवी साहित्य विभूषण सम्मान और सामाजिक सद्भाव और लेखन के लिए सुदर्श सम्मान प्रमुख हैं।
परिचय  :
व्यंग्यकार के रूप में पहचान बनाने वाले रचनाकार फारूक आफरीदी का जन्म जोधपुर में  24 दिसम्बर, 1952 को पिता मोहम्मद अहसान एवं माता फखरन निशा के आंगन में हुआ। प्राथमिक शिक्षा पाली जिले के जैतारण में हुई। जोधपुर विश्वविद्यालय (वर्तमान में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय) से हिंदी साहित्य में एम.ए. और राजस्थान विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया। आप “प्रगतिशील राजस्थान” पत्र के मुख्य कार्यकारी निदेशक हैं ।
वर्तमान में राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष और अन्तर्राष्ट्रीय ‘काव्या‘ इंटरनेशनल फाउण्डेशन, राजस्थान चेप्टर के महासचिव हैं।आप राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से संयुक्त निदेशक पद से सेवा निवृत अधिकारी हैं और वर्तमान में साहित्य और पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
संपर्क :
बी-70/102, प्रगतिपथ, बजाज नगर, जयपुर-302015 ( राजस्थान )
मोबाइल  94143 35772, 92143 35772
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( लेखक 43 वर्षों से इतिहास, संस्कृति, पर्यटन और साहित्य पर लेखन कर रहे हैं। )

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