Thursday, November 21, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोशब्दों से मुस्कान बिखेरने वाले प्रभात गोस्वामी

शब्दों से मुस्कान बिखेरने वाले प्रभात गोस्वामी

राजस्थान के बीकानेर शहर में जन्में प्रभात गोस्वामी आज देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं।  देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकारों की वर्तमान पीढ़ी में बीकानेर के बुलाकी शर्मा, वासु आचार्य, कोटा के अतुल चतुर्वेदी के साथ – साथ इनका नाम व्यंग्य लेखकों में सम्मान से लिया जाता है। व्यंग्य लेख के बारे में गोस्वामी बताते हैं,  ” व्यंग्य रचनाएं जहां पाठकों का मनोरंजन कर उन्हें गुदगुदाती  हैं वहीं समाज की वास्तविकताओं और सवालों को भी सामने रखती हैं। ये रचनाएं समाज में व्याप्त सामाजिक पाखंड, भ्रटाचार, रूढ़िवादी पर कटाक्ष कर जीवन–मूल्यों को स्थापित करने में भी अपना योगदान करती हैं। ” बताते है हरिशंकर परसाई पहले व्यंग्य लेखक हुए जिन्होंने इस विधा को साहित्य में दर्जा दिलवाया। आज बड़ी संख्या में लेखक व्यंग्य विधा में लिख रहे हैं।
ॉव्यंग्यकार प्रभात के व्यंग्य लेखन में इनकी भाषा–शैली में खास किस्म के अपनेपन से पाठक को लगता है जैसे लेखक उसके सामने ही बैठ कर बात कर रहा हो। इनके व्यंग्य संग्रह इनके अनुभवों पर आधारित सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक,राजनीतिक और आसपास बिखरी अन्य अनेक विसंगतियों का सूक्ष्म पर्यवेक्षण कर, समस्याओं की गहराई से पड़ताल कर जिम्मेदारी के साथ  विवेक से लिखे गए हैं और सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना इनका मूल ध्येय है। इनके एक व्यंग्य लेख  की बानगी देखिए………….
” बहुमत की बकरी”
 ” भोलूराम सचमुच बहुत ही भोला है। वर्ना आजकल सब लोग अपने नाम के विपरीत होते जा रहे हैं । एक दिन सुबह-सुबह वह अपनी बकरी के गुम हो जाने की रपट लिखवाने थाने पहुँच गया । ऊँघते हुए कांस्टेबल ने उसे अल सुबह आने के ज़ुर्म में काम पर लगा दिया । टेबल से लेकर बाथरूम तक की सफाई करनी पड़ी । स्टाफ के लिए चाय बनाने के बाद उसे उम्मीद बंधी थी कि अब शायद उसकी एफ़आईआर यानि  प्रथम रिपोर्ट लिख ली जाएगी ! पर, उसे प्रथम रिपोर्ट के लिए दसवें नंबर पर धकिया दिया गया । थानेदार जी के आदेश थे कि पहले नौ रिपोर्ट जो कुछ दिनों से पेंडिंग चल रहीं थी , उनको दर्ज किया जाए । क्योंकि बीती रात ही उन पर ‘पेपर वेट’ रखा गया था ।
 वैसे भी हमारे यहाँ ग़रीब लोगों को इंतजार ही करना पड़ता है । लाइन तोड़ने का अधिकार केवल धनवानों और रसूखदारों के पास ही है । भरी दुपहरी में खाना खाने के बाद कांस्टेबल जी कुछ सुस्ताए । कहीं थाने पर गरीब विरोधी लेबल चस्पा न हो इस डर से बड़े अनमने होकर बकरी की गुमशुदगी का मामला दर्ज किया । भोलू ने बड़ी मासूमियत से पूछा,” जनाब, कल तक तो मिल जाएगी मेरी बकरी ? कांस्टेबल ने बड़ी बेरुखी से ज़वाब दिया,” पागल हो क्या ? ये किसी अधिकारी का कुत्ता या मंत्रीजी की गाय थोड़े ही है जो सारा थाना उसे ढूँढने में लग जाएगा ?  बड़े मामलों में हम इतने चाक-चौबंद रहते हैं कि कोई चीज़ खोने से पहले ही ढूँढ लेते हैं ! अगले हफ्ते आना ।
और, हाँ सुबह-सुबह खाली हाथ मत आना । बोवनी ख़राब होने से हमको पूरे दिन ख़ाली रहना पड़ता है ।”
एक सप्ताह बाद भोलू फिर थाने पहुंचा । पहाड़- सा इंतजार करने के बाद उसने थानेदार से हिम्मत कर पूछा ,”हुज़ूर गए सप्ताह बकरी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी , कुछ पता चला क्या ? थानेदार ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए पूछा,” दुधारू थी या बाखड़ी ? गोलू ने दुखी होते हुए बताया,” हुजूर बाखड़ी थी”। थानेदार,” अबे क्यों समय ख़राब कर रहा है । यहाँ केवल ‘दुधारूओं’ की तलाश ही की जाती है । चल भाग जा , अगले हफ्ते आना ।”
कई-कई हफ्ते बीत जाने के बाद जब भोलू का धैर्य किसी ग़रीब के कच्चे मकान की तरह ढह गया तब वह सीधे एसपी साहब के दरबार में पहुँच गया । ग़रीब की व्यथा सुनकर साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया . … उन्होंने थाने को आदेश दिए । भोलूराम की बकरी की तलाश मंथर गति से ‘मंथरा’, गति-सी शुरू हो गई। रातों-रात सब कुछ बदल गया ! अगले ही दिन तपती दुपहरी में पसीने-पसीने होता हुआ थाने का सिपाही बकरी मिलने का शुभ समाचार देने भोलू के घर गया ।
भोलूराम बड़े उत्साह से थाने पहुंचा । उसने वहां एक मरियल , हांफती हुई कुतिया देखी । जैसे बुरी तरह पिटा हुआ कोई आरोपी किसी बाहरी व्यक्ति के थाने में आने पर उसे जमानातिये होने की उम्मीद भरी नज़रों से देखता है । ठीक वैसे ही कुतिया ने बड़े यकीन से भोलू को देखकर पूंछ हिलाई . और, प्यार से उसके तलुए चाटने लगी । कुछ देर भोलू भाव-विभोर हो गया। भला इतने समर्थ लोगों के बीच में किसी गरीब किसान के तलुए चाटने वाला भी कोई है इस दुनिया में ?
भोलू ने फिर बड़े आश्चर्य से पूछा,” जनाब, कहाँ है मेरी बकरी ?”  थानेदार ने मरियल कुतिया की ओर इशारा करते हुए कहा,”कमाल है ये सामने ही तो बैठी है। कितना निर्लज्ज है तू , इसे नहीं पहचान पाया पर इसने तो तुझे देखते ही पहचान लिया । चल , ले जा इसे और हमारा पिंड छोड़. कल पूरी रात ख़राब कर दी कमबख्त इस बकरी को ढूंढने में.”
 भोलू (आश्चर्य से) ” पर, जनाब ये तो कुतिया है !”  थानेदार,” लो कल्लो बात । अरे मनहूस, ये आदमी की दृष्टि का फर्क होता है । चाँद को देखकर आशिक को महबूबा नज़र आती है , छोटे बच्चों को चंदा मामा और नेताजी को कड़कते नोटों- सा चंदा नज़र आता है , अब तेरी दृष्टि ख़राब है तो अपुन के पास इसका ईलाज नहीं है .।”  तभी पीछे सीखचों में बंद एक आरोपी कराहते हुए भोलू को कहता है,” अबे , तू किस्मतवाला है जो थानेदार जी प्यार से समझा रहे हैं. जब ये अपने हथियार (मोटे डंडे) से समझाते हैं तब अपराध नहीं करने वाले भी अपराध स्वीकार कर लेते हैं , मुझे भी इतनी दूर से ये बकरी नज़र आ रही है.”
थानेदार गोलू से फिर प्यार से बोला कि,” भगवान का आभार प्रकट कर के मेरे सिपाही इसे ढूढ लाए यहाँ करोड़ों के वारे-न्यारे करने वाले गुमशुदा भी ढूँढे नहीं जा रहे हैं !  ये कमबख्त समझता ही नहीं कि भूख और प्यास से बड़े-बड़ों के हुलिए बदल जाते हैं । आज जब इन्सान खुद को ही नहीं पहचान पा रहा तो पशु क्या खाक पहचानेगा ?”
एसपी साहब के आदेश के नीचे दबे थानेदार ने भोलू को पुचकारते हुए कहा,” चल न तेरी न मेरी . थाने में मौजूद सारे लोगों से तस्दीक करवा लेते हैं कि ये बकरी है या कुतिया ?” सारे लोग एकमत ,एक स्वर में कहते हैं,” हुज़ूर ये बकरी ही है.”
थानेदार मूंछों पर ताव दे कर चेहरे पर विजयी भाव लाते हुए,” अब बोल ? बहुमत से फैसला हो गया है । लोकतंत्र में घर से दिल्ली  तक बहुमत का ही सम्मान होता है । राज्यों में भी सारे फैसले बहुमत से ही होते हैं । जिसके पास बहुमत होता है  तो वह जो दिखाता है, देश वही देखता है । जहाँ बहुमत नहीं होता वहां अन्याय और ब्लैकमेलिंग होती है , बहुमत का सम्मान कर और अपनी इस बकरी को ले कर निकल ले पतली गली से. और, हाँ इसे बहुमत की दृष्टि से ही देखना सुखी रहेगा …नहीं तो ?” थानेदार अपने मोटे डंडे पर हाथ फेरता है ।
 भोलूराम,” सरकार आपने मेरी आँखें खोल दी । अनपढ़ और ग़रीब हूँ इसलिए समझ नहीं सका कि देश व्यवस्था से नहीं बहुमत से चलता है । अब तक तो शेखावाटी, मारवाड़ी ,अलवरी नस्लों की बकरी ही देखीं थी । आज बहुमत की बकरी की ये नई नस्ल भी देख ली । ” थानेदार को हाथ जोड़कर वह कुतिया ..नहीं ..नहीं बकरी को लेकर निकल जाता है ।
 इनका यह व्यंग्य लेख आइना है समाज व्यवस्था का। गरीब की कोई सुनवाई नहीं, शिफारिश के बिना काम नहीं, रसूखदारों का बोलबाला और बहुमत का असर। ऐसे की पाठक को गुदगुदा कर समाज की सच्चाई को सामने लाती हैं  इनकी व्यंग्य रचनाएं। साहित्य पर्यटन में आनंद के झूले (साहित्य) और एक क्रिकेटर का प्रेम पत्र (हास्य) इनकी बहुचर्चित रचनाएं हैं।
प्रकाशन :
व्यंग्य लेखन पर आपकी पांच व्यंग्य संग्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें  “बहुमत की बकरी”  “चुगली की गुगली”, “ऐसा भी क्या सेल्फियाना”, “पुस्तक मेले में खोई भाषा ” और ‘प्रभात गोस्वामी के चयनित व्यंग्य” शामिल हैं। आपकी की दो पुस्तकें ” लिखने छपने के टोटके” एवं “कानों देखी” प्रकाशनाधीन है।
इनकी व्यंग्य रचनाएं 11 साझा संकलनों के साथ – साथ देश के प्रमुख समाचार पत्रों – पत्रिकाओं अमर उजाला,नई दुनिया ,राजस्थान पत्रिका ,दैनिक नवज्योति , सुबह सवेरे,इंदौर समाचार,व्यंग्य यात्रा,अट्टहास,राजस्थान डायरी ,विजय दर्पण,जनसंदेश टाइम्स,हिमाचल दस्तक,जनवाणी ,दैनिक युगपक्ष, हिमाचल एक्सप्रेस, वेब पत्रिका प्रतिलिपि, रचनाकार, पुष्पांजली सहित  देश-प्रदेश के विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में व्यंग्य रचनाओं का नियमित प्रकाशन होता है। देश के लोकप्रिय न्यूज़ चैनल- आज तक के ,’साहित्य तक’, चैनल में व्यंग्य विडियोज का  प्रसारण । बॉक्स एफएम रेडियो,जयपुर पर हर बुधवार ‘ व्यंग्य के रंग-प्रभात के संग,’ व्यंग्यकारों से साक्षात्कार कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं । पहली व्यंग्य रचना वर्ष 1976 में  ‘मुक्ता’ पत्रिका में प्रकाशित  हुई थी ,तब से आज तक निरंतर व्यंग्य लेख लिखते आ रहे हैं।
 
 कार्टून :
रचनाकार के कार्टून मुंह बोलते हैं। किशोरवय में कार्टून कला से जुड़ाव हो गया। सामाजिक, राजनीतिक,हास्य-व्यंग्य  आदि विषयों पर वर्ष 1972-75 के बीच कई राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में लगभग 88 कार्टून  प्रकाशित हुए हैं। कहते हैं एक समय था जब बीकानेर में घर – घर कार्टून बनते थे बस इनको भी यह शोक लग गया।
लेखन :
व्यंग्य लेखन के साथ – साथ ये साहित्यिक, सामाजिक, कला – संस्कृति, पर्यटन ,खेल और विकासात्मक आदि विषयों पर विगत 40 वर्षों से नियमित लिख रहे हैं। लेखन ,संपादन और प्रकाशन की लंबी श्रृंखला है। दैनिक युगपक्ष ,बीकानेर में ‘ये जो है ज़िन्दगी’, ‘ रिपोर्ताज़, ‘सप्ताह का व्यंग्य’, सांध्य दैनिक न्यूज़ टुडे, जयपुर में टी-20 विश्वकप और एक दिवसीय विश्वकप क्रिकेट के दौरान प्रतिदिन ‘मिडिल स्टंप’, शीर्षक से दैनिक कॉलम के स्थाई स्तंभकार हैं। इन्होंने उरमूल समाचार’,डेयरी की मासिक पत्रिका, ‘आखर उजास’, साक्षरता बुलेटिन, ज़िला दर्शन,चुनावी बुलेटिन,संकल्प से सिद्धि तक पुस्तक, राजस्थान विकास पत्रिका, सहित अनेक राजकीय प्रकाशनों का संपादन,सह संपादन किया। आकाशवाणी ,दूरदर्शन पर कार्यक्रमों की उद्घोषणा, स्क्रिप्ट लेखन, प्रस्तुति के साथ पार्श्व स्वर देने का लम्बा अनुभव है। आकाशवाणी से फीचर,हास्य झलकियों ,साक्षात्कारों ,वार्ताओं के प्रसारण के अलावा करीब सात सालों तक बीकानेर कर आकाशवाणी केंद्र में अस्थायी उद्घोषक रहे।
यूट्यूब पर क्रेडेंट टीवी,जयपुर के डियर साहित्यकार कार्यक्रम में देश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साक्षात्कारों का प्रसारण किया गया।
क्रिकेट कमेंटरी,सरकारी कार्यक्रमों एवं पर्यटन आदि विभिन्न प्रयोजनों से आपने  श्रीलंका,अमेरिका,ब्रिटेन,बेल्जियम, हॉलैंड,जर्मनी,स्विट्ज़रलैंड, फ्रांस सहित देश केअनेक राज्यों की यात्राएं की हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्य के दौरान राजस्थान के सभी जिलों की यात्राएं की है।
सूचना एवं जनसंपर्क के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य और लेखन के लिए वर्ष 2017 में राजस्थान के प्रतिष्ठित ‘माणक अलंकरण’, वर्ष 2019 में पब्लिक रिलेशन सोसायटी ऑफ़ इंडिया के जयपुर स्कंध द्वारा ‘जनसंपर्क उत्कृष्टता’ अवार्ड, वर्ष 2020 में खुशाल चंद रंगा स्मृति खेल पत्रकारिता पुरस्कार और व्यंग्य की प्रतिष्ठित व्यंग्ययात्रा पत्रिका में श्रेष्ठ व्यंग्य का पुरस्कार , व्यंग्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए सियाराम अवस्थी साहित्य भूषण सम्मान ,तैलंग कुलम सम्मान,खरे स्मृति खेल पत्रकारिता पुरस्कार, महाराजा करणी सिंह खेल फेलोशिप,बीकानेर आपको मिले प्रमुख पुरस्कार और सम्मान में शामिल हैं। साथ ही आपको राज्य और जिला स्तर पर अन्य अनेक सम्मान व पुरस्कार से नवाजा गया है।
परिचय :
व्यंग्य लेखन और कार्टून विधा सहित पत्रकार, स्तंभकार, संपादन में पहचान बनाने वाले रचनाकर प्रभात गोस्वामी का जन्म  5 मार्च 1959 को बीकानेर में पिता स्व. जगदीश चंद्र गोस्वामी एवं माता स्व. प्रभा गोस्वामी के आंगन में हुआ। आपने  बीकॉम,हिंदी साहित्य से एम.ए. तथा स्नातकोत्तर डिप्लोमा पत्रकारिता एवं जनसंचार  की शिक्षा प्राप्त की। लेखन के अलावा खेलों में विशेष कर क्रिकेट खेल में रुचि होने से प्रमुखत: क्रिकेट की अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मैचों में आकाशवाणी से कमेंटरी  की है। साथ ही टेस्ट मैच, एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैचों, टी- 20, रणजी ट्राफी,दिलीप ट्राफी,ईरानी ट्रॉफी,देवधर एवं विल्स ट्रॉफी सहित अनेक राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं की कमेंटरी भी की है।
मंच संचालन का विशेष अनुभव होने से आपने  उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,राज्यपाल,मुख्यमंत्रियों ,केन्द्रीय एवं राज्य सरकार के मंत्रीगण, प्रशासनिक अधिकारियों के आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रमों के मंच संचालन का दायित्व निभाया। आप राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से संयुक्त निदेशक पद से सेवा निवृत हैं और जयपुर में निवास कर लेखन में सक्रिय हैं।

संपर्क :
प 15/27, मालवीय नगर ,
जयपुर-302017 (राजस्थान)
मोबाइल – 9829600567
—————-
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

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