राजस्थान से दिल का रिश्ता रखने वाली रचनाकार पिलानी की किरण खेरूला मुंबई में रहते हुए भी राजस्थानी लोक गीतों, कथाओं, परिवार, समाज, उपेक्षित वर्ग, परिवेश के आसपास की सामाजिक स्थितियों और भारतीय संस्कृति को केंद्र में रख कर सृजन कर रही हैं। उपेक्षित तबका न केवल इनके लेखन में है वरन समाज सेवा का आधार भी बना है। स्वयं भी बचपन से मारवाड़ी समाज में प्रचलित लोक गीत गाती रही हैं। उद्योग घराने से जुड़ी होने के बावजूद बेहद सहज, सरल और सौम्य हैं। किसी प्रकार का दंभ छू तक नहीं गया है और जीव मात्र के प्रति दया का भाव हमेशा मन में रहता है।
सृजन का मर्म यही है कि उपेक्षित वर्ग को भी आदर और सम्मान दो न की उनकी उपेक्षा करो। एक प्रकार से ये लेखन के माध्यम से जहां संस्कृति को उजागर कर उसका संरक्षण कर रही हैं वहीं सामाजिक संदर्भों में आइना भी दिखा रही है और ज्ञान की खिड़कियां खोलती दिखाई देती हैं।
लोक गीत हर संस्कृति की अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक थाती हैं। ऐसे ही राजस्थान की मारवाड़ी संस्कृति बड़ी रंगबिरंगी और समृद्ध है। लोक गीत इस समाज का अमूल्य वरदान है। ब्याह, उत्सव या कोई भी सामाजिक और धार्मिक अवसर हो गीत गाने की प्रथा सदियों की समृद्ध परंपरा है। इस समाज के गीतों को इन्होंने बचपन से ही सुना , गाया, अपने ह्रदय में बसाया और इसी परिवेश में पली बड़ी हुई।
आज जब ये मुंबई में रहती हैं तो इनको पारम्परिक गीतों से जुड़ी अपनी स्मृतियों की याद आती है। गीतों की मिठास इनके ह्रदय में हिलोरे लेती है और जुबान पर गीत थिरकने लगते हैं। परदेश में भी नहीं भूलती गीतों की कर्ण प्रिय धुनों को और इनकी लेखनी से प्रकाश में आई एक पुस्तक ‘शेखावाटी के गीत’।
देश ही क्या दुनिया में जहां भी मारवाड़ी समाज के लोग रहते हैं ज्यादातर के इनके साहित्य से परिचित हैं। लोक गीतों को और कथाओं की संस्कृति और परंपरा की जीवित रखने और आज की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए इन्होंने कोलकाता और मुंबई के गायकों के साथ सहयोग से कई महत्वपूर्ण गीतों को यू ट्यूब पर अपलोड करवाया है। यह लोक संस्कृति के प्रति इनका असीम अनुराग है कि इनके दिल में संरक्षण और इनके प्रसार की भावना विद्यमान है।
बचपन में जब ये नाना – नानी से कहानियां सुनती थी तब गांव वाले भी कहानी सुनने आ जाते थे। कहानी कहने और सुनने का ऐसा माहोल बनता था की हंसी, ठिठोली और ठहाके आज भी ये भूल नहीं पाती और इनके दिल और दिमाग पर चलचित्र की भांति छाए हैं। कहानियों से उत्पन्न हुए अनुराग को भी अपने लेखन का हिस्सा बनाया तथा ” शेखावाटी की कहानियां” पुस्तक शेखावाटी की प्रचलित कहानियों के संग्रह के रूप में सामने आई। कुछ कहानियां शेखावाटी से हैं तो कुछ जीवन पर असर डालने वाली सच्ची घटनाओं पर आधारित। संग्रह की सभी 107 कहानियां राजस्थानी भाषा में लिखी गई हैं।
अपनी जड़ों से जुड़ी परंपरागत कहानियों के साथ जीवन के साक्षात अनुभवों को जोड़ते हुए 47 कहानियों का संग्रह है इनकी कृति ” दुनिया रंग रंगीली “। संग्रह की कहानी ” काम की माँ उरेंसी ” का संदेश है , मेहनत और मीठी बोली दो ऐसे अमोध अस्त्र हैं, कि सबको अपना बना लेते हैं। कहानी ” गर्वित चेहरा” एक बोझ उठाने वाले छोटे से ऐसे लड़के की कहानी है जिसका स्वाभिमानी पिता बच्चे मेहनत से कमाना दिखाना चाहता है। ऐसी कहानियां पढ़ कर लगता है रचनाकार ने जीवन और जगत को अपने अलग ढंग से देखा है। घरेलू, पारिवारिक, समाज के उपेक्षित वर्ग की कहानियों से इनको लगाव है इन वर्गों की घटनाएं कहानियों का रूप ले लेती हैं।
संदेश यही निकलता है इस विराट जीवन में उपेक्षणीय कुछ भी नहीं है, उपेक्षित वर्ग को भी महत्व दो। अपने आसपास की दुनिया को ध्यान से देखो , उसे उचित स्नेह, आदर और सम्मान दो। अपने लेखकीय में वे कहती हैं, जीवन में कई साधारण तबके के प्राणियों से मिल कर , बड़े असाधारण चरित्र वाले पात्रों से मुलाकात मन पर एक छाप छोड़ जाती है। इस संग्रह में इनके जीवन के अनेक संस्मरण हैं जो कहीं मन को गुदगुदाते हैं तो कहीं अनुकरणीय सन्देश देते हैं, आखिर दुनिया रंगरंगीली जो है।
कहानियों से लगाव होने की वजह से ही सम्राट अकबर एवं उनके राज्य के एक रत्न बीरबल के बीच वार्तालाप एवं विभिन्न प्रसंगों के विनोद भरे किस्से ले कर सामने आई इनकी ” बृहद अकबर-बीरबल विनोद” पुस्तक। भरपूर मनोरंजन करने वाली एवं ज्ञानोदय करने वाली उनकी यह कृति पाठकों द्वारा बहुत पसंद की जाती है। कृति में मनोविनोद और शिक्षा देने वाले अकबर – बीरबल के 226 कहानी – किस्से संग्रहित किए गए हैं। कहती हैं ये इतने लोक प्रिय थे की घर – घर में बच्चों सुनाए जाते थे। आधुनिक तकनीकी युग में कहानी – किस्सों की धरोहर तिरोहित नहीं हो जाए इसलिए इन्हें एक किताब का रूप दे दिया है।
लेखन से उनका यह लगाव उनकी पुस्तकों जीवन, भारत तब से अब एवं यत्र तत्र से स्पष्ट झलकता है। इनकी ” जीवन ” काव्य संग्रह कृति में जीवन विभिन्न अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में गुजरने का बेबाकी चित्रण देखने को मिलता है। किस परिस्थिति में मन में क्या भाव प्रस्फुटित होते हैं यह जीवन की कविताओं में बताया गया है। काव्य संग्रह की अतुकांत कविताएं मन को गहराई तक छूती हैं।
लेखिका का अपने देश के इतिहास और संस्कृति प्रेम का दिग्दर्शन है इनकी कृति
” भारत तब से अब “। इस कृति में ईसा के हजारों साल पहले भारतीय ज्ञान और संस्कृति जब अपने चरम शिखर पर थी, तक्षशिला जैसा महाविद्यालय तभी संभव था जब देश में समृद्धि और शांति हो, हमारे यहॉं तो शक, हूण, पारसी, ग्रीक समय- समय पर आते रहे और इसी संस्कृति में समाते रहे और आज बहुत कुछ बदला हुआ है, उस बदलाव पर प्रकाश डालती यह कृति अपने आप में अद्वितीय है। कृति इतिहास को वर्तमान से जोड़ कर संदेश देती हैं कि देश निर्माण के लिए सिर्फ सरकार को नहीं, हर हिंदुस्तानी को अथक मेहनत, ईमानदारी और त्याग करना होगा।
युवाओं को समर्पित है इनकी पुस्तक ” यत्र तत्र ” ज्ञान का अद्भुत संसार है। बड़े युगों के बाद भारत एक सार्वभौम राष्ट्र बना है। अपने क्षुद्र लोभ के कारण कई प्रांत प्रधान देश हित को भूलकर सिर्फ कुर्सी की खातिर अपने देशहित को भूल गये । इधर – उधर बिखरे अनेक प्रेरक प्रसंग जिन्हें छोटी – छोटी कहानियां के रूप में लिखा गया है इस कृति में विषयों का अनूठा वैविध्य है। स्वामी चिन्मानंद जी का पत्र, कण कण में भगवान, सिक्ख भाई, रक्षाबंधन, शिवाजी का ऐतिहासिक पत्र, पद्मनाभ मंदिर, साहस बाहु, भविष्यवक्ता, देवलोक, तरुवर फल नहिं खात, होशियार मनुष्य, गुरु मिले तो बंधन टूटे, बामनिया के बुद्ध, धन का गणतंत्र संग्रह की प्रमुख रचनाओं के सात एक अंग्रेजी रचना ” डोमिनो इफेक्ट ” सहित 37 प्रसंग, कहानी आदि संकलित हैं। यह संग्रह खासकर युवाओं के लिए पठनीय है।
परिचय :
लोक मंगल की कामना से लिखने वाली रचनाकार किरण खेरूका का जन्म राजस्थान के पिलानी में पिता स्व.आत्माराम पाडिया और माता जयदेवी के आंगन में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा पिलानी में ननिहाल लोयलका परिवार में हुई और कोलकाता में लोरेंटो हाउस से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। आज भी इन्हे याद है कि जब स्कूल में पढने के लिए भेजा गया था तो बॉयज स्कूल होने से इनके बाल कटवा दिए गए थे और कुर्ता पायजामा पहनकर स्कूल जाती थी। उसी वक्त बिरला बालिका विद्यापीठ शुरू हुई थी। उन्हें खुशी है कि वे विद्यापीठ की शुरुआती बैच की छात्रा रही। समाज सेवी के रूप में ये कई प्रकल्पों से जुडी हैं। उद्योग संचालन, समझ सेवा के साथ – साथ स्वाध्याय और लेखन में निरंतर लगी हुई हैं।
चलते – चलते…………
आता है तूफां तो आने दे,
कश्ती का खुदा खुद हाफिज है,
मुमकिन है कि बहती मौजों में
खुद बह कर साहिल आ जाये॥
लहलहाती खेती पर कब ओले पड़ जायें,
कब तूफान में पेड़ों की शाखें गिर जायें।।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा