अपनी मातृभूमि तथा राष्ट्र के प्रति भक्ति और प्रेम हमारा प्रथम कर्तव्य है । माता से संस्कारों के रूप में प्राप्त शिक्षा हमें बताती है कि यदि परिवार हमारा लघु रूप है तो हम अपने अग्रजों का अनुकरण करते हैं । उनके गौरव से हमें ऊर्जा और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है । मन स्वाभिमान के भाव से भर जाता है। वैसे ही हमारा संपूर्ण भारत देश एक परिवार है और हम सब देशवासी इस भारत माता की संताने हैं —
” उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् !
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संतति:!! ”
यदि वर्तमान संताने हम सब हैं तो दिवंगत महापुरुष या पूर्वज हमारे अग्रज हैं !अतः अपने प्रतापी अग्रजों या पूर्वजों के स्मरण मात्र से हमारे हृदय में स्वाभिमान के पवित्र भाव भर उठते हैं। जिस कारण प्रसन्नता, स्फूर्ति ,उल्लास, दृढ़ता और उत्साह के साथ अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ता हुआ मनुष्य नई-नई सफलताएं अवश्य प्राप्त करता है! सफलता के लिए नित नई-नई उपलब्धियां जितनी जरूरी हैं उतनी ही जरूरी है अपनी खूबियों को जानना अर्थात् स्वयं को जानना, अपने इर्द-गिर्द की विशेषताओं को समझना! अपने देश को जानना !यहां की विशेषताओं का बोध करना और उसे अपने जीवन में उतरना तथा उस पर विश्वास बनाए रखना!
जीवन का शुभारंभ प्रातः काल से होता है और प्रातः काल होते ही कर्मों का शुभारंभ हो जाता है! काम सदैव हाथों से होते हैं !ईश्वर की असीम अनुकंपा है कि उन्होंने हमें दो-दो हाथ काम करने के लिए दिए हुए हैं जिससे हम अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के कर्म करते हैं! इन्हीं हाथों में हमारे कर्म और भाग्य की रेखाएं भी विराजमान है जिसे ईश्वर ने बनाए हैं !अतः प्रातः काल उठकर आत्महित की कामना से प्रातः स्मरण का पाठ करने से सर्वशक्तिमान ईश्वर में हमारा विश्वास और अटूट होता है! हमारा चरित्र उत्तम होता है! हमारा मन दिन भर प्रसन्नता के भावों से भरा रहता है !उमंग की कमी नहीं होती! किसी भी स्थान एवं किसी भी व्यक्तियों के बीच रहने पर भी हमारे मन, मस्तिष्क एवं आत्मा में आत्म गौरव का भाव भरा रहता है! नकारात्मकता के भाव हमारे ऊपर प्रबल नहीं होते और हम अच्छी सोच के साथ दिनभर कार्य करते रहते हैं! ऐसा हमारे संस्कृति में उल्लिखित है! इन्हीं भारतीय परंपरा के ज्ञान को आत्मसात करना भारत बोध कहलाता है!
दिन और रात का निर्धारण प्रकृति करती है लेकिन अपने कर्म द्वारा भाग्य का निर्धारण हम स्वयं करते हैं ! पूर्व जन्म से इस जन्म तक सब कुछ हमारे कर्मों का ही लेखा-जोखा है! विख्यात है कि ‘जैसा करेंगे वैसा ही भरेंगे ‘ इसीलिए पुरुषार्थ का प्रतीक ‘अपना हाथ जगन्नाथ ‘ की भावना से हमें प्रातः काल उठकर बिस्तर पर रहते हुए ही सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों को फैलाकर उनका दर्शन करते हुए इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए–
“कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती !
करमूले तू गोविंद: प्रभाते कर दर्शनम्!! ”
क्योंकि हमारे हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी का निवास है ! हाथ के मध्य भाग में सरस्वती तथा हाथ के मूल में विष्णु देव का निवास है! कोई भी काम यानि पुरुषार्थ हाथों से ही किए जाते हैं और कर्म की मूल में अर्थात् जड़ में संपूर्ण जगत का पालन करने वाले गोविंद भगवान विष्णु का वास होता है! अतः उनका ध्यान करके हाथों के मध्य में ज्ञान- विज्ञान की देवी सरस्वती का वास होता है! जिनका ध्यान करने के परिणाम स्वरुप सभी के सुखों को देने वाली देवी लक्ष्मी की प्राप्ति होगी, यही तात्पर्य लेकर अपने हाथों का दर्शन करके अपने दिन को मंगल बनाने की प्रार्थना की जाती है, जिससे हमारा दिन मंगलमय हो!
हमारी भारतीय संस्कृति हर कदम पर हमें ऐसा ज्ञान देती है जो विश्व में अन्यत्र दुर्लभ है ! तीनों लोकों में सृजन,भरण और संहार के तीनों (देवता ब्रह्मा विष्णु महेश) हमारे भाग्य तथा संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन करने वाले ग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु, यह सभी ग्रह मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलकारी करें! इस अभिलाषा के साथ हम इस श्लोक से अपने दिन का आरंभ करते हैं —
” ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी, भानु शशी भूमि सुतो बुधश्च!
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव:, कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्!! ”
इस प्रकार देव स्मरण के साथ अच्छे कर्मों से हम दिन का शुभारंभ कर अपने भाग्य का मंगलकारी निर्धारण कर सकते हैं! ज्ञान गौरव से युक्त भारतीय संस्कृति तथा अपने कर्मों पर हमें गर्व होना चाहिए! जिसमें सर्वथा मानव कल्याण की भावना निहित है!
डॉ सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’ अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ (नई दिल्ली)