Sunday, December 22, 2024
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असम के अहोम राजवंश के मोईदाम का विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित होना

यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने असम के अहोम राजवंश के मोईदाम को विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित किया है। देश प्रसन्न है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि, “विरासत सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि मानवता की साझा चेतना है।“ सभ्यता और संस्कृति मनुष्य के जीवन में आनंद लाते हैं। इतिहास के प्राचीन सत्य, शिव और सुंदर को विकसित करते हैं।

धरोहर प्राचीन होते हैं लेकिन समाज को वर्तमान से जोड़ते हैं। श्रुति और स्मृति सांस्कृतिक निरंतरता के उपकरण हैं। मस्तिष्क में शब्द रूप तथा ज्ञान का संरक्षण स्मृति है। स्थापत्य आदि भौतिक उपायों से शिव और सुंदर को स्मृति में बनाए रखने का काम स्मारक करते हैं। समाज स्मारक बनाते हैं। उनकी रक्षा करते हैं। स्मारक प्रेरित करते हैं। उन्हें धरोहर कहा जाता है। संप्रति यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में 168 देशों की 1199 संपत्तियां हैं। भारत में 43 विश्व धरोहर स्थल हैं।

सांस्कृतिक दृष्टि से भारत हजारों वर्ष प्राचीन राष्ट्र है। यहाँ जीवन के सभी पहलुओं पर गहन अध्ययन और शोध जारी रहे हैं लेकिन दीर्घकाल की इस्लामी और ब्रिटिश सत्ता के दौरान भारी सांस्कृतिक क्षति हुई। हजारों मंदिर ध्वस्त किए गए। भारतीय मेधा को अंग्रेजी संस्कारों की तुलना में कमतर बताया गया। इतिहास का विरूपण हुआ। भारत ने श्रुति स्मृति में सांस्कृतिक ज्ञान व संस्कारों को धरोहर माना। भारत की ढेर सारी अंर्तराष्ट्रीय उपलब्धियां हैं। लेकिन ब्रिटिश राज ने भारतीय इतिहास और ज्ञान परंपरा को भी काल्पनिक भाववादी बताया।

‘मोईदाम‘ असम के चराईदेव जिले में अहोम साम्राज्य के शाही परिवारों की कब्रगाह है। इनका निर्माण मिट्टी, ईंट और पत्थर से किया जाता था। यह एक टीलानुमा आकृति थी। 18वीं शताब्दी के बाद अहोम राजाओं ने हिन्दू दाह संस्कार पद्धति को अपना लिया। यह भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए गौरव की बात है। अहोम साम्राज्य की स्थापना 1228 में ब्रह्मपुत्र घाटी में हुई थी। यह साम्राज्य 600 वर्ष तक चला। आहोमों की सेना सशक्त थी। उन्होंने ब्रह्मपुत्र में नौका सेतु बनाने की तकनीक भी सीखी थी। लाचित बोड़फुकन के नेतृत्व में अहोम ने 1671 में सरायघाट के युद्ध में औरंगजेब के शासनकाल में मुगल सेना को हराया था। बोड़फुकन के पराक्रम की स्मृति में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को बोड़फुकन स्वर्ण पदक 1999 से दिया जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बोड़फुकन की विशाल प्रतिमा का लोकार्पण इसी वर्ष किया था। भारत के कोने-कोने राष्ट्र जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सक्रिय लोगों की बहुतायत है। नरसिंह रेड्डी (1806-47) अंग्रेजी सत्ता से संघर्ष करने वाले आंध्र प्रदेश के लोकप्रिय हीरो थे। इन्होंने सैकड़ो अंग्रेज सैनिकों को मारा था। इनका नाम राष्ट्रीय चर्चा में नहीं आया। बिरसा मुंडा भी इसी श्रेणी में आते हैं। देश में सांस्कृतिक महत्व के स्थलों की बहुतायत है। राष्ट्रीय महत्व के ऐसे स्थलों को सूचीबद्ध करना और खुदाई आदि साधनों द्वारा संरक्षित करना एएसआई की जिम्मेदारी है। एएसआई ने श्रम किया है, फिर भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। स्मारकों का संरक्षण राष्ट्रीय कर्तव्य है। कुछ महत्वपूर्ण स्मारक लापता भी बताए जा रहे हैं।

2018 में संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी सिंधु सभ्यता की अध्ययन समिति ने हरियाणा के भिराना व राखीगढ़ी की खुदाई के अध्ययन को महत्व दिया था। इस पुरातात्विक क्षेत्र में कार्बन डेटिंग के अनुसार ईसापूर्व 7000 से 6000 वर्ष की सभ्यता का अनुमान है। समिति के प्रमुख ने सिफारिश की थी कि कार्बन डेटिंग अध्ययन के परिणामों को ऋग्वेद, रामायण व महाभारत के समय संदर्भ से जोड़कर समझा जाना चाहिए। भारत कई संस्कृतियों का देश नहीं है। ऐसा बताने वाले दुराग्रही हैं। वे सुमेरी सभ्यता को हड़प्पा से भी प्राचीन बताते हैं। वे हड़प्पा को सुमेरी सभ्यता की छाया मानते हैं। वे जल भरी सरस्वती और सूखी सरस्वती के बीच समय विभाजन नहीं देखते। ऋग्वेद में सरस्वती जल भरी हैं। यह तथ्य हड़प्पा से पुराना है। बेशक भारत सुमेर और मिस्र प्राचीन सभ्यताएं हैं। इन सभ्यताओं के सम्बंधों का अध्ययन ऋग्वेद के तथ्यों के आधार पर करना चाहिए।

राष्ट्र सांस्कृतिक संपदा में अग्रणी है। दुर्भाग्य से विश्व धरोहरों की सूची में भारत के 43 स्थल ही गणना में हैं। इटली पुर्नजागरण का महत्वपूर्ण केन्द्र था। भूक्षेत्र और जनसंख्या में भारत से बहुत छोटा है लेकिन विश्व धरोहरों की सूची में इटली में 59 स्थल हैं। जर्मनी भी भारत से छोटा है लेकिन उनकी धरोहरों की सूची लंबी (52) है। प्रसन्नता की बात है कि कुंभ को यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया था। ऋग्वेद पहले से ही यूनेस्को की सूची में है। इसी तरह यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ एशिया पेसिफिक रीजनल रजिस्टर‘ में रामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन भी सम्मिलित हैं। तीनों महत्वपूर्ण ग्रंथों के समावेशन से भारत को प्रसन्नता हुई है। रामचरितमानस के रचनाकार तुलसीदास, पंचतंत्र के रचनाकार विष्णु शर्मा व सहृदयालोक-लोकन के आनंदवर्धन स्मरणीय हैं। इन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। संस्कृति और दर्शन भौगोलिक सीमा में नहीं बांधे जा सकते।

भारत में विज्ञान, दर्शन और कला के क्षेत्र में बड़ा काम हुआ है। तमाम विदेशी विद्वान भारतीय संस्कृति के प्रशंसक रहे हैं और हैं। कुछेक विद्वान भारतीय विद्वानों की मेधा के प्रति ईष्र्यालु भी जान पड़ते हैं। गणित भारतीय खोज है। पंडित नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया‘ में एक गणितज्ञ डान जिंग की पुस्तक ‘नंबर‘ का उद्धरण दिया है। डान जिंग ने लिखा था कि, ‘‘अनजाने में हिन्दुओं की स्थान मूल्य के सिद्धांत की खोज लोकव्यापी महत्व की है।

आश्चर्य है कि यूनानी गणितज्ञों ने इसकी खोज क्यों नहीं की।‘‘ डान जिंग यूनानी गणितज्ञों द्वारा अंकों की खोज न कर पाने से आहत जान पड़ते हैं। ‘मैथमेटिक्स फॉर दि मिलियन‘ में दाग वेन ने सटीक उत्तर दिया है, ‘‘हिन्दुओं ने ही इस दिशा में कदम क्यों बढ़ाया? इस प्रश्न का उत्तर हम हल नहीं कर सकते अगर हम बौद्धिक विकास को कुछ प्रतिभाशाली लोगों के प्रयास का ही परिणाम मानेंगे।‘‘ दरअसल ऐसे विद्वान गलती पर हैं। वे भारतीय ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और संस्कृति के लिए भारतीय धरोहरों की ओर नहीं देखते। स्मारक सभ्यता और संस्कृति के संवाहक हैं और राष्ट्र की धरोहर हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला था। अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य तक्षशिला के आचार्य थे। दुनिया के पहले व्याकरणकर्ता पाणिनि भी यहीं के थे। पतंजलि और चरक यहीं के थे। अंकशास्त्र यूरोप के देश नहीं खोज पाए तो इसका मूल कारण है यूरोप में ज्ञान, विज्ञान और दर्शन की सामूहिक चेतना का अभाव। साहित्य, संगीत और सभी कलाएं भारतीय संस्कृति के मुख्य अंग हैं। यहां गांधार, मथुरा व सारनाथ तीन प्रमुख कला संप्रदाय रहे हैं। बुद्ध की पहली मानवीय कृतियां गांधार कला की देन है। माना जाता है कि इस सृजन में यूनानी कला और भारतीय दर्शन का मेल है। राष्ट्र जीवन के सभी कर्तव्यों व क्षेत्रों में भारत अग्रणी रहा है। मथुरा, काशी, अयोध्या, केदारनाथ, बद्रीनाथ, सारनाथ, मदुरै, तिरुपति, गुरुवायुर, कन्याकुमारी, मैसूर, कांचीपुरम, रामेश्वरम आदि अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण हैं। ये सब केन्द्र अंर्तराष्ट्रीय धरोहर घोषित किए जाने योग्य हैं। भारत स्वयं में विश्ववारा संस्कृति की धरोहर है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष है। वे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं)

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