Tuesday, March 25, 2025
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आओ बच्चों घूमने चलें….हवामहल

भारत में घूमने और देखने के लिए कई पर्यटक स्थल हैं जिन्हें देख कर बच्चें आनंदित होते हैं। इन्हीं में जयपुर का हवा महल खूबसूरत वास्तुकला का नमूना है। यह दुनिया की महत्वपूर्ण इमारतों में गिना जाता है जो हमारे देश की शान है और विदेशों में पहचान है। इसे  देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। पांच मंजिले गुलाबी रंग के आकृषक हवामहल का रूप मुख्य सड़क से देखने पर राज मुकुट अथवा कृष्ण मुकुट जैसा दिखाई देता है।
जयपुर की बड़ी चौपड़ के पास आज से  226 साल पहले वर्ष 1799 में जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने इसे बनवाया था। लाल चंद उस्ताद नाम के वास्तुकार ने इस की डिजाइन तैयार कर इसे बनवाया था। लाल गुलाबी बलुआ पत्थर और चुने से बने महल के बाहर की ओर 953 छोटी- छोटी जालीदार खिड़कियां और झरोखें बने हैं जो इसे खूबसूरत बनाते हैं। इसकी प्रत्येक छोटी खिड़की पर  बेहद आकर्षक और खूबसूरत नक्काशीदार जालियाँ, कंगूरे और भवन के ऊपर कई गुम्बद बने हुए हैं। इसमें कई अर्द्ध अष्टभुजाकार झरोखें इसे दुनिया भर में बेमिसाल बनाते हैं। इनसे हमेशा हवा अंदर बहती रहती है, जिस से हवामहल का नाम साकार होता है। शायद यह देश का पहला ऐसा भवन है जिसे बिना नींव डाले जमीन पर ही बनाया गया है। भवन की ऊंचाई जमीन से 87 फीट ( 26. 51 मीटर ) है। इसकी कारीगरी में राजपूत और मुगल कला का मेल दिखाई देता है।
हवामहल सिटी पैलेस का ही एक भाग है। इसमें जाने के लिए भवन के पीछे सिटी पैलेस की ओर से एक शाही दरवाजा हवा महल के प्रवेश द्वार की ओर जाता है। वहीं से प्रवेश करना होता है। प्रवेश के बाद इसमें ऊपरी मंजिल तक जाने के लिए  सीढ़ियों की जगह सपाट रैंप बनाया गया है। बच्चें ही क्या बड़े भी अंदर से खिड़कियों से झांकने और इन से आने वाली ठंडी हवा का खूब मजा लेते हैं। खास बात यह है कि तेज गरम मौसम में भी अंदर हर समय ठंडी हवा आती है।
हवामहल भवन बनवाने के पीछे की कहानी है कि जब इसे बवाया गया उस समय महिलाएं पर्दा करती थी और  सार्वजनिक जगहों पर नहीं जाती थी। बाहर की गतिविधियां नहीं देख पाती थी। सड़क पर निकलने वाले जुलूस और अन्य गतिविधियों को राजघराने की महिलाएं देख सकें इसलिए राजा ने खिड़कियों और खरोखों वाली इमारत बनवाई। यह भवन राधा – कृष्ण को समर्पित है और इसमें  तीन गोवर्धन मंदिर, प्रकाश मंदिर और हवा मंदिर बने हैं।
हवामहल में प्रवेश के बाद भू-तल पर ही एक संग्रहालय है जिसमें जयपुर क्षेत्र के  पुराने पत्थरों और लोहे के उपकरण , मिट्टी और पत्थर की मूर्तियां , हथियार, चित्र और हस्तकला के नमूने आदि देखकर बच्चें  महत्वपूर्ण पुरानी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
पर्यटन लेखक, कोटा
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल

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