श्यामपुर उत्तराखण्ड का एक सुंदर सा गाँव हैं। वहाँ सभी लोग सुख-शांति से अपना जीवन यापन कर रहे होते हैं। अचानक वहां गाँव के किनारे पर एक फ़क़ीर आकर मिट्टी का एक ढेर बनाता है उस पर चादर डालता है और फिर उसके बग़ल में एक झोपड़ी बनाकर रहने लग जाता है। अब श्यामपुर के लोग आते जाते लोगों को वह फ़क़ीर या मज़ार का ख़ादिम बहलाता-फुसलाता है और लोग वहाँ माथा टेकने लगते हैं। लोगों की श्रद्धा को बढ़वाकर वह ख़ादिम दूसरे चरण में भोले-भाले ग्रामीणों से कहता है कि वे अपने खेत में ही एक छोटे से कोने कहीं मज़ार बना देंगे तो वह आकर उस मज़ार पर नमाज़ पढ़कर उसे भी सिद्ध बना देगा। ख़ादिम के बहकावे में आकर वह ग्रामीण ऐसा ही करता है और अपने खेत में मज़ार बनाकर वहाँ प्रतिदिन दिया-बत्ती करने लग जाता है। लोगों का आना जाना बढ़ता है तो वहाँ एक दानपेटी रख दी जाती है। अब ख़ादिम हर सप्ताह आकर उस दानपेटी से राशि निकालकर ले जाता है। शनैः-शनैः वह ख़ादिम, उसी ग्रामीण के पैसों से मज़ार पर टिन डलवा देता है उसे पक्का निर्माण करवा देता है। इधर मज़ार पर लोगों का आना-जाना बढ़ता है उधर गाँव में कुछ और मुस्लिम परिवार आकर बसने लगते हैं और मज़ारें भी बढ़ने लगती है। अचानक गाँव में लव जिहाद की घटनाएँ बढ़ने लगती हैं। गाँव की लड़कियों मुस्लिम लड़कों के झाँसे में आकर अपना सर्वस्व उन्हें सौंपने लगती है। अब गाँव में कभी गर्भस्थ होने से, कभी इज्जत के डर से, कभी मज़ार के ख़ादिम के नाराज़ होने के डर से तो कभी बाहुबल के सहारे हिंदू लड़कियां मुस्लिम लड़कों से निकाह करने लगती हैं। कभी-कभी तो इस कार्य में हिंदू लड़कियों के परिवार भी दबाव में आकर सहमति देने लगते हैं।
इस कथा में केवल गाँव का नाम काल्पनिक है बाक़ी सब जो लिखा है वह उत्तराखण्ड के कई-कई ग्रामों की स्थिति का सच्चा कच्चा-चिट्ठा है। उत्तराखण्ड में लैंड जिहाद, लव जिहाद, मतांतरण, व्यापार जिहाद इसी प्रकार हज़ारों ग्रामों में अपने पैर पसार चुका है।
इस प्रकार की घटनाओं के बढ़ते जाने पर उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह धामी की सरकार इन घटनाओं का संज्ञान लेती है और स्थिति को समझती है। बात बहुत आगे बढ़ चुकी होती है किंतु पुष्कर सिंह इसे अपनी तेज कार्य योजना से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। उत्तराखण्ड सरकार का बुलडोज़र चलने लगता है और ऐसी सैकड़ों नक़ली मज़ारों पर बुलडोज़र चलाकर मज़ारों को ध्वस्त करके मज़ार के आसपास क़ब्ज़ा की गई सैंकड़ों-हज़ारों एकड़ ज़मीन को भी इन ख़ादिमों से मुक्त कराता है।
अब शासन-प्रशासन के देखने में यह भी आता है कि शासकीय ही नहीं बल्कि निजी ज़मीन पर भी ये दिखावटी और अपराधी प्रकार के ख़ादिम मज़ारों के सहारे क़ब्ज़ा किए बैठे होते हैं। इन ज़मीनों के हिंदू जनजातीय स्वामी इन अपराधी ख़ादिमों के बहकावे में आकर, जिन्न-जिन्नात के प्रकोप के भय से अपनी ज़मीनें, पैसा, लड़कियां सब कुछ इन अपराधी ख़ादिमों को दे रहे होते हैं। पिछले दिनों देहरादून के समीप पछुवा नामक ग्राम में ऐसे दो प्रकरण देखने में आए थे, जब अवैध मजार को हटाने गये प्रशासन को हिंदू समाज के जनजातीय और अनुसूचित जाति के लोगों ने रोकने का प्रयास किया।
इन भोले-भाले हिंदू ग्रामीणों का कहना था कि ये मज़ारें तो उन्होंने स्वयं अपनी मन्नत पूर्ण होने पर बनवाई है। प्रशासन जब मामले की गहराई में गया तो ग्रामीणों ने बताया कि – उनको किसी कष्ट के निवारण के लिए ख़ादिम ने मजार पर बुलाया तो वे गये थे। इसके बाद वहाँ के ख़ादिम ने उन्हें बहला-फुसलाकर मन्नत करवा ली और उनसे कहा कि “आप की इच्छा पूरे होने पर चादर चढ़ाना और अपनी जमीन पर बाबा का मजार बनवा देना फिर आपको इतनी दूर यहाँ आने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और मज़ार के कारण आपका खेत भी दोगुनी उपज देने लगेगा।” कहीं-कहीं तो इन अपराधी ख़ादिमों ने भोले-भाले ग्रामीणों से उनके मंदिरों को ही मज़ार में बदल देने और पूजा पद्धति को बदलने हेतु भयभीत करके तैयार करवा लिया था। कई स्थानों पर निजी ज़मीनों पर बनी इन मज़ारों के पास अन्य मुस्लिम परिवार मित्र बनकर बस जाते और इसके बाद सभी प्रकार के अपराध वहाँ होने लगते। भोले भाले जनजातीय और अनुसूचित जाति के हिंदू ग्रामीण अपनी ज़मीन और लड़कियों को अपने हाथों से छूटते हुए देखते और हाथ मलते ही रह जाते थे।
उत्तराखण्ड की पुलिस ने जब इन मज़ारों की जाँच की तो इसके पीछे एक संगठित गिरोह के सक्रिय होने की बात सामने आई।
यह गिरोह बेरोज़गार मुस्लिमों को ख़ादिमों के कपड़े पहनवाकर, थोड़ा-बहुत बोलने और झाड़ने फूंकने का प्रपंच सिखाकर लैंड जिहाद व लव जिहाद हेतु तैयार करवाकर इस प्रकार की घटनाएँ करवाता था और बड़ी मात्रा में आस्था के नाम पर लोगों से पैसा भी निकलवा लेता था। बड़ी संख्या में इन मज़ारों पर हिंदू बंधु जाने लगते और धन, संपत्ति, ज़ेवर, खाद्यान्न, फल आदि चढ़ाने लगते। इस चढ़ावे से फलते-फूलते वहाँ के ख़ादिम अपनी मज़ार की दूसरी-तीसरी-चौथी ब्रांच खोलते जाते थे। कालू शाह, भूरे शाह, बुल्ले शाह और न जाने कौन-कौन से शाहों के नाम पर पर ये मज़ारें बनाई जाती और कमाई होने पर यहाँ के अपराधी ख़ादिम बग़ल के गाँव में जाकर अपनी फ़्रेंचायजी जैसी एक और मज़ार बनवा लेते थे।
उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह सरकार पर आरोप लग रहें है कि वह दुराग्रह पूर्वक मज़ारों पर बुलडोज़र चला रही है, किंतु सच्चाई कुछ और ही है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के 20 जून 2009 के निर्णय के अनुसार कोई भी धार्मिक स्थल का निर्माण, पुनर्निर्माण या जीर्णोद्धार बिना जिला कलेक्टर की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। भूमि के दस्तावेज की प्रति के साथ कलेक्टर को आवेदन देकर और अनुमति लेकर ही यह कार्य किया जा सकता है।
पुष्कर सिंह धामी ने इसी न्यायलीन आदेश का पालन करते हुए तीन सौ से अधिक अवैध मज़ारों को ध्वस्त किया है। ऐसे पचासों मंदिरों को और एक गुरुद्वारे को भी धामी सरकार ने तोड़ दिया है और शासन की पाँच हज़ार एकड़ ज़मीन को ‘लैंड जिहाद’ से मुक्त कराया है।
उत्तराखण्ड राज्य सरकार ने मई 2023 तक कुल मिलाकर 3,793 ऐसे क्षेत्रों की पहचान की है जहां मज़ारों के माध्यम से लैंड जिहाद किया गया है। नैनीताल आश्चर्यजनक रूप से इस कुचक्र का शीर्ष है जहां चौदह सौ तैतीस स्थान और हरिद्वार भी जहां साढ़े ग्यारह सौ स्थानों पर अतिक्रमण करके मज़ारों के सहारे क़ब्ज़े किए गए थे। और भी ज़िलों में यह कहानी बड़े स्तर पर सामने आई है। उत्तराखण्ड में ऐसे अवैध ढाँचों के सहारे लगभग बारह हज़ार हेक्टेयर भूमि अब भी इन कथित ख़ादिमों के पास है, जिसे मुक्त कराया जाना है।
विशेष बात यह है कि उत्तराखंड में इस अभियान को सांप्रदायिक कहकर पुष्कर सिंह सरकार के विरुद्ध वातावरण तैयार किया जा रहा है। मुस्लिम समाज का प्रबुद्ध, धनाड्य वर्ग व मज़हबी नेता भी मज़ारों के माध्यम से अपराध कर रहे इन तथाकथित ख़ादिमों की आलोचना नहीं कर रहें है। मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध व अमनपसंद नागरिकों, नेताओं व मज़हबी नेताओं को इस दिशा में आगे आना चाहिये व मज़हब के नाम पर अपराध कर रहे इन लोगों के विरुद्ध फ़तवा जारी करवाना चाहिये। इसके स्थान पर, उत्तराखण्ड का मुस्लिम समाज इन अपराधियों के पक्ष में बन्द, धरने, प्रदर्शन व जुलूस निकालने में रुचि ले रहा है, यह दुखद स्थिति है।
(प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं)
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