ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, एतेरेय, तैतिरीय, बृहदारण्यक, छान्दोग्य और श्वेताश्वर आदि 11 उपनिषदों का अत्युत्त्म सरल हिन्दी व्याख्यान।
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उपनिषद् ब्रह्मविद्या के मूलाधार हैं।
प्रस्तुत संस्करण में 11 उपनिषदों को संकलित किया गया है –
1) ईशोपनिषद् – यह ब्रह्मविद्या का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ईश्वर की सर्वव्यापक, भोक्ता का सृष्टि की वस्तुओं पर केवल प्रयोगाधिकार, किसी के धन या स्वत्व नहीं लेना, सभी कर्म कर्तव्य कर्म समझ कर करना और अन्तरात्मा के विरूद्ध कार्य न करने का उपदेश दिया गया है।
2) केनोपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्मज्ञान का क्या अर्थ है? हम ईश्वर को जानते हैं, इसका क्या अर्थ है? आदि कई आध्यात्म विषयक कथन प्रश्नोत्तर शैली में स्पष्ट किया गया है।
3) कठोपनिषद – इस उपनिषद में यम और नचिकेता के आख्यान द्वारा ब्रह्म का उपदेश किया है। यह उपनिषद भाषा, भाव और शिक्षा सभी दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
4) प्रश्नोपनिषद – इस उपनिषद में पिप्लाद मुनि के पास सुकेशादि मुनियों द्वारा किये गये प्रश्नों के उत्तर रूप में प्राण, अपान, ब्रह्म, सूक्ष्म शरीर आदि विषयों का रहस्यात्मक वर्णन है।
5) मुण्ड़कोपनिषद – इस उपनिषद में सत्य पर अत्यधिक बल दिया है। इसमें सृष्टि उत्पत्ति के सिद्धान्त का भी वर्णन है।
6) माण्डूक्योपनिषद – इस उपनिषद में सृष्टि की अवस्था द्वारा परमात्मा का वर्णन किया गया है तथा ईश्वर के निज नाम ओम की विस्तृत व्याख्या की गई है।
7) ऐतरेयोपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्मविद्या की चर्चा है जिसके अन्तर्गत आत्मा किस प्रकार से गर्भ में आता है इसकी भी चर्चा की गई है। सृष्टि उत्पत्ति तथा प्रलयावस्था का इस उपनिषद में वर्णन किया गया है।
8) तैत्तिरीयोपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्मविद्या के साथ साथ स्वाध्याय के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया है तथा जिन शिक्षाओं का जिज्ञासुओं के लिए जानना आवश्यक था उसका वर्णन किया गया है।
9) छान्दोग्योपनिषद – इस उपनिषद में विभिन्न प्रतीकों के आधार पर ईश्वरोपासना के महत्त्व को समझाया गया है। उपनिषद में उदगीथोपासना के रूप में प्रणव की व्याख्या की गई है। इस उपनिषद में सामगान के महत्त्व तथा उसमें प्रयुक्त स्तोभ का भी वर्णन किया गया है।
10) बृहदारण्यकोपनिषद – यह उपनिषद सभी दसोपनिषदों में सबसे बड़ा है। इसमें ईश्वर के गुण कर्म स्वभाव तथा याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी संवाद के प्रकरण के रूप में जीवात्मा के भी स्वभाव का वर्णन किया है। शाकल्य और याज्ञवल्क्य संवाद में 33 देवताओं के स्वरूपों का वर्णन है। इस उपनिषद में वंश ब्राह्मण के रूप में ऋषियों के वंशों का वर्णन किया हुआ है।
11) श्वेताश्वतरोपनिषद – यह उपनिषद यद्यपि पूर्वोक्त दशोपनिषदों की अपेक्षा पीछे से बनी है किन्तु इस उपनिषद की अधिकता से वेद मन्त्रों के रखने और वेद का आश्रय लेकर ही विषय का स्पष्ट होने से इसकी श्रेष्ठता सिद्ध है। इसमें जीव, प्रकृति और ईश्वर इन तीनों पदार्थों का अनादिपन अन्यों की अपेक्षा अत्यन्त स्पष्टता से किया गया है।
1200 पृष्ठ सजिल्द। उत्तम छपाई।
मूल्य ₹ 540
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