Tuesday, January 14, 2025
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उपराष्ट्रपति ने कहा, हम अपने देश में बहुत जल्दी, बिना कोई सवाल पूछे, किसी को भी आदर्श मान लेते हैं

गुरुग्राम। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि, “मानव संसाधन की अपरिहार्यता एक मिथक है। यह विचार कि “आपके बिना चीजें काम नहीं कर सकतीं” सत्य नहीं है। ईश्वर ने आपकी दीर्घायु की सीमा पहले ही निर्धारित कर दी है। इसलिए, उन्होंने यह भी तय कर दिया है कि आप अपरिहार्य नहीं हो सकते।”

युवाओं से स्वयं पर विश्वास करने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “…स्वयं पर विश्वास रखें। कोई भी जीवित प्राणी तब तक आपके सम्मान का हकदार नहीं है, जब तक आप उनमें कोई गुण न देखें। चापलूस या पाखंडी बनने की इच्छा कभी नहीं होनी चाहिए। हमें अपने सोचने के तरीके की सराहना करनी चाहिए। हो सकता है कि हम सही हों, हो सकता है कि हम गलत हों। हमेशा दूसरे के दृष्टिकोण को सुनें। यह सोचकर निर्णयात्मक न बनें कि आप अकेले ही सही हैं। हो सकता है कि आपको सुधार की आवश्यकता हो। हो सकता है कि दूसरे के दृष्टिकोण से आपको पता चले कि क्या हो सकता है।”

गुरुग्राम में मास्टर्स यूनियन के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “यह हमारे देश में एक बहुत ही सरल चीज है। हम बहुत जल्दी किसी को आदर्श मान लेते हैं और उसे किसी का प्रतीक बना देते हैं और हम कभी अपने से नहीं पूछते कि वह एक महान वकील क्यों हैं, वह एक महान नेता क्यों हैं, वह एक महान डॉक्टर क्यों हैं, वह एक महान पत्रकार क्यों हैं। हम बस यह मान लेते हैं कि यह है…आपको सवाल पूछना चाहिए, क्यों? एक समय था, जब कौन व्यापार करता था? व्यापारिक परिवार थे, व्यापारिक खानदान थे, उनके गढ़ थे, केवल वे ही इसे करते थे, ठीक वैसे ही जैसे सामंती प्रभु शासन करते थे। लोकतंत्र ने राजनीति को लोकतांत्रिक बनाया। अब, आप देश के आर्थिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक और व्यावसायिक परिदृश्य का लोकतंत्रीकरण करने जा रहे हैं। आज, आप एक बड़ी छलांग लगा रहे हैं – मेरे शब्दों पर ध्यान दें, आपको वंश की आवश्यकता नहीं है, आपको परिवार के नाम की आवश्यकता नहीं है, आपको पारिवारिक पूंजी की आवश्यकता नहीं है, आपको एक विचार की आवश्यकता है और वह विचार किसी का विशेष क्षेत्र नहीं है।”

देश की नौकरशाही की क्षमता को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि, “दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा भारत में रहता है और इसका सबसे बड़ा लाभ इसकी नौकरशाही है। हमारे पास बेहतरीन मानव संसाधन, नौकरशाही है, जो कोई भी बदलाव ला सकती है, बशर्ते उसका नेतृत्व सही कार्यपालिका करे, जो काम करने में सुगमता प्रदान करे और बाधा न डाले।”

लोकतंत्र को प्रभावी बनाने में युवाओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए तथा सांसदों और जन प्रतिनिधियों के कर्तव्यों को दोहराते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “आप मुझे संविधान सभा की याद दिलाते हैं, क्योंकि दो वर्ष, 11 महीने और कुछ दिनों तक संविधान सभा ने 18 सत्रों में विवादास्पद मुद्दों, विभाजनकारी मुद्दों, कठिन मुद्दों पर विचार किया। आम सहमति बनाना आसान नहीं था, लेकिन वे बहस, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा में विश्वास करते थे। उन्होंने कभी व्यवधान और गड़बड़ी में भाग नहीं लिया। और इसलिए, जब मैं यहां अनुशासन की बात करता हूं, तो मुझे संसदीय माहौल की कमी महसूस होती है। लेकिन मुझे यकीन है कि हमारे युवाओं के पास अब सोशल मीडिया के माध्यम से यह कमांड है कि वे हमारे सांसदों और जनप्रतिनिधियों के लिए यह मजबूरी बना देंगे कि वे अपनी शपथ का पालन करें। उन्हें अपने संवैधानिक कार्यों का पालन करना चाहिए। उन्हें अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।”

एक दशक में हुए आर्थिक विकास और लोगों की अपेक्षाओं में हुई वृद्धि का उल्लेख करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “लोगों ने 10 वर्षों में विकास का स्वाद चखा है। 50 करोड़ लोग बैंकिंग समावेशन में शामिल हो रहे हैं, 17 करोड़ लोगों को गैस कनक्शन मिल रहा है, 12 करोड़ घरों में शौचालय बन रहे हैं। अब उनकी प्यास और बढ़ गई है। उनकी अपेक्षाएं धीरे-धीरे नहीं, बल्कि तेजी से बढ़ रही हैं, हमारा भारत बदल रहा है। हमारे भारत ने मेरे जैसे लोगों के लिए इतना कुछ बदल दिया है, जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी, सपना नहीं देखा था, सोचा नहीं था। हमारा भारत आज दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया है। दुनिया में किसी भी देश ने पिछले एक दशक में भारत जितना स्थिर विकास नहीं किया है…अब लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं। उन अपेक्षाओं को पूरा करना होगा। आपको लीक से हटकर सोचना होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “आप शासन के सबसे प्रभावशाली हितधारक हैं। आप विकास के इंजन हैं। अगर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है, तो हमें विकसित भारत बनना होगा। चुनौती बहुत बड़ी है। हम पहले से ही पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं… लेकिन आय को आठ गुना बढ़ाना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है।”

इस अवसर पर लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री अशोक कुमार मित्तल, मास्टर्स यूनियन के संस्थापक श्री प्रथम मित्तल, बोर्ड मास्टर्स यूनियन के बोर्ड सदस्य श्री विवेक गंभीर, छात्र, संकाय और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।

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