Friday, April 18, 2025
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औरंगजेब को धूल चटाने वाले राजाराम जाट

ये वो नाम है जिससे आज की तारीख में सबसे ज्यादा नफरत की जा रही है…!
आज के समय में औरंगजेब को महान बोलने वालों के खिलाफ एफआईआर कराई जा रही है साथ ही, औरंगजेब की मौत के 300 साल बाद कब्र पर बुलडोजर चलवाने की बातें हो रही हैं!
औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों और धार्मिक कट्टरता को लेकर भारत में विरोध कोई नई बात नहीं है…!
उल्लेखनीय है कि, जाटों ने औरंगजेब के जीवनकाल में ही उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया था और उसके दादा (अकबर) की क़ब्र को खोद कर हड्डियों को जला दिया था…!
पूरी घटना इस तरह है कि, राजस्थान के भरतपुर जिले में जाटों ने सन 1668 में औरंगजेब की जजिया कर, धार्मिक कट्टरता और मुगल सेना के अत्याचार के विरोध में विद्रोह कर दिया था! इस विद्रोह का नेतृत्व गांव तिलपत के वीर गोकुला जाट ने किया था। औरंगजेब ने कुछ गद्दार हिन्दुओं की मदद से वीर गोकुला जाट को कैद कर लिया था…! सन 1669 में उसने गोकुला जाट से इस्लाम कबूल करने की शर्त पर उन्हें छोड़ने की बात कही…! मगर, वीर गोकुला जाट ने इस्लाम को झूठ का पुलिंदा और मोहम्मद की मनगढंत बातें कह कर आलमगीर को भी इस्लाम त्याग कर इंसान बनने की सलाह दे दी…!
इसके बाद आगरा की मुगल कोतवाली के पास औरंगेजब ने वीर गोकुला जाट को सरेआम मौत की सजा दे दी…! वीर गोकुला जाट का सिर उनके धड़ से कायरता पूर्वक अलग कर दिया गया…!
वीर गोकुला जाट के अमर बलिदान से जाटों का संगठन विचलित नहीं हुआ बल्कि और मजबूत हो गया…! इस अत्याचार का बदला लेने के लिए सिनसिनी रियासत के राजाराम जाट सबसे आगे आये…! गांव आऊ की मुगल छावनी में आग लगाकर “राजाराम जाट” और “रामकी चाहर” ने छावनी के अधिकारी लालबेग की हत्या करके औरंगजेब के खिलाफ मोर्चा खोल दिया…!
राजाराम जाट और रामकी चाहर की एक छोटी सी फ़ौज ने आगरा, मथुरा और भरतपुर समेत आसपास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया…! उस समय औरंगजेब दक्खन में था…! जब औरंगजेब को आगरा, मथुरा और भरतपुर के आस पास के क्षेत्रों से टैक्स मिलना बंद हुआ तो उसने जाटों को कुचलने के लिए अपने शहजादे आजम को भेजा…! आजम को राजाराम जाट और रामकी चाहर ने युद्ध के दौरान पीठ दिखा कर भागते हुए पकड़ लिया। और बर्बरता पूर्वक उसकी हत्या कर दी। इस घटना से आहत होकर औरंगजेब ने अपने दूसरे बेटे बीदर बख्त को भेजा।
बीदर बख्त भी राजाराम के शौर्य के आगे टिक नहीं पाया और उसके रक्त से राजाराम जाट की तलवार की प्यास बुझी। राजाराम जाट और रामकी चाहर की सेना ने भारतीय इतिहास में बदला लेने का सबसे अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। 27 फरवरी 1688 को राजाराम जाट और रामकी चाहर ने अपने लड़ाकों की टुकड़ी के साथ आगरा के सिंकदरा पर धावा बोल दिया…! जाट लड़ाकों ने सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे पर हमला किया… राजाराम और उनकी सेना ने अकबर के मकबरे में केवल तोड़फोड़ ही नहीं की बल्की, अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियां भी निकालीं और हड्डियां में आग लगा दी…! ये सब राजाराम जाट और उनकी सेना ने वीर गोकुला जाट की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए किया था…!
अपने दो शहजादों की दर्दनाक मौत और अपने दादा ज़िल्ले शुभानी अकबर की क़ब्र खोद कर उनकी हड्डियों को जाटों द्वारा जलाए जाने से आलमगीर को गहरा सदमा पहुंचा। इस वज़ह से औरंगजेब ने जाटों पर हमले तेज कर दिए और एक युद्ध में चार जुलाई 1688 को राजाराम जाट वीरगति को प्राप्त हुए…! किन्तु जाटों की एकता बनी रही जिसके कारण आलमगीर औरंगजेब को पूरी जिंदगी जाटों से संघर्ष करना पड़ा। 3 मार्च 1707 ईस्वी को औरंगजेब की प्रकृतिक मृत्यु हुई उसके बाद उसकी नीतियों का विरोध उसके पूरे साम्राज्य में शुरू हो गया और इस तरह उसके साम्राज्य का भी अंत हो गया। उसने जिस अल्लाह की इबादत के नाम पर हिन्दुओं पर अनगिनत जुल्म किये थे वो अल्लाह भी उसकी सल्तनत की रक्षा नहीं कर सका…!
साभार- https://www.facebook.com/mediamafia420 से

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