Sunday, March 30, 2025
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दंगाईयों से प्रशासन को ऐसे निपटना चाहिए

जो दंगा करते हैं, उनके विरुद्ध पुलिस कार्रवाई ऐसी प्रतीत होती है मानो यह एक विभागीय कार्य है।

जबकि दंगा राज्य को चुनौती है, इसलिए दंगाइयों से राज्य के द्वारा प्रदत्त सभी सुविधाओं और स्वीकृतियों की वापसी होना चाहिए। राज्य के सारे उपादानों का प्रतिसंहरण ( रिवोकेशन)।

माने आप दंगा करें तो आपके पास आर्म्स लाइसेंस क्यों रहना चाहिए?

माने जब आप अपना पेट दंगे से ही भर ले रहे हो तो आपको फूड लाइसेंस या मंडी लाइसेंस की भी जरूरत ही क्या है और राशन कार्ड का भी आप क्या ही करोगे?

जब आपको सड़क पर ही निपटना है तो आपको दी गयी भवन अनुज्ञा भी बेमानी ही है।

जब आपको दूसरों के वाहन ही जलाकर मज़ा आ गया तो आपको अपने ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता ही क्या और आप स्वयं भी कोई वाहन धारण करने से हमेशा के लिए निरर्ह क्यों न हो जाओ?

कब्र खोदना यदि आपके लिए शान्ति भंग का मुद्दा है तो आपके पास कोई खनिज लाइसेंस क्यों चाहिए?

जब लोकतंत्र के माध्यमों पर भरोसा नहीं है तो आपको निर्वाचनाधिकार से वंचित करना आपके कर्मों की सहज परिणति क्यों न हो?

आप बसी बसाई बस्तियों में हुड़दंग मचाओ तो आपके पास कॉलोनाइजर लाइसेंस कैसे रहना चाहिए और आप एक सहजीवन के लिए निर्योग्य क्यों न हो गये?

आप अपने आपे से बाहर हो गए तो आपका अतिक्रमण क्यों न देखा जाये?

और आपके अतिक्रमण के नियमितीकरण के लिए दिये गये पट्टे की भी वैधता क्यों रहे जब आप नियमों को मानने के लिए तैयार न हो?

आपके लिए आगजनी ही प्रकाश है तो आपको विद्युत सुविधा की आवश्यकता ही क्या है?

जब पत्थर ही आपको रोज़गार दे रहा है तो आपको अन्य किसी रोज़गार की वैसे भी क्या पड़ी?

दूसरों की संपत्ति आप नष्ट करो तो आपको संपत्ति का कोई अधिकार क्यों रहे?

जब आपकी अक़्ल पर पत्थर पड़ ही गये हैं तो आप उच्चतर शिक्षा के लिए अपात्र हो ही गये।

दंगा बेशर्मी का एक पब्लिक डिस्प्ले है तो आप  पब्लिक गुड्स पर किसी वैध अधिकार का दावा कैसे कर सकते हो?

जब सभ्याचार करना नहीं आता तो सभ्यता के लाभांशों के लायक नहीं रह गये आप।

राज्य दंगों को एक कंपार्टमेंटलाइज्ड तरह से कब तक देखता रहेगा ?!?

दंगाइयों को अदालतों का भय नहीं है क्योंकि वहाँ तो उनके विरोधी गवाहों को पक्षशत्रु होने के लिए बाध्य करने की कला उन्हें आ गई है।

दंगे की pigeonholing से, उसकी पिंजरबद्धता से बाहर निकलिए क्योंकि दंगाई बाहर निकल आये हैं।

बताइये कि खुलेआम हिंसा करने वालों के पाँवों के नीचे की ज़मीन कैसे तंग की जाती है।

(लेखक मप्र के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, और कई पुस्तकें लिख चुके हैं। वर्तमान में  मप्र के चुनाव आयुक्त हैं और भोपाल  से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका अक्षरा के संपादक हैं) 

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