Sunday, March 23, 2025
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न ऐसे गीत हैं न गीतकार हैं न संगीतकार हैं

1956 की फिल्म पटरानी के निर्माता थे शंकर भाई भट्ट और निर्देशक थे विजय भट्ट।वैजयन्तीमाला,प्रदीप कुमार,ओम प्रकाश,शशि कला, दुर्गा खोते,डेविड,जीवन आदि कलाकार इस फिल्म में थे।संगीत से सजाया था शंकर जयकिशन ने। इस फिल्म में एक खूबी यह थी की इसमे एक भी पुरुष गीत नहीं था,लता मंगेशकर,उषा मंगेशकर और मीना मंगेशकर और साथी इस फिल्म की गायिकाएँ थी।सभी 10 गीतों में मुख्य स्वर लतामंगेशकर का था।इस फिल्म में चार कोरस थे.
1,रंग रंगीली पगियाँ बांधे आये ऋतू राज…..लतामंगेशकर व साथी
2,पावन गंगा सर पर सोहे…..लतामंगेशकर व साथी
3,राजा प्यारे मत करो प्यार का मोल…….लतामंगेशकर,उषामंगेशकरऔर साथी
4,अरे कोईजाओ ऱी पिया को बुलाओ री….लतामंगेशकर,उषामंगेशकर, मीना मंगेशकर ओर साथी
इस फिल्म में एक कोरस गीत और था…दुल्हन गोरी घूँघट में मुस्काये देखो जी कही उनसे भी शरमाये, यद्यपि यह गीत फिल्म में रखा गया था जिसे डिस्क पर रिलीज नहीं किया गया।यदि इस गीत को भी शुमार कर लिया जाय तो इस फिल्म में कुल 11 गाने थे। आज का गीत बेहद बेहद खूबसूरत है जिसे महान शैलेंद्र ने लिखा और लतामंगेशकर ने गाया था,यह गीत संगीत का अनुपम पुष्प है। ” चन्द्रमा मद भरा क्यों झूमे है बादर में,वो ख़ुशी कहाँ मुझ विरहन के घर में,चंद्रमा ” पटरानी फिल्म आज लगभग 62 वर्ष का समय गुजर जाने के बाद भी अगर आज भी याद की जाती है तो सिर्फ महान शंकर जयकिशन के मनमोहक संगीत के कारण,इसके गीत अत्यन्त लोकप्रिय और सफल रहे थे।यह खेद का विषय है कि कुछ शंकरजयकिशन प्रेमियों को छोड़कर अधिकांश शंकरजयकिशन को चाहने वाले इस फ़िल्म को प्रायः स्मरण में नही रखते! कभी तो आ सपनो में आके जाने वाले और अरे कोई आओ ऱी सपनो में बुलाओ ऱी…जैसे गीत क्या भुलाये जा सकते है?
इन गीतों को सुनने के बाद यह स्थापित हो जाता है कि तथाकथित संगीतकार अपनी कर्कश तबले की थाप और समय की मांग के नाम पर अपनी कमजोरी अथवा मुहँ छिपाते फिरते है,आज का असभ्य संगीत,गंदे गीत,बच्चो का जीवन बिगाड़ने वाले गीत,कान फाडू संगीत,अजीब सी भद्दी आवाजे सुनकर भगवान् नटराज भी शायद संगीत युग से पलायन कर गए है। महान शंकर जयकिशन के इसलिए प्यारे लगते है क्योंकि उसमे संगीत की आत्मा का निवास होता है।
व्यथा से भरी नारी चंद्रमा से कह रही है…. चन्द्रमा मद भरा क्यों झूमे है बादर में वो ख़ुशी अब कहाँ मुझ विरहन के घर मे.. एक पीड़ा नारी की शैलेन्द्र के शब्दों में अभिव्यक्त हो रही है। मद भरा चंद्रमा आकाश में झूम रहा है, पर उस नारी के लिये निरर्थक, जिसके घर में खुशियों का अकाल है.कोई रूठा जो है? जब से बलम रूठे है,उसके भाग ही रूठ गए,दिल को रोग लग गया है जब से रूठे बलम हमारे रूठे तबसे भाग हमारे मच गया रोग जिगर में चन्द्रमा…!
जब सब कुछ सामान्य होता है तभी यह पर्वत,आसमान,पहाड़,नदियाँ,चन्द्रमा ,सितारे,सूरज,प्राकृतिक सौंदर्य सब अच्छे लगते है,परिवारों में भी यही होता है ढेरो खाद्य सामग्री डायनिंग टेबल पर सजी होती है पर यदि पारिवारिक विवाद हो,विषाद हो,नाराजगी हो,असफलता हो तो यह खाद्य सामग्री जहर समान लगती है किंतु यदि जीवन में सच्ची मस्ती हो तो पत्थरो पर बैठकर भी सुखी रोटी प्याज और लहसुन की चटनी के साथ भी जायकेदार और अच्छी लगती है जीवन और जिंदगी सुख का अहसास कराते है।
लतामंगेशकर की बेहतरीन आवाज,शैलेन्द्र के अर्थ भरे पीड़ायुक्त शब्द और शंकर जयकिशन का कर्ण प्रिय संगीत इस गीत को चार चांद लगाते है, यह एक अत्यंत नायाब गीत है जिसको सुनने का एक अलग ही आनंद है।हमारा दुर्भाग्य रहा कि शंकरजयकिशन की कई रचनाओं को पर्दे पर साकार होने का अवसर ही नही मिला,जबकि यह अत्यंत कर्ण प्रिय रचनाएं थी,चंद्रमा मदभरा क्यो झूमे।बादर में..को फ़िल्म में निर्माता निर्देशक ने प्रस्तुत ही नही होने दिया जबकि यह गीत अत्यन्त प्रिय मेलोडी गीत था।
इसी प्रकार शारदा का खूबसूरत गीत जो फ़िल्म गुमनाम का था—– आएगा कौन यहाँ किसको सदाये देता है दिल अपना है कौन यहाँ …!! को भी फ़िल्म में स्थान नही मिला।ऐसी ही गलती फ़िल्म निर्माता,निर्देशक कनक मिश्रा भी करने जा रहे थे!जैसा की सूत्र बताते है कि वह फ़िल्म नैना से शारदा का गाया गीत “अलबेले सनम तू लाया है कहाँ”को फ़िल्म में रखने के पक्षधर नही थे किंतु शंकर जी के दृढ़ विश्वास के कारण इस गीत को फ़िल्म में रखना पड़ा जो कि फ़िल्म नैना का विशेष आकर्षण बना। शंकरजयकिशन का नाम करोड़ो भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए अमृत का वह अगाध स्रोत है,जो क्षणभर में महिमामय कर्ण प्रिय संगीत रस से तन मन को आप्लावित कर देता है।
पटरानी फ़िल्म की याद भी केवल शंकरजयकिशन के श्रवणीय मधुर संगीत के कारण आती है,जिसके सभी गीत अत्यन्त लोकप्रिय हुए और जिस गीत ” चंद्रमा मद भरा क्यो झूमे बादर में” को फ़िल्म में नही रखा गया था वही सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ ओर यज़ भी इस गीत की मांग रहती है। इस गीत को सुनने के बाद शंकरजयकिशन के बाद आये तथाकथित संगीतकारो की लुहारोवाली तबले की थाप तथा समय की मांग के नाम पर अपनी कमजोरी छिपाने की दुर्बलता का पता चल जाता है।इन्ही संगीतकारो के कारण हिंदी फिल्म संगीत का पतन हो गया।शंकरजयकिशन की शास्त्रीय रागों पर आधारितं धुनों में फ़िल्म पटरानी के “चंद्रमा मद भरा” गीत की धुन अत्यन्त सुंदर है।चातक को वर्षा के लिये,चकोर को चंद्रमा के लिए,सीपो को स्वाति बूंदों के लिए मौसम की राह देखनी पड़ती है किन्तु संगीत रसको को शंकरजयकिशन की धुनों रूपी सुधा के लिए कभी तरसना नही पडा, वह तो निरंतर संगीत की अमृत वर्षा करते रहे,तभी तो आज उनके करोड़ो प्रशंसक है जो सिर्फ शंकरजयकिशन के संगीत को ही पसंद करते है।फ़िल्म पटरानी का यह गीत कालजयी है,एक बार ध्यान से सुनिए ।

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