Tuesday, December 3, 2024
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प्रेम में कभी कभी ( काव्य संग्रह )

शांत थी झील
गहरी भी
मैं खड़ा रहा किनारे
बहुत देर तक,
फिर ओक में भर कर पी लिया जल
तुम्हारी आंखों को
चूमने की इच्छा लिए।

कविता ” कामना ” की इन चंद पंक्तियों में प्रेम की छुपे भावों का नाद कितना भावपूर्ण है देखते ही बनता है। ऐसे ही गहरे रंगों में रंगी कविता ” स्मृतियों का रंग ” में प्रेम की अनुभूति गहरे तक समाई है………
अनगिनत रंग बिखरे हैं मेरे चारों और
हर रंग में से मैं चुनता हूं
तुम्हारे साथ बीते क्षणों की सुधियां
और नीले आसमान के नीचे खड़े हो कर
पूछता हूं अपने ही आप से
कैसा होता है स्मृतियों का रंग
क्या स्मृतियों का भी कोई रंग होता है ?

जीवन में अनुभूतियों के रंगों के बीच प्रेम के इंद्रधनुष को ले कर बहुत ही सहज भाव से लिखा है रचनाकार अतुल कनक ने अपने काव्य संग्रह ” प्रेम में कभी कभी ” में। कविता के प्रति रचनाकार अकेले अपने आप से ही सवाल करता है कि कविता के स्पर्श ने मुझे स्पंदन नहीं दिया होता – तो यह पहाड़ जैसी जिंदगी मैं कैसे जी पता। संग्रह की एक – एक कविता पाठक को प्रेम के सागर में गौते लगाते हुए प्रेम की अनंत अनुभूतियों से सराबोर कर देती हैं। कृति में लिखी 110 कविताएं प्रेम की कई परिभाषाएं गढ़ती दिखाई देती हैं। कृति को प्रेम का इंद्रधनुष कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

छत पर पायल उतार कर नाचती चांदनी में सुबह की पहली किरण तक बतियाने का कितना दिलकश चित्रण किया है……
चांद ही तो था
उतर गया झरोखे पर
और बजाने लगा बांसुरी
रात ही तो थी
छत पर नाचती रही
उतार कर पांवों से पायल
गीत ही तो थे
मचलते रहे हवाओं के होठों पर
हम – तुम ही तो थे
बतियाते रहे
सुबह की पहली किरण तक..।

इनका प्रेम काव्य प्रेम के रंगों के साथ – साथ प्रेम से जुड़े सामाजिक परवेश और संदर्भ को भी उंकेर कर समाज की सच्चाई को भी सामने लता है। ” जवान होती हुई लड़की ” एक ऐसी ही रचना है जिसमें घर के बाहर के परिवेश में उठते सवाल हैं, प्रेम का अर्थ समझने के संदर्भ हैं, लोगों की निगाहों और बहती हवाओं की समझ, आईना देख कर बड़े होने का अहसास, सुगंध और सुंदरता के प्रति आकर्षण सब कुछ महसूस कराते हुए अंत में लिखते है…..

” बदल चुकी है सारी दुनिया उसके लिए
या वह ही बदल चुकी है दुनिया के वास्ते…।”

संग्रह की कविताओं में मानवीय प्रेम के साथ – साथ जीवन, सामाजिक, परिवारिक, प्राकृतिक, दुख – सुख और आस पास के अनेक संदर्भ दिखाई पड़ते हैं जो रचनाकार के चिंतन और सृजन के प्रबल पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं और संवेदनशीलता का परिचायक हैं। सभी कविताएं सपाट सरल भाषा में छंद मुक्त हैं और गहरे अर्थ लिए है। आखिर में प्रेम युक्त कुछ छंद भी लिखे गए हैं।

संग्रह की कविताएं बीस साल बाद, जो प्रेम में होता है, गीली दूब की कविता, झील ने पूछा,प्रतीक्षा,याद मेरी बांसुरी की, बुरा तो लगता है, भ्रमित मत होना लड़कियों, मुझे आवाज़ देने से पहले, तुम सुन रहे होना, सवाल,कच्ची बस्ती में मौत, ईर्ष्या, कमजोर आदमी का सच, सरोकार, पहुंचना उन्हें साधुवाद, माघ की धूप, बचा सको तो बचालो पृथ्वी, इतिहास से, जिस दिन मन करता है, कोई क्या कहेगा,जब रो नहीं पाता आदमी,इसलिए मैं भी डरता हूं, बौराई धूप की कविता, अलग – अलग मिजाज की कविताएं हैं। सभी कविताएं और छंद पाठक को बांधे रखते हैं। कविता प्रेमियों के लिए अनिवार्य पठनीय कृति हैं।
पास से निकलती हो तुम
तो जैसे गूंज उठता है
मेरा पूरा अस्तित्व
दरबारी कान्हड़ा से
क्या देह भी बजती है
एक संतूर की तरह ?

लेखक : अतुल कनक ,कोटा ( राजस्थान )
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
कवर : पेपर बैक
मूल्य : 90₹

———————-
समीक्षक : डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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