Thursday, March 13, 2025
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प्रो, कुमुद शर्मा ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया

वरिष्ठ साहित्यकार, आलोचक एवं मीडिया विशेषज्ञ प्रोफेसर कुमुद शर्मा जी ने आज, शुक्रवार, 07 मार्च 2025 को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति पद का पदभार संभाला। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा 06 मार्च 2025 को जारी आदेश के अनुसार उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की पहली महिला कुलपति के रूप में प्रो. कुमुद शर्मा की नियुक्ति विश्वविद्यालय के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

प्रोफेसर कुमुद शर्मा  ने हिंदी कविता, कहानी, नाटक, आलोचना और अनुवाद के क्षेत्र में अपनी विशेष उपस्थिति बनाई है। उन्होंने अनेक लोकप्रिय काव्य संग्रह लिखे हैं जैसे “धूल के आँगन”, “आज फिर दिल ने पुकारा है”, “उस पार के बस्ती” और “सूरज के समान” आदि। उन्होंने नाटक लेखन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई है और उनके लिखे नाटक जैसे “बेघर”, “प्रतिज्ञा”, “शोर”, “आँखों के सामने” और “आधे अधूरे” आदि लोकप्रिय हैं।

इसके अलावा, प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में आलोचना का भी अपना योगदान दिया है। उन्होंने अनेक विषयों पर अपने लेख लिखे हैं और हिंदी साहित्य के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।  प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने अनेक उत्कृष्ट लेखनों का अनुवाद भी किया है, जो अंग्रेजी साहित्य से हिंदी में अनुवादित किए गए हैं। उन्होंने उत्कृष्ट लेखन का अनुवाद किया है जैसे “सिद्धार्थ” (हर्मन हेस्से), “अज्ञातवास” (जोसेफ अग्नेल), “फ्रांकलिन डी रूजवेल्ट और मैं” (शिकागो ट्रिब्यून की संपादक जोन के। ओ’हारा) और “जीवन के उपहार” (ओशो) आदि।

सम्मानित प्रोफेसर कुमुद शर्मा का योगदान हिंदी साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में नहीं सीमित है, बल्कि उनका योगदान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण और अमूल्य है।

प्रो. कुमुद शर्मा वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्रोफेसर रही हैं। इसके अतिरिक्त, वे विभिन्न महाविद्यालयों की प्रबंध समितियों की अध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत रही हैं। उनका अकादमिक अनुभव अत्यंत व्यापक रहा है।
प्रो. कुमुद शर्मा ने 1985 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से “नई कविता में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप विकास” विषय पर पीएच.डी. पूरी की और 2002 में रांची विश्वविद्यालय से “भूमंडलीकरण: भारतीय मीडिया का बदलता परिदृश्य” विषय पर डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की। आधुनिक साहित्य, स्त्री विमर्श और मीडिया अनुसंधान में उनकी विशेष रुचि रही है। उन्होंने अपने अकादमिक जीवन में अनेक महत्वपूर्ण शोधों का निर्देशन किया है और उनके मार्गदर्शन में कई शोधार्थियों ने एम.फिल एवं पीएच.डी. पूरी की है।

उनकी लेखनी भी अत्यंत समृद्ध रही है। उन्होंने भारतीय साहित्य के निर्माता: अंबिका प्रसाद बाजपेयी, समाचार बाज़ार की नैतिकता, आधी दुनिया का सच, हिंदी के निर्माता, विज्ञापन की दुनिया, जनसंपर्क प्रबंधन और भूमंडलीकरण और मीडिया जैसी चर्चित पुस्तकें लिखी हैं। उनके समीक्षात्मक लेख, अनुवाद एवं सामाजिक विषयों पर विश्लेषणात्मक लेख विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। वे साहित्य अमृत पत्रिका की संयुक्त संपादक भी रह चुकी हैं।
प्रो. कुमुद शर्मा को उनके उत्कृष्ट शैक्षणिक और साहित्यिक योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें 2002 और 2009-10 में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्हें दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य श्री सम्मान तथा प्रेमचंद रचनात्मक लेखन पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।

अपने शैक्षणिक एवं साहित्यिक योगदान के साथ-साथ प्रो. कुमुद शर्मा ने प्रशासनिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे भारत सरकार की विभिन्न समितियों में सलाहकार एवं सदस्य के रूप में कार्य कर चुकी हैं, जिनमें नागरी उड्डयन मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, खनन मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रसार भारती एवं एनसीईआरटी शामिल हैं।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की पहली महिला कुलपति के रूप में प्रो. कुमुद शर्मा की नियुक्ति विश्वविद्यालय के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। महिला दिवस से एक दिन पूर्व एक महिला कुलपति पाकर विश्वविद्यालय के समस्त हितधारक हर्षोल्लास से भरे हुए हैं।

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