क्या बंगलादेश में हुए घटनाक्रम से भारत को कुछ सीखना चाहिए? क्या यह सरकार के साथ साथ समाज के भी सतर्क और जागृत होने का समय है? क्या विश्वभर के विभिन्न हिस्सों में हो रही गतिविधियां शेष समाज के लिए कोई संदेश या चेतावनी दे रही हैं? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका हर जागृत भारतीय को जवाब ढ़ूंढ़ना चाहिए।
*इस्लाम के अनुयायी पूरे विश्व में जमकर उत्पात मचा रहे हैं, वो चाहे ब्रिटेन हो, फ्रांस हो, जर्मनी हो या फिर बंगलादेश। समझना यह है कि विश्व के अलग अलग और दूर दूर देशों में इस्लाम के अनुयायीयों में ऐसी क्या समानता है कि सब जगह ना केवल जमकर उत्पात हो रहा है अपितु निर्दोष लोगों की हत्याएं भी की जा रही हैं! ऐसा कौनसा तंत्र है जो इन सब अराजकताओं को एकसूत्र में बांध रहा है?*
बंगलादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के लंबे शासन से उकताए विपक्ष ने विदेशी संस्थाओं के सहयोग से छात्रों को आगे करके शेख हसीना को ना केवल अपदस्थ कर दिया अपितु उन्हें देश छोड़कर भारत में शरण लेने को मजबूर कर दिया। यदि राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो उनका यह आंदोलन शेख हसीना के अपदस्थ होते ही पूरा हो गया था। लेकिन प्रश्न यह है कि उसके बाद *बंगलादेश में रहने वाले हिन्दुओं को निशाना बनाना कौनसे आंदोलन का हिस्सा था ? बंगलादेश की मुसीबत के समय हर समय आगे बढ़कर मदद करने वाले ढ़ाका के इस्कॉन मंदिर को जलाना किस आंदोलन का उद्देश्य था ? वहां के हिन्दुओं को मारना और हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार करना इन आंदोलनकारियों को कौन बता रहा है?* इन सबका एक ही उत्तर है मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन ।
ऐसा भी नहीं है कि यह सब केवल बंगलादेश में ही हो रहा है, ये ही तरीका यूरोप और ब्रिटेन में भी अपनाया जा रहा है। वहां भी सरकार के विरोध के बहाने आंदोलन होता है और फिर वहां के गैर मुस्लिमों को हिंसा का शिकार बनाया जाता है। यह ऐसा प्रयोग है जो पूरे विश्व में कट्टरपंथी मुसलमान कर रहे हैं और उनके इस कृत्य पर कथित मानवतावादी भयभीत करने वाली चुप्पी धारण किये बैठे हैं। तो क्या यह माना जाना चाहिए कि मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध भारत में इस प्रकार की घटनाएं व्यापक पैमाने पर नहीं होंगी ? अभी भारत में कुछ स्थानों से ऐसे समाचार आते रहते हैं लेकिन उनको सामुदायिक ना मानकर व्यक्तिगत मामला बताते हुए अनदेखा कर दिया जाता है।
बंगलादेश में हुए इस राजनीतिक घटनाक्रम ने भारत के समाज विज्ञानियों, राजनीतिक समीक्षकों और जागृत नागरिकों को चौंका दिया है। इससे पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और श्रीलंका में हुए ऐसे आंदोलनों को किसी ने भी इतनी गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन *बंगलादेश में हुए घटनाक्रम के बाद भारतीय समाज में पैदा हुई बैचेनी को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि भारत में करोड़ों बंगलादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए फर्जी तरीकों से भारत के नागरिक बन बैठे हैं। थोड़े से लालच और वोट बैंक की राजनीति के चलते इन लोगों को राजनीतिक संरक्षण भी मिल रहा है।*
भारत में मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या में इन घुसपैठियों की बड़ी भूमिका है। मोदी सरकार द्वारा पिछले कार्यकाल में लाए गए सी ए ए और एन आर सी कानून को लागू कर पाने में भी देश का मुस्लिम समाज और मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त राजनीतिक दल बड़ी बाधा हैं। सरकार ने देश को घुसपैठिया मुक्त करने की मंशा तो यह कानून बनाकर जता दी पर यह धरातल पर उतरेगा इसमें संशय ही लग रहा है। अब तो यह और मुश्किलें पैदा करेगा, जबकि विपक्ष सत्ता में वापसी के लिए देश को चोटिल करने की हद तक जाने को तैयार हो।
पहले शाहीन बाग और बाद में किसान आंदोलन दो ऐसे प्रयोग इसी प्रकार की मानसिकता के साथ देश में हो चुके हैं, जिसमें देश के विपक्ष ने मुस्लिमों और सिख समुदाय को भड़काने की कोशिश की थी और अब हिन्दुओं की जाति पूछकर उनकी एकता को खंडित करने की कोशिश लोकसभा में सबके सामने आ चुकी है। अब जब केन्द्र सरकार कुछ और कानूनों को न्यायसंगत बनाने जा रही है तो मुस्लिम नेताओं की भड़काऊ टिप्पणीयों और उलेमाओं के धमकी भरे भाषणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसलिए समाज को जागृत और सावधान रहने की जरूरत है।
*सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जयपुर*
*सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट*