Saturday, December 21, 2024
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Homeशेरो शायरी'बचा सोचना'

‘बचा सोचना’

तुम्हें विदा कर लौट के आये, बचा सोचना.
कैसे    कैसे  मन    भरमाये, बचा सोचना.
धरा, गगन,घर,आँगन, नाते-रिश्ते,मुझ पर,
तुमने  कितने  चित्र बनाये,  बचा सोचना.
यह क्या  मैं  हूँ, मेरा मन है,  सोच रहा हूँ,
खालीपन  सूनापन  पाये,   बचा सोचना.
ऊबड़-खाबड़ पंथ अजाना, साँझ हो गयी,
सावन-भादों घन घिर आये, बचा सोचना.
मिला अनुग्रह, छूट गया सब,अपना क्या था,
अभिशापित जीवन घबराये, बचा सोचना.
सपने,सच,सुख,आशा,पाहुन,प्रिय से प्रियतर,
निबहुर  गये, नहीं बहुराये,   बचा सोचना.
तुम्हें विदा कर लौट के आये, बचा सोचना.
कैसे   कैसे  मन   भरमाये,  बचा सोचना.
पुणे, २६-१२-‘२१ ई०.
 डॉ मंगला सिंह (निवर्तमान रीडर )
उदित नारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय पडरौना
जनपद -कुशीनगर

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