बच्चों, राजस्थान में चित्तौड़गढ़ किले का महत्व कई बातों से हैं। किले में गूंजती है पन्नाधाय की कहानी। पन्ना धाय राणा सांगा के पुत्र राणा उदय सिंह की धाय ( बच्चे का पालन करने वाली ) थी। रानी कर्णावती के जौहर करने के बाद उदय सिंह का लालन-पालन की जिम्मेदारी पन्ना धाय को सौंप दीं। उदय सिंह के चाचा बनवीर ने जब इस बच्चे को मरना चाहा तो उसने इसकी रक्षा के लिए अपने बेटे चंदन को उदयसिंह के कपड़े पहना कर उसकी जगह सुला दिया और उदयसिंह को सुरक्षित जगह ले गई। बनवीर ने चंदन को उदयसिंह समझ कर मार डाला। पन्नाधाय ने उदयसिंह को बचा कर राजवंश की रक्षा कर अपना कर्तव्य पूरा किया। ऐसी ही एक कहानी है रत्न सिंह की रानी पद्मिनी की जो बहुत खूबसूरत थी। अलाउद्दीन ने उसे पाने के लिए किले पर हमला किया। रानी ने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए किले की अन्य महिलाओं के साथ सामूहिक रूप से जौहर ( आग में कूद कर जिंदा जलना ) कर लिया।
महाराणा सांगा की बहादुरी की कहानी भी यहां गूंजती है जिसने कई युद्ध लड़े और उसके शरीर पर 80 घाव होने पर भी वह युद्ध लड़ता रहा, हार नहीं मानी और लड़ते – लड़ते वीरगति को प्राप्त हुआ। दो वीरों जयमल राठौड़ और पत्ता चुंडावत जिस साहस के साथ मुगलों की सेना से लड़े उनकी कहानी भी प्रेरित करती हैं। इनकी बहादुरी से अकबर इतना प्रभावित हुआ कि उसने आगरा के किले के मुख्य द्वार पर इनकी मूर्तियां बनवाई। इन दोनों वीरों की याद में किले के सूरजपोल गेट पर छतरियां बनी हैं। चित्तौड़गढ़ किले की ये ऐतिहासिक कहानियां बच्चों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं और उन्हें त्याग, बलिदान, वीरता और देश प्रेम की प्रेरणा प्रदान करती हैं। कृष्ण भक्त मीरा बाई यहां एक मंदिर में भजन गाती थी।
बच्चों को किले की ये ऐतिहासिक कथाएं रोमांचित करती हैं। साथ ही सात दरवाजों से गुजर कर जब मुख्य किला आता है जो चारों तरफ से मजबूत दीवारों से घिरा है तो किले की सुरक्षा व्यवस्था भी आश्चर्य उत्पन्न करती है । किले में बने स्मारकों और मंदिरों की सुंदर कारीगरी भी खूब लुभाती है। इतनी विशेषताओं को देखते हुए 21 जून, 2013 को इस किले को यूनेस्को की विश्व विरासत में इसे शामिल किया जाना गौरव की बात है।
माना जाता है कि राजस्थान के इस सबसे बड़े किले की स्थापना मौर्य राजा चित्रांगद ने की थी। बापा रावल ने 728 ई. में इस दुर्ग को मौर्य वंश के अन्तिम राजा मान मौर्य रावल से छीन कर गुहिल वंश की स्थापना की। मुगल शासक अकबर के समय तक इस पर कई राजाओं ने राज्य किया। किला गंभीरी नदी के पास अरावली पर्वत शिखर पर सतह से करीब 180 मीटर की ऊंचाई पर 700 एकड़ और लगभग 13 किलोमीटर में हुआ है । दूर से ही किला और विजय स्तंभ दिखाई देता है। विजय स्तंभ लगभग 122 फुट ऊंचा नौ मंजिला है। ऐसे ही एक ऊंची इमारत सात मंजिला कीर्ति स्तंभ है। इन स्तंभों सहित किले में 65 इमारतें मंदिरों, महलों, छतरियों, जल कुंडों आदि के रूप में बनी हैं। रानी पद्मिनी का महल, कुम्भा महल, फतहप्रकाश महल और इसमें स्थापित संग्रहालय , राणा सांगा के महल,भामाशाह की हवेली,जयमल की हवेली, शृंगार चंवरी अथवा शांतिनाथ मंदिर, मीरा अथवा कुंभश्याम मंदिर ,समिद्धिश्वर मंदिर , सूर्य अथवा कालिका मंदिर, 27 जैन मंदिरों का समूह सतबीस देवरी मंदिर, बनवीर दीवार और नवलखा भंडार आदि मुख्य दर्शनीय स्थल हैं।
चित्तौड़गढ़ दिल्ली – उदयपुर रेलवे मार्ग पर स्थित है। देश और दुनिया के पर्यटक बड़ी संख्या में इसे देखने हर साल आते हैं।

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा