Sunday, March 30, 2025
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बलात्कार की कोशिश के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के प्रयास के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए इसे स्तब्ध करने वाला असंवेदनशील फैसला करार दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 11 साल की एक पीड़िता के मामले में फैसले में कहा था कि वक्ष पकड़ना, सलवार का नाड़ा खोलना और उसे घसीट कर पुलिया के नीचे ले जाने को बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता। शीर्ष अदालत ने इस फैसले के खिलाफ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन की विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करते हुए उसे पीड़िता की पैरवी की इजाजत दी। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार, उत्तर प्रदेश राज्य और मामले से जुड़े सभी पक्षों को नोटिस जारी किए हैं।

मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की खंडपीठ ने हाई कोर्ट के फैसले में जाहिरा तौर पर नजर आने वाली असंवेदनशीलता पर कड़ी आपत्ति जताई और उसकी टिप्पणियों को “चौंकाने वाला एवं कानून की किसी भी समझ से रहित” करार दिया।

खंडपीठ ने विवादित फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि फैसले में की गई कुछ टिप्पणियां, विशेष रूप से पैरा 21, 24 और 26  की सामग्रियां घोर असंवेदनशील हैं। पीठ ने कहा कि यह फैसला चार महीने लंबी विचार-विमर्श की प्रक्रिया के बाद आया, फिर भी यह अमानवीय और कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

निचली अदालत ने इसे बलात्कार के प्रयास का मामला मानते हुए आरोपियों पवन और आकाश को आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत तलब किया था। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि बच्ची के वक्ष को छूना और उसे जबरन पुलिया के नीचे घसीटकर ले जाना, फिर राहगीरों के पहुंचते ही भाग जाना, कानूनन बलात्कार के प्रयास (आईपीसी की धारा 376/511) या पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। इस आधार पर हाई कोर्ट ने आरोपी पर लगाए गए आरोपों में फेरबदल कर दिया और उस पर धारा 354(बी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 लगाई गई।

बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए देश के 416 जिलों में काम कर 250 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (जेआरसी) इस कानूनी लड़ाई की अगुआई करेगा ताकि पीड़िता की गरिमा और अधिकारों की रक्षा हो सके और उसके साथ न्याय सुनिश्चित हो।

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन और पीड़िता के परिवार की ओर से अधिवक्ता रचना त्यागी ने कहा, “इस मामले में साढ़े तीन साल से अधिक समय तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई और तीन साल से ज्यादा समय तक कानूनी कार्यवाही बिना किसी औपचारिक जांच के चलती रही। एक गरीब और कमजोर परिवार की इस बच्ची के साथ यह लापरवाही गंभीर अन्याय है। हमें इसे बात से राहत मिली है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार कर लिया है। हम पीड़िता की हरसंभव मदद और उसके लिए न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
संपर्क
Jitendra Parmar, 8595950825

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