कोटा की साहित्यकार डॉ.कृष्णा कुमारी हाल ही में अपनी काव्य संग्रह कृति ” बहुत प्यार करते हैं शब्द ” भेंट की। हरे रंग में आवरण पृष्ठ एक दृष्टि में मन को छू गया। कृति के शीर्षक से अनुभूति हुई कि यह प्रेम आधारित कविताओं का संग्रह है। शीर्षक के अनुरूप अनेक कविताओं से प्रेम धारा प्रस्फुटित होती है। लगता है शब्द स्वयं महक कर प्रेम का संदेश दे रहे हैं। प्रेम की परिभाषा गढ़ते शब्दों की बीच समसामयिक संदर्भ प्रकृति, पर्यावरण, महिलाओं और बदलाव अनेक विषय सृजन का केंद्र बिंदु हैं। कुछ कविताएं गुलाब, चमेली, गेंदा के फूलों जैसे छोटी हैं जब की कुछ कविताएं रजनीगंधा के फूलों की डाली जैसी लंबी हैं। कुछ फूलों की माला में कई रंगबिरंगे फूलों से गुथी हुई कविताएं सीरीज में लिखी गई हैं। इंद्रधनुषी रचनाओं में प्रेम की अनुभूति का अहसास कराती हैं गीत की ये पंक्तियां……
इन अधरों पर जब तुम ने धर अधर दिए
लगा सुरा के मैंने सौ – सौ चषक पिए ।
बाहों में भर लिया तुमने बदन मेरा
सुध – बुध खो कर हमने अगणित सपन जिए ।
श्वसित – गंध से प्राण वाटिका महक उठी
निशा मध्य जेसे निशि – गंधा लहक उठी ।
प्रेम – पाश में ऐसे अंतस पुलक उठा
जैसे चंदन वन में मैना चहक उठी ।
इंतजार में प्रेम और विरह की पीड़ा को अत्यंत भावपूर्ण रूप से अभिव्यक्त किया है ” तुमको आना था, न आए” कविता में………..
रात भर पथ में तुम्हारे
दीप नयनों के जलाए
तुमको आना था, न आए
वेदना सह कर विरह की पड गया है, व्योम काला
याद के असफुट सितारे किन्तु रह – रह झिलमिलाए
तुमको आना था, न आए
चाँद भी सोने चला अब भोर की रक्तिम गुहा में
आस की मद्धम – सी लौ पर ओस सी पड़ती ही जाए
तुमको आना था, न आए
प्रेम भावों को अभिव्यक्त करती कविताओं के बीच ” सरहदें ” सवाल करती हैं कहां से आई इस पृथ्वी पर सरहदें……..…
बारूद के ढेर
सेनाओं का अंबार
लगे हुए हैं
मासूम सी धरती पर
क्योंकि
उस पर सरहदें हैं, सरहदें हैं
इस लिए नफरतें हैं, नफरतें हैं
इस लिए दहश्तें है
दहशतें हैं…..इसलिए…!
कोई तो बताये
चांद सी/ गोल मटोल/पृथ्वी पर
ये सरहदें
आई कहाँ से???
प्रकृति प्रेम और पर्यावरण को लेकर लिखी कविता ” पेड़ और तस्वीरें ” कटाक्ष करती हैं उन लोगों की मनोवृति पर जो दिखावे के लिए पेड़ लगा कर तस्वीरें खिंचवाते हैं, फिर भूल जाते हैं उनकी देखभाल करना और रोपित पौधे पशुओं का ग्रास बन जाते हैं ,रह जाती हैं तस्वीरें…………
तमाम चैनलों पर
दिखाई जा रही थी
गुणगान किया जा रहा था
तस्वीरें खिंचवाने वालों के
प्रकृति प्रेम का
संरक्षित हो चुकी थी तस्वीरें
हमेशा हमेशा के लिए
जो रखेंगी संरक्षित सदियों तक
उनके प्रकृति प्रेम को
उनका ये पेड़ प्रेम बन चुका है
एक इतिहास
और वो हो गए अमर
पेड़ का क्या…?….?….?
पनपे न पनपे !!!
” शब्द – चोर ” ऐसी कविता है जिसके माध्यम से पुलिस व्यवस्था पर करारा व्यंग्य नज़र आता है। एक पुस्तैनी संदूक में शब्दों को कविता में आबद्ध कर सुरक्षित रखा जाता है और कुछ समय पश्चात देखने पर ज्ञात होता है वे तो चोरी हो गए। पड़ोसियों पर नज़र रखी, ज्योतिषों के चक्कर लगाते, पुलिस में रिपोर्ट कराई ,कोई सुराग नहीं मिला तो बात आई गई हो गई। अकस्मात ही एक दिन समाचार पत्र में देखा लिखा था ” शहर में शब्द चोरों का गिरोह सक्रिय ” । विदेशी हाथ तो है ही इसमें , बड़े खतरनाक लोग है ये। शब्दों के माध्यम से हमें अपना ही आइना दिखाती पृष्ट भूमि पर लिखी कविता की पंच लाइनें देखिए……..
मैंने पूछा
एक सजग नागरिक से
आखिर पुलिस कहां है
क्या घोड़े बेच कर सो गई?
बड़ी मासूमियत से जवाब मिला कि
उसकी मिली भगत और शह से ही तो
शब्द – चोरों के हैं हौंसले बुलंद
माना की विदेशों का हाथ
यहां है
लेकिन हमारा हाथ कहां है
किसी को पता नहीं
संग्रह की कविता ” एक और महिला दिवस”
नारी अत्याचार पर सटीक अभिव्यक्ति है । जोर शोर से महिला दिवस मनाया, मीडिया ने भी बहती गंगा में मल मल कर हाथ धोए। चंद चर्चित नारियों को हाइलाइट कर समाचार पत्रों ने भी पृष्ट भर कर वाही वाही बटोरी । उन महिलाओं का क्या जिनके लिए 8 मार्च काली लकीरें हैं ? इन्हीं भावनाओं के साथ महिला अपराध, अपहरण, बलात्कार, दहेज की आग में जलती नारी, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा पर लिखते हुए कविता के अंत में लिखी पंक्तियां महिला दिवस की पोल खोलती दिखाई देती हैं………….
लेकिन ( निर्ममता की सारी हदें पार कर )
धारदार कैंची से
वात्सल्य – रस में / सरोबार
असंख्य मासूम/ मादा – भ्रूणों के
छोटे …..छोटे…….छोटे
टुकड़े करते / खूनी हाथ
बना देते हैं / जिसकी कोख को
कतलगाह …….!
वह
बेचारी औरत ???
संग्रह में संकलित 56 कविता और गीतों का इंद्रधनुषी गुलदस्ता नाना प्रकार के पुष्पों से सुगंधित है। संग्रह की कविताएं प्रेम पत्र, जीने दो पर्वतों को, चांदनी रात में डल झील पर सेर,सृजन के द्वार, तुम सागर हो, बहुत दिनों बाद, प्यार तुम्हें कितना करती हूं, प्रीत बड़ी दुखदाई, पेड़ और चिड़िया, मत करियों प्रित, अरे ओ फागुन , विवशता तथा खुशी इन चिड़ियों का नाम बड़ी ही भावपूर्ण हैं, जो दिल की गहराइयों तक उतारवजाति हैं। कविता रूपी इन काव्य पुष्पों की महक को पढ़ने वाला ही महसूस कर सकता है। डॉ.कृष्णा जी को भावपूर्ण काव्य सृजन के लिए कोटि – बधाई और भावी सृजन के लिए शुभकामनाएं।
लेखिका : डॉ. कृष्णा कुमारी
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य : 150 ₹
समीक्षक : डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा