“म्हारी बात कबीर साहेब का दोहा सूं करबो चाहूं छूं –
कबीरा जब पैदा भये, जग हांसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलो, हम हांसे जग रोये ।।
अस्यो लागे जाणै कबीर में बुद्ध समाग्या हो। बुद्ध नै आपणा ढंग सूं सांच को दरसाव करायो। ई सांच कै ताई कबीर नै बना लाग लपेट कै लोगां कै सामै परोसद्यो। “ओसो” बी बुद्ध दरसण का कायल छा। म्हूं बी शाक्य वंश को ओक छोटो सो तुणगल्यो, होबा कै नातै भगवान बुद्ध पै कलम चलाबा की हूंस तो पाळ ई सकूं छू। या कोसीस करबा की मनै मन में ठाण ली।
…हिम्मत कर दिनांक 13.07.2022 गुरू पून्यो विक्रम संवत 2079 कै दन लै बुद्धा को नांव बुद्धायन की रचना चालू कर दी। ओक बरस दस दन यानी 24.07.2023 को 20 सर्ग पूरा होग्या। संजोग देखो आप गुरू पून्यो कै दन ग्रंथ पूरो होयो अर 21.07.2024 आगली गुरू पून्यो कै दन टाइप को काम बी पूरो होग्यो।…
यह किसी डायरी के पन्ने की इबारत नहीं है वरन् महाकाव्यकार किशनलाल वर्मा द्वारा हाड़ौती में लिखित महाकाव्य “बुद्धायन” में उनकी ‘ म्हारी सोच ‘ के अन्तर्गत उभरे विचार हैं।
इस प्रबन्ध काव्य में किशन जी ने बुद्ध के जन्म से लेकर उनके महानिर्वाण तक यथा- सिद्धार्थ से बुद्ध बनना, मध्यम मार्ग को अपनाना, धर्म की दीक्षा, आम्रपाली का उद्धार सहित उनके जीवन चरित का वर्णन हाड़ौती में लिखकर एक महत्वपूर्ण कार्य किया है।
जब लेखक विषय वस्तु के भीतर अपनी चेतना के साथ यात्रा करता है तो वह रचना की बुनावट को अपने कौशल से पूर्णता की ओर ले जाता है। महाकाव्यकार किशन जी ने इन्हीं सन्दर्भों के साथ अपना यह कार्य किया और बुद्ध के समूचे दर्शन को आत्मसात् करते रहे।
इस माने में भी कि – “भगवान बुद्ध की सिक्स्या अर संदेस पूरा संसार कै तांई सान्ति अर सद्भावना, पंचसील अस्टांगिक मार्ग, दस सील, च्यार आर्य सत को पाठ पढ़ावै छै। वांका उपदेस संसार कै तांई युद्ध की भीसण मारममार सूं छुटकारौ द्वाबा को काम करै छै।…वांनै जात पात अर छुआ छूत सूं संसार कै तांई मुक्ति दिलाई, अन्धबस्वास सूं छूटकारो दिलवायो अर समानता और समता को अधिकार दिलवायो…”
इस महाकाव्य को लेखक ने बीस सर्गों में विभाजित किया है-
सर्ग एक में- नमो नमः , तिरी सरण (त्रिशरण), वंसावळी, सिद्धार्थ को जनम, देवतां की अरदास, महामाया की मुक्ती
सर्ग दो में – बचपण, सोहबत, ब्याव को सुझाव, यसोधरा को सणगार, स्वयंवर, रास रंग
सर्ग तीन में – बैराग की सोच के अन्तर्गत अ. बुजुर्ग का दर्सण, ब. रोगी मनख, स. शव दर्सण का यथोचित विवरण है तथा उदायी की सीख, गौतम को ज्वाब, साक्य संघ मं दीक्स्या, बैराग की अनुमति, सर्ग चार में – भारद्वाज मुनि सूं दीक्स्या,
छंदक अर गौतम मं बातचीत, छंदक की वापसी, यसोधरा को बिलाप, सुद्धोदन की वेदना, जीवक, रद्वपाल
सर्ग पाँच में – बैराग की डगर, मनाबा की आखरी कोसीस, राजगृह की ओर, राजा बिम्बिसार सूं भेंट ।
सर्ग छह में – पांच परिव्राजक, आलार कालाम का धरम उपदेस, ध्यान की अवस्था।
सर्ग सात में – घोर तपस्या, सुजाता की खीर, गहरो ध्यान, मार की हार (कामदेव की हार), बुद्धत्व।
सर्ग आठ में – नुया धरम की खोज, दस जीवण चक्र, कपिल मुनि को सांख्य दरसण, पांच परिव्राजकांईं उपदेस, अस्टांगिक मार्ग।
सर्ग नो में – सील डगर, धरम चक्र परवरतन (प्रवर्तन)
सर्ग दस में – धरम दीक्स्या, यस कुल पूत की धरम दीक्स्या, कस्यप मुनि की धरम दीक्स्या, राजा बिम्बिसार सूं दूसरी भेंट, महाकास्यप की प्रव्रज्या।
सर्ग ग्यारह में -अनाथपिण्डक की धरम दीक्स्या, दान को महत्व, जीवक, रट्ठपाल।
सर्ग बारह में – पिता सूं भेंट, पिता कै तांईं उपदेस, यसोधरा सूं मिलण
सर्ग तेरह में – साक्यों द्वारा अगवाणी, पिता को संदेसो
सर्ग चौदह में – गांव गांव में धरम प्रचार, देवदत्त की करतूतां, गौतम ईं मारबा को कूटजाळ
सर्ग पन्द्रह में – आम्रपाली, आम्रपाली बुद्ध की सरण मं, आम्रपाली पै किरपा
सर्ग सोलह में – लिच्छवियों पै किरपा, असवर्णों की धरम दीक्स्या (उपाली नाई), सुप्रबुद्ध कोढ़ी
सर्ग सत्रह में – धरम दीक्स्या “दूसरो चरण” , अंधविस्वासियांईं ग्यान, अंगुळीमाळ को उद्धार, दूसरा अपराध्यां की धरम दीक्स्या
सर्ग अठारह में – औरतां की धरम दीक्स्या, चाण्डालिका प्रकरती
सर्ग उन्नीस में – निरवाण की डगर, आणंद की कळप, आखरी संदेस, त्रीदण्डी सुभद्र कै तांईं आखरी दीक्स्या, आखरी उपदेस, अनिरुद्ध की अरज, उत्तराधिकारी
सर्ग बीस में – महानिरवाण, आखरी विदाई अर संस्कार
यथा शीर्षक कवि किशन वर्मा ने उन सम्पूर्ण सन्दर्भों को हाड़ौती में लिखा है जिनका विशद् विवरण उन ग्रन्थों में दिया गया है जिनका कवि ने सहायक ग्रन्थ के रूप में यथा – 1.बुद्ध और उनका धम्म, लेखक बोधि सत्व बाब साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर, 2. बुद्ध चरितम प्रथम भाग 3. बुद्ध चरितम द्वितीय भाग लेखक महाकवि अश्वघोष शास्त्री,4.वैशाली की नगर वधु लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री 5. यशोधरा लेखक मैथिली शरणगुप्त, साथ ही गूगल से पारायण किया और चिंतन – मनन करते हुए इन सभी के मूल स्वरूप को ‘ बुद्धायन ‘ में उकेर कर हाड़ौती साहित्य परम्परा को समृद्ध किया।
सर्ग एक के आरम्भ में ही कवि ने “नमो नमः” के अन्तर्गत प्रार्थना के रूप में तथागत बुद्ध चरित का भाव चित्रण कर उनके उपदेश को उभारा है –
चित्तमल, राग वासना हरता बुद्ध तथागत नमो नमः। ईरस्या, बैर, कळेस संहरता, बुद्ध तथागत नमो नमः ।।
मोह माया सूं फंद छुड़ावै, ग्यान सुग्याता नमो नमः। करूण, दया, मनमीत जुड़ावै, ध्यान सुग्याता नमो नमः ।।
सम्यक रूप धरम का धारक, जगत सास्ता नमो नमः। सम्यक ग्यान करम का कारक, भगत सास्ता नमो नमः ।।
पंचसील, दसमल की वाणी, सुगत *सनातन नमो नमः । आठडगर, मध्यम धज ताणी, *सुमत सनातन नमो नमः ।।
च्यार आर्य सत मरम पछाणै, परग्या दायक नमो नमः । नौ गुण वंदण लोक बखाणै, तरग्या *पायक नमो नमः ।।
सरदा महा परम आदरणीय बुद्ध भगवन्ता नमो नमः । छः गुण धम्म विशेष वंदनीय, सम्बुद्ध सन्ता नमो नमः ।।
सबद सांच भव मोती पाऊं, ग्रंथ रचू म्हूं बुद्धायन । किसन कवि बुद्ध सरणा आऊं, करतो रहूं नत पारायण ।।
कवि जब इस प्रकार नमन करते हुए बुद्ध की शरण में अपने को समर्पित करता तो वह उनके अन्तिम क्षणों को भी उसी भावभूमि पर उकेरता है।
बीसवें सर्ग में कवि महानिर्वाण के बाद जब आखिरी विदाई और संस्कार को वर्णित करता है तो उन सभी सन्दर्भों की वास्तविकता को उजागर करता है जो तत्कालीन परिवेश में उपजी और उनका यथास्थिति समाधान अवध के नरेश अजातशत्रु ने किया-
निरवाणी खसबू उड़ी, दुनिया रह’गी दंग। सातों जनपद भू पति, चाहवै अस्थी अंग।।
सब आपस में बांटल्यो, कर *ऑगां का भाग। हलमल जीओ जीवणी, छोड़ो सब अनुराग ।।
आपस में सब लड़ रह्या, मांगै हड्ड्यां राख। द्रोण बीच मं बोलग्या, क्यूँ भेळो छो साख। क्यों *भेळो छो *साख, तथागत सील सखाया। विनय, दया, सत च्यार, डगर अस्टांग बताया।। किसन कवि कहै बुद्ध, क्रोध इच्छा करौ बस मं। आठ भाग करल्यो बोल्या बांटो आपस मं।।
भाग एक सत्रुअजातईं, लिच्छविं दूजो भाग। कपिलवस्तु साक्यान् को, तीजा पै अनुराग। तीजा पै अनुराग, कै चौथो अलकप्य बूल्ली। भाग पांचवों कोळी लेवै हुवै तसल्ली ।। पावा का मल्ल छठो, सातवों विप्र मांग छै। पांती आया कुसीनारा मल्ल आठ भाग छै।।
भाग नवों, खाली घड़ो, द्रोण भिक्सु कै हाथ। बुद्ध रखौड़ी भाग दस, मोर्य हुया सनाथ ।। मोर्य हुया सनाथ, बणाया दस स्तूपा। करै प्रचार प्रसार, धरम का भिक्सुक, भूपा ।। किसन कवि नै छोड्या ईरस्या, द्वेस, राग छै। रच्यो ग्रंथ “बुद्धायन “मानै बड़ो भाग छै ।।
सर्ग बीस, भगवान् बुद्ध,पावै महानिरवाण। बंटवारा अवसेस का, करै “किसन “गुणगाण ।।
महाकाव्य में वर्णित सभी सर्गों के यथा सम्भव प्रत्येक पृष्ठ पर कवि ने प्रयुक्त शब्दों के समुचित अर्थ भी दिए हैं जिससे प्रसंग विशेष की भाव – संवेदना को स्पष्ट रूप से समझा जा सके। जैसे * सनातन – अविनासी, *सुमत – ग्यानवान, *पायक – सेवक पृष्ठ- 15 , *ऑगा = अस्थि फूल, *भेळो = नुकसान, *साख = फसल, इज्जत पृष्ठ – 368
सम्पूर्ण महाकाव्य दोहा, छंद, चौपाई के अतिरिक्त सोरठा – पृष्ठ संख्या 24, 33, 43, 46, 55, 70, 76, 92, 101, 117, 140, 154, 178, 239, 240, 248, 352, सवैया – पृष्ठ संख्या 18, 19, 92, 97, 108, 109, 142, कुंडली – पृष्ठ संख्या 178, 179, 191, 213, 220, 259, 263, 280, 312, 319, 368, 369 में तथा उन्नीसवें सर्ग का उतराधिकारी वाला पूरा ही भाग पृष्ठ संख्या 354 से 355 तक कुंडली में ही निबद्ध है। यही नहीं पृष्ठ संख्या 205, 296, 359 पर कवित्त भी लिखे हैं।
अन्ततः यही कि कवि द्वारा अपने सघन अध्ययन, मौलिक चिन्तन और पूर्ण समर्पण से रचित तथा ज्ञान गीता प्रकाशन, एफ – 7, गली नं – 1, पंचशील गार्डन, एक्स. नवीन शाहदरा, दिल्ली से वर्ष 2024 में प्रकाशित ‘ बुद्धायन ‘ बुद्ध के जीवन – वृत के साथ उनके दार्शनिक विचारों को सरलता से प्रस्तुत करता है।
– विजय जोशी
कथाकार और समीक्षक, कोटा