बेंगलुरू में पर्सनल एयर क्वालिटी सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड (पीएक्यूएस) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक ए. वैद्यनाथन के अनुसार, ‘‘वायु प्रदूषण एक खामोश हत्यारा है। वायु प्रदूषण के कारण भारत में स्वास्थ्य लागत प्रतिवर्ष लगभग 80 अरब डॉलर होने का अनुमान है और इससे निचले स्तर के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।’’
देश भर में कमजोर तबके के लोगों की सेहत खतरे में होने के कारण पीएक्यूएस ने लोगों को वायु प्रदूषण से बचाने के महत्वपूर्ण काम के लिए खुद को समर्पित किया है। कंपनी के प्रयासों को हाल ही में तब पंख लगे जब अक्टूबर 2024 में इसे ‘‘क्वांटम टेक्नोलॉजीज़ एंड आर्टिफिशियस इंटेलिजेंस (एआई) फॉर ट्रांसफॉर्मिंग लाइव्स’’ अनुदान प्राप्त के करने के लिए चयनित किया गया। यह प्रतिष्ठित अनुदान भारत और अमेरिका की सरकारों की संयुक्त पहल है। वैद्यनाथन कहते हैं कि इस अनुदान से पीएक्यूएस के इस जीवन बचाने वाले काम के बारे में लोग जानेंगे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एआई अनुसंधान के नए स्तरों को बल मिलेगा।
यूएस-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडाउमेंट फंड (यूएसआईएसटीईएफ) के क्वांटम टेक्नोलॉजी एंड एआई फॉर ट्रांसफॉर्मिग लाइव्स अनुदान के हिस्से के रूप में 11 एआई परियोजनाओं में से हरेक को लगभग 120,000 डॉलर का अनुदान मिलेगा। यानी करीब 20 लाख डॉलर खर्च होंगे। यह अनुदान यूएस-इंडिया इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसीईटी) के तहत क्वाटंम प्रौद्योगिकी और एआई में संयुक्त अनुसंधान और विकास की दिशा में एक मील का पत्थर है।
‘‘मेरी हवा ही मेरा स्वास्थ्य है,’’ इसी विश्वास से प्रेरित होकर वैद्यनाथन और उनकी टीम ने लोगों को वायु प्रदूषण के खतरों से निपटने में मदद करने के लिए अत्याधुनिक उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला तैयार की। ये उत्पाद इसका इस्तेमाल करने वालों को उनके आसपास की वायु की गुणवत्ता को समझने और उसके अनुरूप अपने निजी स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं। कंपनी के नवाचारों में एक स्वच्छ वायु हेलमेट शामिल है जो हवा से प्रदूषक तत्वों को हटाने के लिए स्मार्ट तकनीक का इस्तेमाल करता है। इसके अलावा एक स्मार्ट इनहेलर है जो अस्थमा से पीडि़त लोगों की मदद करने के लिए सेंसर और डेटा एनेलेटिक्स का उपयोग करता है। डिजिटल बेबीसिटर सिस्टम खासतौर से केयरगिवर्स को सशक्त बनाने और हानिकारक वायुजनित प्रदूषकों से शिशुओं को बचाने के लिए तैयार किया गया है।
मैरीलैंड यूनिवर्सिटी, बाल्टीमोर काउंटी (यूएमबीसी) में प्रोफेसर राम पी. रुस्तगी एआई पर पीएक्यूएस को सलाह देने का काम करते हैं और वह इन दिनों एक ऐसी ही रोमांचक परियोजना पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह कुछ उसी तरह का विश्वसनीय नवाचार है जिसके चलते कंपनी को ‘‘क्वांटम टेक्नोलॉजी एंड एआई फॉर ट्रांसफॉर्मिग लाइव्स’’ अनुदान हासिल करने में मदद मिली।
रुस्तगी ने इस परियोजना को ‘‘हाईपरलोकल एयर क्वालिटी मॉनीटर विद एआई ड्रिवेन मॉॉडलिंग’’ के तौर पर बताया है। व्यावहारिक रूप से इसका मतलब स्थानीय वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए कम लागत वाले सेंसर का उपयोग करना और उपयोग करने वाले के लिए किसी भी जगह की वायु गुणवत्ता (एक्यूआई) को मापना आसान बनाना है। लेकिन सबसे खास बात यह है कि इसके जरिए उपयोगकर्ता को वायु गुणवत्ता डेटा की एआई संचालित व्याख्याएं मिल जाती है और वह अपने स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन विकल्पों का चुनाव कर सकने में सक्षम बन सकता है।
पीएक्यूएस को विश्वास है कि एयर क्वालिटी सेंसर से मिलने वाली सूचनाओं एवं एआई एल्गोरिदम से प्राप्त विश्लेषण से लोगों के जीवन में काफी बड़ा फर्क आएगा।
रुस्तगी के अनुसार, ‘‘अलग-अलग लोगों में वायु प्रदूषण को लेकर भिन्न-भिन्न संवेदनशीलता हो सकती है, कुछ लोगों को हवा में धुएं के कुछ निश्चित स्तर के साथ ठीक महसूस हो सकता है, लेकिन दूसरों को नहीं।’’ वह कहते हैं, ‘‘हमारी तकनीक लोगों को उनके घर के आसपास के इलाकों को समझन,े या जहां भी वे हों, वहां के प्रदूषकों के बारे में जानकारी देकर यह जानने में मददगार हो सकती है कि हवा की गुणवत्ता कैसी है और उनकी सेहत पर किस तरह से असर डाल सकती है।’’
रुस्तगी बताते हैं कि कंपनी ने अब तक एक आशाजनक प्रोटोटाइप विकसित किया है। पीएक्यूएस को मिली अनुदान राशि से वैद्यनाथन द्वारा वर्णित ‘‘भविष्य को भांपने की बुद्धिमता’’ के बारे में गहराई से जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी। इसमें वायु गुणवत्ता डेटा का विश्लेषण करने में सक्षम कंप्यूटर एल्गोरिदम का उपयोग, यह अनुमान लगा पाना कि वायु प्रदूषण की समस्याएं कहां होने वाली हैं और लोगों की सेहत को फायदा हो सके, इसलिए उस जानकारी को पूरे भारत में साझा करना, जैसी बातें शामिल हैं। वह कहते हैं कि एक-दो साल के भीतर पीएक्यूएस परियोजना के और भी नए पहलू सामने लेकर आएगा।
वैद्यनाथन के अनुसार, ‘‘एक प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप के रूप में हम अपने प्रयासों और यात्रा का फायदा उठाने के लिए पुरस्कार और अवसरों की तलाश कर रहे थे।’’ फंडिंग और साझेदारी की तलाश में वैद्यनाथन को रुस्तगी का साथ मिला और फिर ‘‘क्वांटम टेक्नोलॉजीज़ एंड एआई फॉर ट्रांसफ़ॉर्मिंग लाइव्स’’ से अनुदान मिला।
वैद्यनाथन के अनुसार, ऐसा रोमांचक अवसर पैदा करने के लिए वह भारत औरअमेरिका की सरकारों के आभारी हैं। वह कहते हैं, ‘‘अमेरिका के पास प्रौद्योगिकी और नेतृत्व है, जबकि भारत के पास महत्वाकांक्षी युवाओं के साथ एक विशाल प्रतिभा पूल है- साथ मिल कर काम करने के लिए इससे आदर्श संयोजन की स्थिति और क्या हो सकती है।’’
माइकल गलांट लेखक, संगीतकार और उद्यमी हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।