मुझे एक खबर याद आ गई जब कश्मीर के एक बेहद खतरनाक आतंकी जिसे सुरक्षाबलों ने मारा था तमाम वामपंथी तमाम मुस्लिम और तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी जिसमें प्रशांत भूषण और अरुंधति राय थे उन्होंने यह ट्वीट किया था इसे सेना के जवान ने पिटाई किया था जिसकी वजह से यह आतंकी बनाI
बड़ी बहन ने बताया कि एक दिन वह फेसबुक पर थी तभी उन्होंने एक मुस्लिम परिवार का अपने घर का फोटो पोस्ट कर देखा वह चौक गई कि वह घर उनका था उन्होंने कहा कि वह तस्वीर देखने के बाद मैं कई दिनों तक डिप्रेशन में रही मैं बहुत फूट-फूट कर रोए कि जिस हवेली को मेरे दादाजी और मेरे पिताजी ने इतनी मेहनत से बनाया था और जिस हवेली में मेरे बड़े भाई का कत्ल किया गया और जिस हवेली को हमें मात्र कुछ घंटों की नोटिस पर छोड़ने को मजबूर किया गया हमारी उस पुरखों की हवेली पर एक मुस्लिम परिवार कब्जा करके रह रहा है और वह बड़ी बेशर्मी से उनके फोटो फेसबुक पर पोस्ट कर रहा हैI
कश्मीर में धारा 370 लागू होने के बावजूद म्यामार के रोहिंग्या मुस्लिमों को कश्मीर घाटी में बसाया जा सकता है भारतीयों को नहीं.
04 जनवरी 1990 को कश्मीर के एक स्थानीय अखबार ‘आफ़ताब’ ने हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति प्रकाशित की। इसमें सभी हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने के लिये कहा गया था। एक और स्थानीय अखबार ‘अल-सफा’ में भी यही विज्ञप्ति प्रकाशित हुई।
आतंकियों के फरमान से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने के बाद कश्मीर घाटी में अफरा-तफरी मच गयी। सड़कों पर बंदूकधारी आतंकी और कट्टरपंथी क़त्ल-ए-आम करते और भारत-विरोधी नारे लगाते खुलेआम घूमते रहे। अमन और ख़ूबसूरती की मिसाल कश्मीर घाटी जल उठी। जगह-जगह धमाके हो रहे थे, मस्जिदों से अज़ान की जगह भड़काऊ भाषण गूंज रहे थे। दीवारें पोस्टरों से भर गयीं,
कश्मीरी हिन्दुओं के मकानों, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों को चिह्नित कर उस पर नोटिस चस्पा कर दिया गया। नोटिसों में लिखा था कि वे या तो 24 घंटे के भीतर कश्मीर छोड़ दें या फिर मरने के लिये तैयार रहें। आतंकियों ने कश्मीरी हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए मानवता की सारी हदें पार कर दीं। यहां तक कि अंग-विच्छेदन जैसे हृदयविदारक तरीके भी अपनाए गये। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह थी कि किसी को मारने के बाद ये आतंकी जश्न मनाते थे। कई शवों का समुचित दाह-संस्कार भी नहीं करने दिया गया।
19 जनवरी की रात निराशा और अवसाद से जूझते लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का साहस टूट गया। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिये अपने घर-बार तथा खेती-बाड़ी को छोड़ अपने जन्मस्थान से पलायन का निर्णय लिया। इस प्रकार लगभग 3,50,000 कश्मीरी हिन्दू विस्थापित हो गये।
विस्थापन के पांच वर्ष बाद तक कश्मीरी हिंदुओं में से लगभग 5500 लोग विभिन्न शिविरों तथा अन्य स्थानों पर काल का ग्रास बन गये। इनमें से लगभग एक हजार से ज्यादा की मृत्यु ‘सनस्ट्रोक’ की वजह से हुई; क्योंकि कश्मीर की सर्द जलवायु के अभ्यस्त ये लोग देश में अन्य स्थानों पर पड़ने वाली भीषण गर्मी सहन नहीं कर सके। क़ई अन्य दुर्घटनाओं तथा हृदयाघात का शिकार हुए।
– एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब – उल – मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- ‘सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं’।
– एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया।
-मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे।
या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो
दिसम्बर 19 89 से 10 नवम्बर 1990 तक मुफ़्ती मोहम्मद सईद भारत के गृहमंत्री रहा. उसी के समय में यह काम हुआ. आज यह भुला दिया गया है. पर इतिहास को भूलना मुर्खता है.
इसमे कुछ भाग जितेंदर प्रताप सिंह पोस्ट से लिया है।